राजगीर. राजगृह के राजगीर इंटरनेशनल कन्वेंशन सेंटर में आयोजित नौ दिवसीय रामकथा महोत्सव के आठवें दिन पूज्य मोरारी बापू की कथा शैली, भावनात्मक व्याख्या और आध्यात्मिक संदेशों ने श्रोताओं के हृदय को छू लिया. पूरा वातावरण ””””””””””””””””जय श्रीराम”””””””””””””””” के उद्घोष से गूंज उठा. जब पूज्य मोरारी बापू ने ””””””””””””””””सियाराम कहियो, सिया राम कहियो”””””””””””””””” का संकीर्तन प्रारंभ किया, तो समस्त वातावरण भक्ति में सराबोर हो गया. देश-विदेश से आये हजारों श्रोतागण मंत्रमुग्ध होकर भक्ति रस में झूम उठे. संकीर्तन की गूंज से पूरा परिसर दिव्य और आध्यात्मिक ऊर्जा से भर गया. भक्तगण तालियों की गूंज के साथ नाम स्मरण करते हुए भाव-विभोर हो उठे. मुरारी बापू की मधुर वाणी और राम नाम की शक्ति ने सभी को एक आध्यात्मिक अनुभव से जोड़ दिया. यह दृश्य अत्यंत प्रेरणादायक और आत्मिक शांति देने वाला था. कथावाचक पूज्य मोरारी बापू ने श्रद्धालुओं को भगवान श्रीराम और माता सीता के विवाह प्रसंग का वर्णन कर भावविभोर कर दिया. आरआईसीसी में हजारों की संख्या में उपस्थित भक्तों ने राम कथा का श्रवण किया और धार्मिक वातावरण में डूब गये. राम कथा के दौरान पूज्य मोरारी बापू ने भगवान श्रीराम और लक्ष्मण के जनकपुर आगमन का सुंदर वर्णन किया. उन्होंने बताया कि जब विश्वामित्र जी दोनों राजकुमारों को साथ लेकर जनकपुर पहुंचे, तो राजा जनक ने उनसे पूछा, ””””””””””””””””मुनिवर ये तेजस्वी बालक कौन हैं”””””””””””””””” इस पर विश्वामित्र ने उनका परिचय देते हुए कहा कि ये दशरथ नंदन राम और लक्ष्मण हैं. मोरारी बापू ने श्रीराम और लक्ष्मण द्वारा नगर भ्रमण और गुरु के लिए पुष्प लाने की घटना का सुन्दर उल्लेख करते हुए कहा कि दोनों भाई कितने विनम्र और मर्यादित थे. वे राजकुमार होकर भी पूर्ण शिष्य धर्म निभा रहे थे. उन्होंने सीता स्वयंवर की कथा का वर्णन करते हुए बताया कि कैसे जनकपुर में राजा जनक ने धनुष यज्ञ का आयोजन किया. उसमें राजा जनक की प्रतिज्ञा थी कि जो भी शिव धनुष को उठाकर तोड़ेगा, वही सीता का वरण करने का अधिकारी होगा. भगवान श्रीराम ने विश्वामित्र के निर्देश पर धनुष को उठाया और उसे तोड़ दिया. इससे समस्त देवगण आनंदित हो उठे. इसके बाद बापू ने सीता-राम विवाह का भावपूर्ण वर्णन करते हुए बताया कि जनकपुर में चारों भाइयों राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न का विवाह चार बहनों सीता, ऊर्मिला, मांडवी और श्रुतकीर्ति से हुआ. वह विवाह लोक रीति और वेद रीति से शुभ लग्न में संपन्न हुआ. सीता विदाई के प्रसंग का वर्णन करते हुए बापू ने कहा कि यह क्षण जितना आनंददायक था, उतना ही भावुक भी. जनक और सुनैना की आंखों से अश्रुधारा बह निकली. उन्होंने कहा कि यह विवाह केवल एक पारिवारिक उत्सव नहीं, बल्कि धर्म और मर्यादा की स्थापना का प्रतीक था. इस दिव्य प्रसंग में मुरारी बापू की वाणी और भावों से उपस्थित भक्तगण भावविभोर हो उठे. राम कथा के दौरान पूज्य मुरारी बापू ने ””””””””””””””””दुर्गा”””””””””””””””” और ””””””””””””””””दुर्ग”””””””””””””””” में अंतर बताते हुये कहा कि दुर्गा शक्ति, करुणा और माँ का स्वरूप हैं, जबकि दुर्ग एक रक्षक किला है. दुर्गा आंतरिक रक्षा करती हैं और दुर्ग बाहरी. दोनों का