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Golden Dome: गोल्डन डोम करेगा अमेरिका की रक्षा, किन देशों के पास है ऐसी तकनीक

Golden Dome: विश्व में एक बार फिर 'आर्म्स रेस' शुरू होने की संभावना पैदा हो गई है. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के गोल्डन डोम मिसाइल डिफेंस सिस्टम विकसित करने के बयान के बाद ये स्थिति बन सकती है. रूस और चीन इस बयान के बाद क्या रुख अपनाते हैं, इस पर विश्व की नजर बनी रहेगी.

Golden Dome: अमेरिका अपनी रक्षा के ‘गोल्डन डोम’ विकसित करेगा. ये स्पेस बेस्ड मिसाइल डिफेंस सिस्टम होगा. जो हाइपर सोनिक मिसाइलों को भी इंटरसेप्ट करेगा. अमेरिका के इस कदम से फिर से ‘आर्म रेस’ शुरू होने की संभावना पैदा हो गई है. खासतौर से रूस और चीन इसमें पीछे नहीं हटेंगे.

Golden Dome: अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ‘गोल्डन डोम’ बनाने की योजना को लेकर चर्चा में हैं. उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस की संयुक्त बैठक में देश को बैलिस्टिक मिसाइल के हमले से बचाने के लिए इजरायल की तरह ‘आयरन डोम’ मिसाइल डिफेंस सिस्टम बनाने की बात कही है. इसी को उन्होंने गोल्डन डोम नाम दिया है. ये सिस्टम अमेरिका के लिए बैलिस्टिक मिसाइल के हमले से बचाने के लिए ढाल की तरह काम करेगा. ये सिस्टम किसी भी मिसाइल हमले को अमेरिका की धरती तक पहुंचने से पहले ही ट्रैक करेगा और उसे हवा में ही मार गिराएगा. इसके लिए उन्होंने कांग्रेस से फंड उपलब्ध कराने के लिए कहा है.

इजरायल जैसा मिसाइल डिफेंस सिस्टम क्यों?

जब कभी बैलिस्टिक मिसाइल से हमलों से बचाव की बात आती है तो इजरायल के आयरन डोम का नाम सबसे ऊपर आता है. चारों तरफ से दुश्मन देशों से घिरे इजरायल को अपने इस डिफेंस सिस्टम पर बहुत भरोसा है. इजरायल पर हमास ने सैकड़ों मिसाइल दागकर एरियल अटैक किया था तो आयरन डोम सिस्टम ने उसे काफी हद तक बचाया था. हालांकि संख्या में ज्यादा होने के कारण हमास की मिसाइलें आयरन डोम सिस्टम को चकमा देने में कामयाब भी रही थी. अब इसी मिसाइल डिफेंस सिस्टम को ध्यान में रखकर एडवांस तकनीक का गोल्डन डोम डिफेंस सिस्टम बनाने की तैयारी में अमेरिका जुटेगा.

क्या होगा अमेरिका के ‘गोल्डन डोम’ में

वैसे तो अमेरिका पैट्रियट एडवांस्ड कैपेबिलिटी-3 मिसाइल व एयर डिफेंस सिस्टम का इस्तेमाल करता है. लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह के डिफेंस सिस्टम को विकसित करने की बात की है, वो आयरन डोम से बेहतर तकनीक पर आधारित होगा. स्पेस बेस्ड इंफ्रारेड सिस्टम (SBIRS), ग्राउंड बेस्ड मिडकोर्स डिफेंस (GMD), टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस (THAAD) इसके मुख्य भाग हैं. स्पेस बेस्ड इंफ्रारेड सिस्टम (SBIRS) में अंतरिक्ष में चक्कर लगा रहे सेटेलाइट किसी भी दुश्मन देश से लॉन्च होने वाली मिसाइल को ट्रैक करके शुरुआती अलर्ट जारी करते हैं. इसमें मिसाइलों की जानकारी जमीन पर मौजूद रडार तक भेजी जाती है. इसके बाद दूसरे चरण की कार्रवाई शुरू होती है. ग्राउंड बेस्ड मिडकोर्स डिफेंस (GMD) और बैलिस्टिक मिसाइल डिंफेंस (BMD) बीच मार्ग में हमलावर मिसाइल को पहचान करके मार गिराते हैं. टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस (THAAD) एक चलता-फिरता सिस्टम हैं. इसमें बड़े-बड़े ट्रकों पर इंटरसेप्टर लगाकर कहीं से भी दुश्मन मिसाइलों को नष्ट किया जाता है.

गोल्डन डोम क्यों?

