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Supreme Court: फर्जी मतदाताओं की पहचान के लिए विशेष गहन पुनरीक्षण जरूरी

देश में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण कराने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को दाखिल की गयी. याचिका में चुनाव आयोग, केंद्र और राज्य सरकार को लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव से पहले मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण करने का निर्देश देने, घुसपैठियों को फर्जी दस्तावेज मुहैया कराने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने के लिए राज्यों को उचित कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की गयी है.

Supreme Court: बिहार चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण कराने के चुनाव आयोग के फैसले को लेकर विपक्ष मोर्चा खोले हुए है. विपक्षी दलों की ओर से इस प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गयी है. मामले की सुनवाई 10 जुलाई को होनी है. इस बीच हर चुनाव से पहले पूरे देश में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण कराने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को दाखिल की गयी. याचिका में चुनाव आयोग, केंद्र और राज्य सरकार को लोकसभा, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव से पहले मतदाता सूची का गहन पुनरीक्षण करने का निर्देश देने, साथ ही घुसपैठियों को फर्जी दस्तावेज मुहैया कराने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने के लिए राज्यों को उचित कदम उठाने का निर्देश देने की मांग की गयी है.

भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दाखिल याचिका में कहा गया है कि केंद्र, राज्य और चुनाव आयोग का दायित्व है कि मतदाता सूची में किसी घुसपैठिये का नाम नहीं हो. इससे अवैध घुसपैठ को रोकने में मदद मिलेगी. न्यायाधीश सुधांशु धूलिया और न्यायाधीश जयमाला बागची की खंडपीठ के समक्ष मामले को रखते हुए याचिकाकर्ता ने 10 जुलाई को होने वाले सुनवाई में पक्षकार बनाने की मांग की. इस पर पीठ ने कहा कि रजिस्ट्री सूचीबद्ध करने पर विचार करेगी. गौरतलब है कि विपक्षी दलों के अलावा कई सामाजिक संगठनों ने भी चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है. याचिका में कहा गया है कि आयोग के इस फैसले से लाखों गरीब मतदाता चुनावी प्रक्रिया में शामिल नहीं हो पायेंगे. 


याचिका में मतदाता सूची के पुनरीक्षण को क्यों बताया है जरूरी

याचिका में कहा गया है कि चुनाव से पहले राष्ट्रीय स्तर पर मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण होना चाहिए. याचिका में दावा किया गया कि बिहार की कुल 243 विधानसभा सीट में लगभग हर विधानसभा सीट पर लगभग 8-10 हजार अवैध, फर्जी मतदाताओं के नाम शामिल हैं. विधानसभा चुनाव में दो-तीन हजार वोट परिणाम को प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं. बिहार में इससे पहले वर्ष 2003 में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण किया गया था. राज्य में शहरीकरण, पलायन और मृत लोगों का नाम मतदाता सूची से हटाने के लिए ऐसा करना बेहद आवश्यक है. याचिका में बताया गया है कि देश के 200 जिलों और 1500 तहसीलों की डेमोग्राफी अवैध घुसपैठ, धर्मांतरण और जनसंख्या विस्फोट के कारण पूरी तरह बदल गयी है. अवैध बांग्लादेशी, पाकिस्तानी और रोहिंग्या घुसपैठ के कारण भारतीय मतदाताओं के अधिकारों का हनन हो रहा है और यह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी गंभीर खतरा है.

ऐसे में संविधान के अनुच्छेद 324 और 326 के तहत चुनाव आयोग की जिम्मेदारी है कि वह स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए मतदाता सूची को पारदर्शी बनाए. जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 की धारा 14(1) और 21(3) के तहत चुनाव आयोग को समय-समय पर विशेष गहन पुनरीक्षण करने का अधिकार है. याचिका में कहा गया है कि असम में वर्ष 1997 में चुनाव आयोग की ओर से घर-घर जाकर मतदाताओं की पहचान सुनिश्चित की गयी थी और संदिग्ध मतदाताओं का मामला फॉरेन ट्रिब्यूनल को सौंपा गया. बिहार के चुनाव में वहां के स्थानीय निवासी ही मतदान कर सकें, इसके लिए मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण करना बेहद आवश्यक है. सीमांचल में घुसपैठ के कारण मुस्लिम आबादी 47 फीसदी हो गयी है, जबकि बिहार में इस समुदाय की कुल आबादी 18 फीसदी है. 

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