उद्देश्य सुरक्षा और संरक्षण है. — प्रकृति के परमात्मा का वास है राम कथा के दौरान पूज्य मुरारी बापू ने प्रकृति और परमात्मा के संबंध पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जैसे मंदिरों में परमात्मा का वास होता है, वैसे ही प्रकृति में भी उनका निवास है. उन्होंने कहा कि नदियाँ, सरोवर, तालाब, वृक्ष और पर्वत सब में ईश्वर की झलक मिलती है. इसलिए केवल मंदिरों की नहीं, बल्कि प्रकृति की भी रक्षा करना हमारा धर्म है. बापू ने बताया कि पर्यावरण की रक्षा करना केवल एक सामाजिक कर्तव्य नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जिम्मेदारी भी है. जब हम प्रकृति की सेवा करते हैं, तो हम परमात्मा की सेवा करते हैं. राम कथा के दौरान मुरारी बापू ने एक प्रेरणादायक प्रसंग साझा करते हुए कहा कि एक बार वे अफ्रीका गए थे. उनके साथ गंगाजल भी था. वहां उनके गंगा जल को जप्त कर लिया गया. वहां की प्रयोगशाला में गंगाजल की शुद्धता की जांच की गयी. जांच के बाद वैज्ञानिकों ने बताया कि गंगा जैसा शुद्ध और पवित्र जल दुनिया में कहीं नहीं है. उसमें मौजूद प्राकृतिक तत्वों और औषधीय गुणों ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया. मुरारी बापू ने कहा कि यह हमारे देश की आस्था, परंपरा और संस्कृति की महानता को दर्शाता है. उन्होंने कहा हम उसे देश के वासी हैं जहां गंगा बहती है श्रोताओं ने इस बात को गर्व से सुना. — समुद्र मंथन की तरह हो विश्वविद्यालय मंथन राजगीर में ””””””””””””””””मानस नालंदा विश्वविद्यालय”””””””””””””””” की व्यासपीठ से संबोधित करते हुए सुप्रसिद्ध कथा वाचक पूज्य मोरारी बापू ने कहा कि जैसे समुद्र मंथन हुआ. वैसे ही देश में विश्वविद्यालयों का भी ””””””””””””””””मंथन”””””””””””””””” किया जाना आवश्यक है. चार प्रकार के मंथन की बात करते हुये बापू ने कहा कि सागर मंथन से सौंदर्यामृत निकलता है. देव दानव ने समुद्र मंथन किया. उससे सुधामृत निकला. वंदना प्रकरण में ब्रह्माजी ने साधु को अमृत कहा है. उसकी प्रत्येक क्रिया अमृतमय है. शीतल स्वाभव वाला साधु कल्पतरु है. साधु को पैसे नहीं मथ सकता. पद नहीं हिला सकता. प्रतिष्ठा चलित नहीं कर सकती. साधु केवल इष्ट विरह में मथ जता है. साधु परमात्मा श्री कृष्ण के वियोग में मथ जाता है. साधु के मंथन से प्रेमामृत प्रकट होता है. चौथा ब्रह्म भी सागर है. ज्ञान के मंदराचल से उसे मथा जाता है. उससे कथा रुपी अमृत निकलता है. विश्वविद्यालय मंथन की चर्चा करते हुये उन्होंने स्पष्ट किया कि इस मंथन का आशय विचारों, मूल्यों, ज्ञान और चरित्र निर्माण से है. मोरारी बापू ने कहा कि शिक्षा केवल डिग्री प्राप्त करने का माध्यम न रहे. वह आत्मिक, सांस्कृतिक और नैतिक उत्थान का आधार बने. उन्होंने यह भी कहा कि विश्वविद्यालयों को ऐसी दिशा देनी चाहिए जहां से समाज के लिए अमृत समान विचार और नेतृत्व उत्पन्न हो सके. नालंदा विश्वविद्यालय की ऐतिहासिक और गौरवशाली गरिमा का स्मरण करते हुए कहा कि भारत में शिक्षा की परंपरा हमेशा ज्ञान, संयम और सेवा की रही है. उसी परंपरा को आज पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है. श्रोताओं ने इस विचार को सहमति और सराहना के साथ सुना.
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