23.2 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

स्मृति शेष: पद्मश्री गजेंद्र नारायण सिंह

पटना : 10 सितंबर, 1939 को बिहार में जन्‍में एक बच्‍चे के बारे में शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यही बच्‍चा बड़ा होकर संगीत की दुनिया का ऐसा पुरोधा बनेगा, जिसके सजदे में पूरी दुनिया झुक जाएगी. ये ऐसा फनकार बनेगा जिसके आगे संगीत की परंपराएं अपना अर्थ ढ़ूंढ़ेगी. जी हां… हम बात […]

पटना : 10 सितंबर, 1939 को बिहार में जन्‍में एक बच्‍चे के बारे में शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यही बच्‍चा बड़ा होकर संगीत की दुनिया का ऐसा पुरोधा बनेगा, जिसके सजदे में पूरी दुनिया झुक जाएगी. ये ऐसा फनकार बनेगा जिसके आगे संगीत की परंपराएं अपना अर्थ ढ़ूंढ़ेगी. जी हां… हम बात कर रहे हैं भारतीय शास्त्रीय संगीत के महान फनकार पद्मश्री गजेंद्र नारायण सिंह की. पद्मश्री गजेंद्र नारायण सिंह संगीत की दुनिया के ऐसे नायक हैं जिन‍के पास आकर संगीत की परंपरायें अपना अर्थ खोजती हैं.

संगीत को समर्पण कर दिया अपना पूरा जीवन

पद्मश्री गजेंद्र नारायण सिंह ने स्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद ब्रिटिश कार्पोरेशन ऑफ सेक्रेट्रीज से भी डिग्री हासिल की, लेकिन संगीत के प्रति असीम समर्पण इन्हें व्यवसायिक डिग्री से बांधकर नहीं रख सकी. इन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी और संगीत की बारीकियों की तलाश में अपना पूरा जीवन लगा दिया.

पद्म भूषण पं. विनायक पटवर्धन से ग्रहण की संगीत की शिक्षा

गजेंद्र नारायण सिंह ने संगीत की शिक्षा पद्म भूषण पं. विनायक पटवर्धन से ग्रहण की और नृत्य की बारीकियां कथकली नृत्य के विश्व प्रसिद्ध गुरु केलु नायर से सीखी. संगीत की ज्ञान पिपासा इन्हें अपने समय के विख्यात संगीतकारों पंडित नारायण राव व्यास, पंडित राम चतुर मल्लिक, पंडित राम प्रसाद मिश्रा, उस्ताद फहीमुद्दीन डागर, उस्ताद अली अकबर खान, उस्ताद विलायत खान, पंडित किशन महाराज एवं गंगुबाई हंगल के सानिध्य में भी ले गयी.

शास्त्रीय संगीत की परंपरा से संबंधित अपने अर्जित ज्ञान से अधिकाधिक लोगों को लाभान्वित करने के उद्देश्य से इन्होंने संगीत पर केंद्रित कई पुस्तकों की रचना की. शोध पत्रों के लिए आलेख लिखे एवं अखबारों में स्तंभ लेखन भी किया. सप्तक, स्वर गंगा और बिहार की संगीत परंपरा इनकी महत्वपूर्ण पुस्तकों में शामिल हैं. लंदन में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन में इनकी पुस्तक अपनी अनूठी संगीत विवेचना के कारण काफी प्रशंसित हुई थी.

2002 में प्रकाशित हुई थी शास्त्रीय संगीत के पुरोधाओं पर संस्मरण

2002 में शास्त्रीय संगीत के पुरोधाओं के प्रति इनके संस्मरण की पुस्तक ‘सुरीले लोगों का संगीत’ प्रकाशित हुई. संगीत के साथ ही संगीत से जुड़े पहलुओं को रेखांकित करती इनकी औपन्यासिक कृति ‘जोहरा बाई’ ऐतिहासिक उपन्यासों की परंपरा में एक महत्वपूर्ण कृति मानी जाती है.

संगीत और कला के प्रति इनके समर्पण और योगदान के लिए 2007 में इन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया. हालांकि पंडित गजेंद्र नारायण सिंह सम्मान के प्रति कभी आग्रही नहीं रहे, लेकिन इन्हें बिहार रत्न, बिहार गौरव के साथ राज्य सरकार द्वारा 2008 में कला सम्मान से भी सम्मानित किया गया.

गजेंद्र नारायण सिंह को बिहार संगीत नाटक एकेडमी का संस्थापक सचिव होने का गौरव प्राप्त हैं. जिसकी स्थापना 1981 में हुई थी. इन्होंने लगातार 15 वर्षों तक अपनी जवाबदेही का वहन करते हुए बिहार के सांस्कृतिक परिदृश्य में बिहार संगीत नाटक एकेडमी की सार्थक भूमिका सुनिश्चित की. 2004 से 2007 की अवधि में केंद्रीय संगीत नाटक एकेडमी के भी ये सदस्य रहे.

संगीत के प्रति गहन समझ को मिली राष्ट्रीय पहचान

संगीत के प्रति इनकी गहन समझ का ही प्रतीक था कि एचएमवी ग्रुप के अध्यक्ष आरपी गोयनका ने जब अपनी कंपनी से ‘चेयरमैन की पसंद’ के रूप में शास्त्रीय संगीत की सिरीज निकालनी चाही तो उसकी भूमिका लेखन के लिए खासतौर से पंडित गजेंद्र नारायण सिंह से अाग्रह किया गया था.

श्री सिंह संगीत अध्येता ही नहीं, संगीत संरक्षक के रूप में भी जाने जाते हैं. दुनिया भर में जब भी शास्त्रीय संगीत के दुर्लभ टुकड़ों की खोज होती है, गजेंद्र नारायण सिंह की और बिहार की याद की जाती है.

Prabhat Khabar Digital Desk
Prabhat Khabar Digital Desk
यह प्रभात खबर का डिजिटल न्यूज डेस्क है। इसमें प्रभात खबर के डिजिटल टीम के साथियों की रूटीन खबरें प्रकाशित होती हैं।

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel