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बिहार के पटवाटोली में सालाना बन रहे 100 करोड़ रुपये के गमछे, 40 हजार से अधिक लोगों का हो रहा भरण-पोषण

बिहार की आईआईटी फैक्ट्री कही जाने वाली पटवाटोली यहां के हस्तकरघा उद्योग का महत्वपूर्ण केंद्र है. यहां हर दिन करीब 25 लाख रुपये का गमछा तैयार होता है.

नीरज कुमार, गया

गया के मानपुर में स्थित पटवाटोली के पावर लूम इन दिनों सालाना 100 करोड़ रुपये से अधिक के गमछे बना रहे हैं. डेढ़ हजार से अधिक घरों से घिरे इस पटवाटोली में 10 हजार से अधिक लोग इस व्यवसाय से जुड़े हैं. यहां रह रहे एक हजार से अधिक बुनकरों के घरों में 12 हजार से अधिक पावरलूम संचालित हैं, जहां प्रतिदिन करीब 25 लाख रुपये की वैल्यू का एक लाख से भी अधिक गमछा बनकर तैयार हो रहा है.

यहां का तैयार गमछा बिहार के साथ-साथ पश्चिम बंगाल, झारखंड, उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश सहित देश के एक दर्जन से अधिक राज्यों में पहुंच रहा है. इन गमछाें को तैयार करने में प्रतिदिन औसतन 50 हजार किलो 10 से 40 नंबर तक के धागे का उपयोग किया जाता है, जिसकी अनुमानित लागत करीब 25 लाख रुपये बतायी गयी है. बुनकरों के अलावा 12 हजार से अधिक कारीगर यहां रहकर गमछा बना रहे हैं.

बुनकरों के इस व्यवसाय से कारीगरों सहित 40 हजार से अधिक लोगों का भरण पोषण हो रहा है. पटवा टोली के पावर लूम में गमछे के अलावा रजाई, तोशक, गद्दा, तकिया का कपड़ा, झारखंडी साड़ी, पूजा साड़ी, लाल बॉर्डर की साड़ी, पीतांबरी, रामनामा, लहंगा, बेडशीट सहित कई अन्य किस्म के कपड़ों का यहां उत्पादन हो रहा है.

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बिहार के पटवाटोली में सालाना बन रहे 100 करोड़ रुपये के गमछे, 40 हजार से अधिक लोगों का हो रहा भरण-पोषण 3

सूबे में हस्तकरघा का महत्वपूर्ण केंद्र है पटवाटोली

फल्गु नदी के पूर्वी तट पर पटवाटोली क्षेत्र बसा हुआ है. पूरे बिहार के लिए यह हस्तकरघा का महत्वपूर्ण केंद्र है. जानकार बताते हैं कि यह क्षेत्र टिकारी के राजा बुनियाद सिंह के समय बुनियादगंज के नाम से जाना जाने लगा. महाराज कैप्टन गोपाल शरण के सत्ता में आने से यह क्षेत्र गोपालगंज बना. आज भी मुख्य बाजार की सड़क गोपालगंज रोड के नाम पर है. जयपुर के राजा सवाई मानसिंह के नाम पर यह मानपुर हो गया. इसका इतिहास गयाजी से भी पुराना मौर्यकाल का रहा है. अपने जमाने के मशहूर शायर रहे अंजुम मानपुरी की लिखी किताब ”मिरइक्का की गवाही” व ”टमटम वाले” आज भी लाल किला के म्यूजियम में सुरक्षित है.

वहीं कहा जाता है कि मानपुर सवाई मानसिंह के नाम पर है. 1594 ईस्वी में बंगाल के नवाब की नाफरमानी के कारण मुगल बादशाह अकबर ने अजमेर के शासक राजा सवाई मानसिंह को मानपुर भेजा. उन्होंने अपनी छावनी फल्गु के पूर्वी तट पर लगायी. नवाब को सबक सिखाने के बाद राजा सवाई मान सिंह ने नदी किनारे गंगा-जमुनी पोखर से मिट्टी निकाल कर चौमहला महल का निर्माण कराया व चार वर्षों तक रहे भी. इसी बीच सिंचाई के लिए कई पोखर व तालाब खुदवाये, कुएं बनवाये. सुंदर मंदिरों का निर्माण करवाया. वर्तमान में भी मानपुर सूर्य पोखर व इसके किनारे सूर्य मंदिर उनके समय की कृति की याद ताजा कराता है.

सुविधाओं के अभाव में यहां का उद्योग पीछे

करीब तीन सौ वर्ष पहले हस्तकरघा उद्योग शुरू हुआ था. सरकारी सुविधाओं के अभाव में यह उद्योग देश के अन्य राज्यों के कपड़ा उद्योग से काफी पीछे चल रहा है. बिहार के अलावा झारखंड, महाराष्ट्र, पंजाब व देश के कई अन्य राज्यों के कारीगर यहां काम कर रहे हैं. कच्चे सामान के कारखाने यहां नहीं होने से दूसरे राज्यों से मंगाने के कारण यहां के कपड़े अन्य राज्यों की तुलना में महंगे होते हैं. इससे कारोबार पर असर पड़ रहा है. धागे भी दूसरे राज्यों से मंगाये जा रहे हैं. पंजाब व अन्य राज्यों में कच्चे सामान के कारखाने होने से ट्रांसपोर्टिंग नहीं लगता है. इसके कारण वहां के उत्पाद यहां से सस्ते होते हैं. राजकीय रंगाई गृह 25 वर्षों से बंद है. ट्रेनिंग सेंटर नहीं रहने से आधुनिक कपड़ों का उत्पादन नहीं हो पाता है

गोपाल प्रसाद पटवा, अध्यक्ष, बिहार प्रदेश बुनकर कल्याण संघ, गया

Anand Shekhar
Anand Shekhar
Dedicated digital media journalist with more than 2 years of experience in Bihar. Started journey of journalism from Prabhat Khabar and currently working as Content Writer.

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