बेगूसराय. जिले में ईद-उल-अजहा यानी बकरीद शनिवार को मनाई जा रही है.गुरुवार को बकरीद को लेकर बाजारों में विशेष चहल पहल दिखी. त्योहारों को लेकर समुदाय विशेष में काफी उत्साह देखी गयी. शहर के विभिन्न बाजार सज-धज कर तैयार है.वही ईदगाह सहित जिले के सभी मस्जिदों में नमाज अदा करने की तैयारियां भी लगभग पूरी होने को है.बाजार में कपड़े दुकानों से लेकर श्रृगांर प्रसाधनों के बाजारों में काफी भीड़-भाड़ बनी रही. बकरीद के मौके पर व्यापारियों के व्यवसाय में गति बनी रही. कचहरी चौक स्थित मस्जिद के पास शहर की सबसे बड़ी बकरों की मंडी लगी है.बकरों की जमकर बिक्री चल रही है.बकरीद की पूर्व संध्या पर आठ हजार रुपये से लेकर 35 हजार रुपये तक बकरों की बिक्री की गयी.वहीं एक दो बकरे 40 हजार रुपये से अधिक की कीमत पर बिकने की भी चर्चा है.वहीं बाजार में त्योहार के अवसर पर नमाज के लिए विभिन्न सामग्रियों की भी खरीदारी शुरु हो गयी है.दुकानों पर एक से एक डिजाइनदार टोपियां सजा दी गई हैं.कढ़ाई वाली,कुरशिये की व बुकरम लगी टोपियां भी बाजार में हैं.महिलाओं के लिए चिकन कुर्ते व सलवार सूट और पुरुषों के लिए कुर्ते,पायजामों,पठानी सूट, स्कार्फ (बड़े रूमाल) की बिक्री भी जारी है.
बकरों की कीमत में 20 प्रतिशत की हुई बढ़ोतरी
पिछले साल की तुलना में इस वर्ष बकरीद के अवसर पर बकरों के दामों में 20 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी देखी गयी.वहीं कुछ बकरा व्यापारी ने बताया कि इस वर्ष बाजारों में मांग की तुलना में बकरा बहुत कम उपलब्ध हो पाया है. इसलिए कीमतों में थोड़ा बहुत उछाल आया है.औसत दर्जे का बकरा जो पिछले साल सात हजार रुपये का था, उसकी कीमत इस वर्ष 8 हजार रुपये हो गयी.व्यापारियों को बकरों के भावों में और तेजी आने की उम्मीद बनी हुई है. बकरा हाट व्यपारी मोहम्मद कुदरत, मो सिराज,मो असरफ,मो फिरोज आदि ने बताया कि बकरीद में कुर्बानी देने वालों की संख्या में बढ़ोतरी के कारण भी इस साल बकरों की कीमत में वृद्धि दिख रही है.दूसरा कारण मांग की तुलना में कम संख्या में बकड़े का बाजार में आना भी बकरे की कीमत में वृद्धि हुई हैक्यों और कैसे मनाया जाता है बकरीद का त्योहार
बकरीद मुस्लिमों के त्योहार में बहुत ही प्रमुख त्योहार माना जाता है.बकरीद को अरबी में ईद-उल-अजहा कहा जाता है.मुस्लिम धर्मावलंबियों का कहना है कि इस दिन हजरत इब्राहिम साहब अपने बेटे हजरत इस्माइल को खुदा के हुक्म पर कुर्बान करने जा रहे थे.अल्लाह ने उनके प्राण प्रिय बेटे को जीवनदान दे दिया और कुर्बानी के लिए भेड़ को पेश कर दिया.उसी वाकया के यादगार के तौर पर ये त्योहार कुर्बानी के रूप में मनाया जाता रहा है.ईद-उल-अजहा पर ही हज का मुबारक महीना होता है.इस माह में मुसलमान हज करने के लिए मक्का मदीना जाते हैं.मुस्लिम धर्मावलंबी के अनुसार यह कुर्बानी हर उस शख्स पर फर्ज है, जिसके पास साढ़े सात तोला सोना या साढ़े बावन तोला चांदी या इन दोनों में से किसी एक के बराबर मालियत हो.जिस जानवर की कुर्बानी दी जा रही हो वह साल भर का हो और शरीर के किसी हिस्से में कोई चोट न हो.बीमार जानवर की कुर्बानी नहीं की जाती है.कुर्बानी के तीन बराबर के हिस्से किए जाते हैं.एक हिस्सा अपने पास, दूसरा हिस्सा अजीजों को, तीसरा हिस्सा गरीबों को दिया जाता है.यह कुर्बानियां तीन दिन तक होती हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है