बक्सर .
श्रीराम कथा का हरेक प्रसंग प्रेरणादायी व अनुकरणीय है. यह बात शहर के रामरेखाघाट स्थित री रामेश्वरनाथ मंदिर में चल रही श्रीराम कथा में शुक्रवार को व्यास पीठ से स्वामी प्रेमाचार्य पीताम्बर जी महाराज जी ने कही. उन्होंने गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज द्वारा रचित श्रीरामचरितमानस के बालकांड में वर्णित जनकपुर से विवाहोपरांत माता सीता जी की विदाई, अयोध्या में राजा दशरथ की चारों पुत्र वधुओं का स्वागत व दासी मंथरा तथा कैकई के कुटिल नीति के संवाद का सार गर्भित वर्णन किया. गोस्वामी जी की सुंदर चौपाइयां सुनकर श्रोता भाव विभोर हो गए. स्वामी जी ने कहा कि बड़े भाग्य से मनुष्य का शरीर प्राप्त होता है. यह देवताओं के लिए भी दुर्लभ माना गया है. मानव शरीर की सार्थकता सत्संग व साधना करने में ही है. क्योंगि सत्संग से सभी दुख नष्ट हो जाते हैं. यह मानव शरीर सत्संग और ध्यान करने का घर व मोक्ष का द्वार है. मनुष्य शरीर परमात्मा का ही अंश है और सत्संग व साधना करके परमात्मा पद को प्राप्त किया जा सकता है. सत्संग से संस्कार कभी खत्म नहीं होता है. सच्चे संत के दर्शन मात्र से मन का मैल समाप्त हो जाता है.उन्होंने कहा कि संतों के उपदेश को आत्मसात करने से ही कल्याण संभव है. क्योंकि संत, सतगुरु कामधेनु व कल्पतरु रूप के समान सभी मनोरथ पूर्ण करने वाले होते हैं. श्रीराम कथा विश्वकल्याणदायनी बताते हुए उन्होंने कहा कि यही वजह है कि श्रीरामचरित मानस में गुरु, माता-पिता, पुत्र-पुत्री, भाई, मित्र, पति-पत्नी आदि का कर्तव्य बोध एवं सदाचरण की सीख हमें सर्वत्र मिलती है . कथाक्रम में श्रीराम के वन गमन प्रसंग पर विस्तार से चर्चा करते हुए उन्होंनेे कैकई द्वारा राजा दशरथ से मांगे गए दो वरदान और केवट चरित्र के गुढ़ रहस्यों को समझाया.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है