Supreme Court: देशभर में शिक्षण संस्थानों में छात्रों की आत्महत्या और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं में बढ़ोतरी को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को गंभीर चिंता जताई. कोर्ट ने कहा कि आत्महत्या की रोकथाम के लिए भारत में कोई समुचित कानून मौजूद नहीं है. ऐसे में जब तक संसद इस दिशा में कोई कानून नहीं बनाती, कोर्ट द्वारा तय किए गए दिशा-निर्देश ही पूरे देश में बाध्यकारी होंगे.
सभी शैक्षणिक संस्थानों पर होगा लागू
सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्देश एक 17 वर्षीय नीट की तैयारी कर रही छात्रा की संदिग्ध मौत के मामले में सुनवाई करते हुए दिया. कोर्ट ने इस मामले की जांच सीबीआई से कराने का भी आदेश दिया है. इस दौरान सुप्रीम कोर्ट के दिशा निर्देश देश के सभी सरकारी, अर्ध-सरकारी, प्राइवेट यूनिवर्सिटी, स्कूल, कॉलेजों, प्रशिक्षण और कोचिंग संस्थानों के अलावा, हॉस्टलों पर लागू होंगे.
सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख दिशा निर्देश
मेंटल हेल्थ नीति अनिवार्य- सभी शिक्षण संस्थानों को एक समान मानसिक स्वास्थ्य नीति बनानी होगी और उसे सूचना पट तथा संस्थान की वेबसाइट पर प्रदर्शित करना होगा.
प्रशिक्षित प्रोफेशनल की नियुक्ति- हर संस्थान में मेंटल हेल्थ प्रोफेशनल जैसे काउंसलर या साइकेट्रिस्ट की नियुक्ति अनिवार्य होगी.
छोटे बैचों में काउंसलर- छात्रों की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए समर्पित काउंसलर नियुक्त किए जाएं, खासकर परीक्षा के समय सहयोग के लिए.
सुरक्षा उपाय जरूरी- हॉस्टलों में छतों, बालकनियों और पंखों जैसी जगहों पर सुरक्षा उपकरण लगाना अनिवार्य होगा.
प्रदर्शन आधारित बैच नहीं- कोचिंग या अन्य संस्थानों में छात्रों को प्रदर्शन के आधार पर अलग-अलग बैचों में न बांटा जाए.
उत्पीड़न के खिलाफ सख्ती- जाति, लिंग, धर्म, दिव्यांगता या यौन पहचान के आधार पर किसी भी प्रकार के उत्पीड़न से निपटने के लिए स्पष्ट शिकायत निवारण तंत्र हो.
आपातकालीन सहायता- संस्थान में अस्पताल की सुविधा हो और हेल्पलाइन नंबर बड़े अक्षरों में प्रदर्शित किए जाएं.
स्टाफ की ट्रेनिंग- संस्थानों को अपने स्टाफ को साल में कम से कम दो बार मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों से प्रशिक्षित कराना होगा.
माता-पिता के लिए जागरूकता अभियान- पेरेंट्स को बच्चों पर अनावश्यक दबाव न डालने के लिए विशेष सेशनों के जरिए जागरूक किया जाए.