Closed Eyes During Aarti: आरती हिंदू धर्म की पूजा-पद्धति का एक अत्यंत भावपूर्ण और शक्तिशाली चरण है. इस समय भक्त अपने आराध्य को दीप, धूप, कपूर, पुष्प और भजन की माधुर्यपूर्ण लय में समर्पण भाव से पूजता है. आरती के दौरान कुछ लोग आंखें मूंदकर भीतर की भक्ति में डूब जाते हैं, तो कुछ भक्त भगवान के विग्रह को खुली आंखों से निहारते रहते हैं. सवाल यह उठता है कि क्या आरती करते समय आंखें बंद करना उचित है?
शास्त्रों की दृष्टि से
हिंदू धर्मग्रंथों में “प्रत्यक्षं किम् प्रमाणम्” का उल्लेख आता है, जिसका आशय है कि प्रत्यक्ष दर्शन भी प्रमाण है. स्कंद पुराण और पद्म पुराण में बताया गया है कि आरती के दौरान भगवान के विग्रह के दर्शन करने से कई गुना पुण्य प्राप्त होता है. इस समय विग्रह को देखना सिर्फ नेत्रों की प्रक्रिया नहीं, बल्कि आत्मा से जुड़ाव का क्षण भी होता है. इसलिए आंखें बंद करने से उस दिव्य अनुभूति का लाभ अधूरा रह सकता है.
आध्यात्मिक अनुभूति
कुछ भक्त आरती के समय भावविभोर होकर आंखें बंद कर लेते हैं. यह उनकी अंतर्यात्रा की अभिव्यक्ति होती है, जहां वे बाहरी छवि की बजाय अपने मन के आराध्य को अनुभव करना चाहते हैं. यह एक ऊंचे स्तर की भक्ति का संकेत हो सकता है, किंतु आरती जैसे दृश्यात्मक अनुष्ठान में दर्शन का त्याग करना कभी-कभी आत्मिक सम्पर्क को सीमित कर देता है.
वैज्ञानिक विश्लेषण
जब दीपक की ज्योति और घंटियों की ध्वनि हमारे इंद्रियों पर असर डालती है, तो वे मस्तिष्क में सकारात्मक न्यूरोलॉजिकल प्रतिक्रिया उत्पन्न करती हैं. यह प्रक्रिया मन को शांति, ऊर्जा और ध्यान की अवस्था में लाने का कार्य करती है. आंखें बंद करने पर हम इन सभी प्रभावों में से दृश्य का लाभ नहीं ले पाते.
आरती के समय आंखें खुली रखना शास्त्रों, विज्ञान और भक्ति – तीनों दृष्टिकोणों से अधिक प्रभावशाली माना गया है. यह दृष्टि और श्रद्धा का सुंदर समन्वय बनाता है. हालांकि, यदि कोई भक्त अंतर भाव से आंखें मूंद ले तो वह भी गलत नहीं है. लेकिन संपूर्ण आरती का लाभ लेने के लिए भगवान के दर्शन करते हुए आराधना करना श्रेष्ठ मार्ग है.