नरेंद्र सिंह, आरा
शहर के मध्य स्थित ऐतिहासिक जगजीवन मार्केट आज बदहाली के दौर से गुजर रहा है. एक समय में व्यापारिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र रहा यह मार्केट आज गंदगी, जर्जर संरचना और प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार है. बरसात के दिनों में यहां की स्थिति और भी बदतर हो जाती है, जब हर ओर पानी और कीचड़ फैल जाता है. इससे दुकानदारों और ग्राहकों को भारी परेशानी झेलनी पड़ती है. इस मार्केट का इतिहास अंग्रेजी शासन काल से जुड़ा है. इसकी स्थापना ब्रिटिश काल में ”ग्रुनिंग मार्केट” नाम से की गयी थी. ग्रुनिंग उस समय के अंग्रेज कलेक्टर थे. शुरुआत में यह मार्केट साधारण रूप में कुछ दुकानों के साथ शेड के नीचे संचालित होता था. बाद में आजादी के बाद इसका नाम ”न्यू मार्केट” कर दिया गया. उस समय यह नगरपालिका के अधीन था और कई लोगों को दुकानें आवंटित की गयी थीं. कालांतर में तीसरी बार इसका नाम बदला गया और तत्कालीन रेल मंत्री एवं आरा निवासी कांग्रेस नेता जगजीवन राम के नाम पर इसे ”जगजीवन मार्केट” कहा जाने लगा. तब से यह नाम प्रचलन में है. हालांकि, समय के साथ इसका विकास ठहर गया है. समय के साथ इस मार्केट का स्वरूप भी बदल गया दुकानें पक्की बन गयीं. चेराबंदी हो गयी, जबकि शुरुआती दौर में ऐसा नहीं था. शुरुआती दौर में पक्की दुकानें नहीं थीं केवल शेड से दुकानें बनायी गयी थीं, जबकि धीरे-धीरे इसका स्वरूप बदलते गया, दुकानें पक्की हो गयीं. हालांकि मध्य भाग में अब भी दुकान शेड से ही ढकी हुई है.पतली गलियां ग्राहकों के लिए है परेशानी का कारण
जगजीवन मार्केट की गलियां काफी पतली हैं, जबकि आज भी इस मार्केट में खरीदारों की संख्या काफी रहती है. काफी संख्या में खरीदार पहुंचते हैं. गलियों का स्वरूप भी बेतरतीब हो गया है. टेढ़ी-मेढ़ी गलियों से लोगों को आने-जाने में काफी परेशानी होती है. अंग्रेजों के जमाने में गलियां काफी व्यवस्थित थीं. योजनाबद्ध तरीके से बनायी गयी थीं. अभी तक गलियों का पक्कीकरण नहीं किया गया है. बरसात के दिनों में इन गलियों में पानी जमा हो जाता है. ग्राहकों को इस मार्केट में खरीदारी करने में काफी परेशानी होती है. पानी के बीच से गुजरना पड़ता है. इतना ही नहीं जगजीवन मार्केट में स्थित फल वालों के द्वारा कचरा गलियों में ही फेंक दिया जाता है. इस कारण पतली गलियों की स्थिति और भी दयनीय हो जाती है. इस पर किसी का ध्यान अभी तक नहीं है. प्रशासन एवं निगम चुप्पी साधे रहता है.बदलती जा रही है डेमोग्राफी
जानकारों का कहना है कि शुरुआती दौर में इस मार्केट में लगभग 90% दुकान एक समाज विशेष की थीं. धीरे-धीरे इनकी संख्या घटने लगी और दूसरे समुदाय की संख्या बढ़ने लगी. लोगों का कहना है कि विशेष कारण से ऐसा होता है. लोग डर से दुकान दे देते हैं और दूसरे उसमें अपनी दुकान करते हैं. ऐसे में अब स्थितियां बदलने लगी हैं. दूसरे समुदाय की दुकान काफी अधिक संख्या में हो गयी हैं. इसकी जांच की जानी चाहिए कि आखिर ऐसा कैसे हुआ. पूर्व के दुकानदारों ने अपनी दुकानों को कैसे छोड़ा. नगरपालिका नियमों के अनुसार जिनके नाम से दुकान आवंटित की गयी है उन्हीं को दुकानों का संचालन करना है. दूसरे को सबलेट करने का अधिकार उन्हें नहीं होता है. पर, जगजीवन मार्केट में काफी संख्या में ऐसी ही स्थिति है. इसके बावजूद इसकी जांच एवं इस पर कार्रवाई नहीं की जा रही है. पूर्व में जिनके नाम से दुकानें आवंटित की गयी है थीं, उनकी सूची निकाल कर इसकी जांच की जानी चाहिए कि कब-कब इन दुकानों को सबलेट किया गया या किस तरह दूसरों के द्वारा इन दुकानों का संचालन किया जा रहा है.कायाकल्प होने से चमकेगी मार्केट की तकदीर
यदि नगर निगम द्वारा बड़े पैमाने पर इसका नक्शा बनवाकर आधुनिक तरीके से निर्माण कराया जाए एवं इसे बहुमंजिला इमारत बनाया जाये तो इस मार्केट की तकदीर चमक जायेगी. दुकानों की संख्या बढ़ने से दूसरे लोगों को भी दुकान आवंटित की जा सकती हैं. इस माध्यम से काफी लोगों को रोजगार मिल सकता है.
बोले नगर आयुक्त
इसकी जांच की जायेगी. अवैध रूप से किसी भी जगह पर प्रतिबंधित चीज की बिक्री सही नहीं है. जगजीवन मार्केट में इसकी जांच करायी जायेगी तथा इस पर कार्रवाई की जायेगी. समस्याओं को भी दूर किया जायेगा.
अंजू कुमारी, नगर आयुक्तडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है