गया जी. नवजात शिशुओं में पीलिया यानी जौंडिस होना एक सामान्य स्थिति है और अच्छी देखभाल से इसे आसानी से ठीक किया जा सकता है. डॉक्टरों के अनुसार, यह रोग शरीर में बिलीरुबिन नामक एक पीले रंग के पदार्थ के अधिक जमाव के कारण होता है, जो तब बनता है जब ऑक्सीजन ले जाने वाली लाल रक्त कोशिकाएं टूटती हैं. चूंकि नवजात शिशुओं में लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या अधिक होती है और वे तेजी से टूटती हैं, इसलिए उनके जीवन के पहले हफ्ते में पीलिया होना आम बात है. अच्छी बात यह है कि यह स्थिति आमतौर पर अस्थायी होती है और समय पर देखभाल से पूरी तरह ठीक हो जाती है.
समझदारी और सजगता से गंभीर स्थितियों से बचाव संभव
डॉक्टरों का कहना है कि अगर पीलिया के साथ कोई अन्य लक्षण जैसे रक्त संक्रमण, ऑक्सीजन की कमी या आंतरिक रक्तस्राव दिखायी दें, तो तत्काल विशेषज्ञ की सलाह लेना आवश्यक होता है. ऐसे मामलों में यह स्थिति गंभीर हो सकती है, लेकिन समय पर पहचान और इलाज से शिशु को पूरी तरह स्वस्थ किया जा सकता है.पीलिया के प्रकार और कारण
शारीरिक जौंडिस : यह शिशु के पहले दिनों में स्वाभाविक प्रतिक्रिया होती है. स्तनपान जौंडिस : तब होता है जब शिशु को पर्याप्त स्तन दूध नहीं मिल पाता.स्तन दूध जौंडिस सिंड्रोम : यह कुछ स्वस्थ शिशुओं में होता है, जहां स्तन दूध के कारण बिलीरुबिन कम प्रभावी ढंग से बाहर निकलता है.
समय रहते उपचार से होता है सुधार
विशेषज्ञों का मानना है कि जौंडिस की समस्या को लेकर अभिभावकों में घबराने की जरूरत नहीं है. जरूरत है तो बस सतर्क रहने की और लक्षण दिखते ही डॉक्टर से संपर्क करने की.क्या कहती हैं डॉक्टर
नवजातों का शरीर अत्यंत संवेदनशील होता है, इसलिए उनकी देखभाल में हर स्तर पर सजगता जरूरी है. सही समय पर इलाज से पीलिया की यह सामान्य समस्या गंभीर बनने से पहले ही ठीक की जा सकती है. बच्चों की त्वचा या आंखों में पीलापन दिखे, दूध पीने में कमी आये या सुस्ती दिखायी दे तो तुरंत शिशु रोग विशेषज्ञ से मिलना चाहिए. डॉ अंजलि सिंह, सहायक प्राध्यापक, एनएमसीएच सह चिकित्सक मगध हेल्थ केयरडिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है