अमेरिका के पास कई एडवांस मिसाइल डिफेंस सिस्टम हैं. लेकिन डोनाल्ड ट्रंप इसे और आगे ले जाना चाहते हैं. जिससे हमास के हमले के दौरान इजरायल में जो थोड़ी बहुत चूक हुई थी, उससे भी अमेरिका को बचाया जा सके. इजरायल के पास इस समय एरो-2, एरो-3 और डेविड स्लिंग आदि डिफेंस सिस्टम हैं. इसके बावजूद कई मिसाइलें जमीन तक पहुंच गई थीं. हाल ही में हूती विद्रोहियों ने भी इजराय पर मिसाइल हमला किया था, इसे THAAD से इंटरसेप्ट किया गया था. THAAD इजरायल को अमेरिका ने मुहैया कराया है.

भारत की रक्षा करेगा ‘रक्षक’

भारत में भी मिसाइल डिफेंस सिस्टम तैयार किया जा रहा है. इसका खाका डीआरडीओ ने तैयार किया है. इसे नाम दिया गया है ‘रक्षक-सुरक्षा कवच.’ ये अर्ली वार्निंग सिस्टम और अटैक की तकनीक पर कार्य करेगा. इसके अलावा भारत ने ओडिशा के चांदीपुर के एलसी-4 धामरा से इस सिस्टम सफल परीक्षण किया है. ये सिस्टम 5000 किलोमीटर तक मार करने वाली बैलिस्टिक मिसाइल से निपटने में सक्षम है. परीक्षण के दौरान इस सिस्टम ने डमी मिसाइल को हवा में सफलता के साथ नष्ट किया है. दूसरे चरण में एडी एंडो एटमॉस्फेरिक मिसाइल का परीक्षण भी किया गया है. ये मिसाइल पाकिस्तान या चीन की तरफ से आने वाली बैलिस्टिक मिसाइलों को वायुमंडल के नजदीक ही नष्ट कर देगी.

भारत का एयर डिफेंस प्रोग्राम

भारत के पास इस समय पृथ्वी एयर डिफेंस (PAD) और एडवांस्ड एयर डिफेंस (AAD) है. पृथ्वी एयर डिफेंस में 300 से 2000 किलोमीटर तक रेंज तक के टारगेट को नष्ट करती हैं. जबकि एडवांस्ड एयर डिफेंस 150 से 200 किलोमीटर रेंज की मिसाइलों को नष्ट करने की क्षमता रखता है. इसके अलावा भारत के पास रूस का एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम है. 2026 तक कई और एस-400 भारत को मिलेंगे. इससे भारत का रक्षा कवच और मजबूत होगा.

रूस के पास एस-400

रूस ने भी मिसाइल डिफेंस सिस्टम विकसित किए हैं. इसमें एस-400 प्रमुख है और इसे उन्नत करके एस-500 पर कार्य किया जा रहा है. एस-400 (S-400 Missile System) को ट्रक पर माउंट होने के कारण कहीं से भी इस्तेमाल किया जा सकता है. ये माइनस 70 डिग्री तापमान तक काम करने में सक्षम है. एस-400 मिसाइल डिफेंस सिस्टम की रेंज 40, 100, 200 और 400 किलोमीटर होती है. ये सिस्टम 100 से लेकर 40 हजार फीट तक उड़ने वाले टारगेट की पहचान करके नष्ट कर सकता है. इसका रडार 600 किलोमीटर तक की रेंज में 300 टारगेट को पहचान सकता है.

एस-500 प्रोमेटे हाइपरसोनिक मिसाइलों को करेगा टारगेट

रूस अपनी महात्वाकांक्षी योजना एस-500 प्रोमेटे (S-500 Prometey) मिसाइल डिफेंस सिस्टम पर भी काम कर रहा है. ये हाइपरसोनिक मिसाइलों को भी टारगेट कर सकेगा. इसके अलावा स्टील्थ फाइटर जेट और अंतरिक्ष में मौजूद सेटेलाइट को भी निशाना बना सकता है. ये मिसाइल सिस्टम एक बार में 10 अलग-अलग तरह के टारगेट को हिट कर सकता है. इसकी गति 25 हजार किलोमीटर होती है. इसके चलते ये धरती की निचली कक्षा में स्थित टारगेट को भी नष्ट कर सकता है. ये टारगेट की तरफ बढ़ते समय अपनी दिशा बदल सकता हैं. साथ ही टारगेट का पीछा कर सकता है.

चीन भी नहीं पीछे

चीन के पास अपना HQ-19 मिसाइल इंटरसेप्टर सिस्टम है. इसे मध्यम दूरी की बैलिस्टिक मिसाइलों को रोकने के लिए डिज़ाइन किया गया है. जिनकी सीमा 1000 से तीन हजार किलोमीटर है. HQ-19 सिस्टम यूएस टर्मिनल हाई एल्टीट्यूड एरिया डिफेंस (THAAD) की तरह है. चीन के पास अन्य बैलिस्टिक मिसाइल डिफेंस सिस्टम भी है. जिनमें रूस का एस-300 और एस-400 शामिल है.

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Amit Yadav
Amit Yadav
UP Head (Asst. Editor)

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