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बिहार के इस जिले में तेजी से घट रही खेती की जमीन, रिसर्च में सामने आई जानकारी

बिहार : सीयूएसबी के जन संपर्क पदाधिकारी मोहम्मद मुदस्सीर आलम ने बताया कि अध्ययन से पता चला है कि शहरीकरण और निर्मित क्षेत्रों के विस्तार के कारण गया जिले में कृषि भूमि में 58 प्रतिशत की कमी आयी है. पत्रिका में प्रकाशित शोध के अनुसार, वर्ष 2000 में गया शहर में कृषि भूमि 1908 हेक्टेयर थी, जो वर्ष 2022 तक घटकर 810 हेक्टेयर रह गई.

बिहार : गया शहर की बढ़ती आबादी के कारण पिछले 22 वर्षों में भूमि उपयोग और भूमि आवरण (एलयूएलसी) में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुआ हैं, जिसके परिणामस्वरूप कृषि भूमि को काफी नुकसान पहुंचा है. यह चौंकाने वाले तथ्य दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय (सीयूएसबी) के अर्थशास्त्र विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ फिरदौस फातिमा रिजवी एवं उनके शोध टीम में शामिल द्वारा सीयूएसबी के शोध छात्र आलोक कुमार दुबे और हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोध छात्र आकाश तिवारी के साथ मिलकर किये गये एक हालिया अध्ययन में सामने आया है.

कृषि भूमि में 58 प्रतिशत की कमी

गया शहर पर आधारित यह अहम अध्ययन शोध पत्रिका ‘ट्रांजेक्शन्स ऑफ इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ जियोग्राफर्स’ (वॉल्यूम 45, अंक दो) में प्रकाशित हुआ है, जिसे वैश्विक डेटाबेस स्कोपस में अनुक्रमित किया गया है. सीयूएसबी के जन संपर्क पदाधिकारी मोहम्मद मुदस्सीर आलम ने बताया कि अध्ययन से पता चला है कि शहरीकरण और निर्मित क्षेत्रों के विस्तार के कारण कृषि भूमि में 58 प्रतिशत की कमी आयी है. जीआइएस और रिमोट सेंसिंग तकनीक का उपयोग करके किये गये इस अध्ययन में वर्ष 2030 तक भूमि उपयोग में होनेवाले परिवर्तनों की भविष्यवाणी करने के लिए सीए-मार्कोव मॉडल का उपयोग किया गया है.

शहरीकरण की प्रवृत्ति बन सकती है गंभीर खतरा

पत्रिका में प्रकाशित शोध के अनुसार, वर्ष 2000 में गया शहर में कृषि भूमि 1908 हेक्टेयर थी, जो वर्ष 2022 तक घटकर 810 हेक्टेयर रह गई. अगर शहरीकरण की वर्तमान प्रवृत्ति जारी रही तो अनुमान है कि वर्ष 2030 तक यह 19 प्रतिशत घटकर केवल 657 हेक्टेयर रह जायेगी, जिससे गया की खाद्य सुरक्षा और पर्यावरण संतुलन के लिए गंभीर खतरा पैदा हो जायेगा. उधर, निर्मित क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि देखी गयी है जो 2000 में 1543 हेक्टेयर से बढ़ कर 2022 में 2560 हेक्टेयर हो गई है. यह प्रवृत्ति वर्ष 2030 तक जारी रहने की संभावना है, जब निर्मित क्षेत्र 2580 हेक्टेयर तक पहुंच सकता है.

हालांकि, अध्ययन में सरकारी जल संरक्षण और वनीकरण कार्यक्रमों के कारण वन क्षेत्र में वृद्धि भी देखी गयी है. वर्ष 2000 में वन क्षेत्र 255 हेक्टेयर था, जो 2022 तक बढ़कर 694 हेक्टेयर हो गया है. अनुमान है कि वर्ष 2030 तक यह क्षेत्र बढ़ कर 726 हेक्टेयर हो सकता है, जो हरित आवरण में सकारात्मक बदलाव का संकेत है. हालांकि, जल निकायों (तालाब, नदियां) में 16.66 प्रतिशत की गिरावट आयी है जो एक चिंताजनक संकेत है. अध्ययन में यह भी स्पष्ट किया गया है कि वर्ष 2000 में 913 हेक्टेयर बंजर भूमि थी, जो वर्ष 2022 तक घटकर 580 हेक्टेयर रह गयी, लेकिन वर्ष 2030 तक बंजर भूमि में फिर से वृद्धि होने की आशंका है, जो जलवायु परिवर्तन और वर्षा के अनिश्चित पैटर्न के प्रभाव को दर्शाता है.

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शहरी विस्तार को नियंत्रित करने के लिए सख्त नीतियां लागू करनी होगी

शोधकर्ताओं का सुझाव है कि सरकार को शहरी विस्तार को नियंत्रित करने के लिए सख्त नीतियां लागू करनी चाहिए. भूमि उपयोग नियोजन और संरक्षण नीतियों के कठोर प्रवर्तन के बिना गया शहर में कृषि भूमि की रक्षा करना चुनौतीपूर्ण होगा. इसके लिए शहरी सीमा के भीतर कृषि योग्य भूमि की सुरक्षा, हरित क्षेत्रों को बढ़ावा देना और टिकाऊ शहरी विकास योजनाओं को अपनाना आवश्यक है, अन्यथा गया जैसे ऐतिहासिक और कृषि केंद्रित शहरों में कृषि भूमि लगभग समाप्त हो सकती है, जिससे स्थानीय खाद्य उत्पादन पर गंभीर असर पड़ेगा और पर्यावरण असंतुलन बढ़ेगा.

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Prashant Tiwari
Prashant Tiwari
प्रशांत तिवारी डिजिटल माध्यम में पिछले 3 सालों से पत्रकारिता में एक्टिव हैं. करियर की शुरुआत पंजाब केसरी से करके राजस्थान पत्रिका होते हुए फिलहाल प्रभात खबर डिजिटल के बिहार टीम तक पहुंचे हैं, देश और राज्य की राजनीति में गहरी दिलचस्पी रखते हैं. साथ ही अभी पत्रकारिता की बारीकियों को सीखने में जुटे हुए हैं.

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