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शिक्षा व अनुसंधान के क्षेत्र में एआइ साक्षरता की जरूरत : प्रो लुइस

सीयूएसबी : बौद्धिक संपदा कानून पर क्रॉस-कॉन्टिनेंटल सम्मेलन अविन्या 2.0 व्याख्यान शृंखला का आयोजन

सीयूएसबी : बौद्धिक संपदा कानून पर क्रॉस-कॉन्टिनेंटल सम्मेलन अविन्या 2.0 व्याख्यान शृंखला का आयोजन

वरीय संवाददाता, गया.

विश्व नवाचार दिवस के उपलक्ष्य में सीयूएसबी में बौद्धिक संपदा कानून पर क्रॉस-कॉन्टिनेंटल सम्मेलन अविन्या 2.0 व्याख्यान शृंखला का आयोजन किया गया. कुलपति प्रो कामेश्वर नाथ सिंह के संरक्षण में सीयूएसबी के स्कूल ऑफ लॉ एंड गवर्नेंस (एसएलजी) ने राष्ट्रीय बौद्धिक संपदा जागरूकता मिशन (एनआइपीएएम) और इंस्टीट्यूशन इनोवेशन काउंसिल (आइआइसी-सीयूएसबी) के सहयोग से ऑनलाइन माध्यम से एसएलजी के विभागाध्यक्ष, डीन और एनआइपीएएम-सीयूएसबी के नोडल अधिकारी प्रो अशोक कुमार के नेतृत्व में कार्यक्रम का आयोजन किया गया है.

पीआरओ मोहम्मद मुदस्सीर आलम ने बताया कि बौद्धिक संपदा और इतिहास, विचार और नवाचार के विकास का पता लगाना विषय पर आयोजित सम्मेलन में दुनियाभर के प्रतिष्ठित विद्वान, कानूनी विशेषज्ञ और छात्र एक साथ आये और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51ए(एच) की भावना को कायम रखते हुए रचनात्मकता को बढ़ावा देने की प्रतिबद्धता की पुष्टि की. मुख्य प्रतिभागियों में प्रो लुइस मिगुएल कार्डोसो, प्रोफेसर एडजुन्टो, एस्कोला सुपीरियर डी एडुकाकाओ इं सिएन्सियास सोसियास, पॉलिटेक्निक इंस्टीट्यूट ऑफ पोर्टलेग्रे, पुर्तगाल, डॉ पामेला लिस्बोआ, यूनिवर्सिडैड डी चिली (चिली विश्वविद्यालय), चिली, डॉ दीपा खरब, एसोसिएट प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय और डॉ आलोक शर्मा, दिल्ली विश्वविद्यालय से शामिल रहे.

पारंपरिक ज्ञान व जैव विविधता की रक्षा में भारत के वैश्विक नेतृत्व प्रशंसनीय

प्रो लुइस मिगुएल कार्डोसो ने शिक्षा और अनुसंधान क्षेत्रों में एआइ साक्षरता की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया और बताया कि कैसे कृत्रिम बुद्धिमत्ता उच्च शिक्षा और बौद्धिक संपदा प्रबंधन को बदल रही है. उन्होंने ऐसी राष्ट्रीय नीतियों के विकास का आह्वान किया, जो नवाचार को नैतिक अनुपालन और शैक्षणिक अखंडता के साथ संतुलित करती हों. डॉ पामेला लिस्बोआ ने लैटिन अमेरिका के स्वदेशी समाज से लेकर समकालीन बौद्धिक संपदा ढांचे तक बौद्धिक रचनात्मकता के ऐतिहासिक विकास, पारंपरिक ज्ञान और जैव विविधता की रक्षा में भारत के वैश्विक नेतृत्व की प्रशंसा की और अंतरराष्ट्रीय आइपी प्रणालियों में नैतिक शासन की आवश्यकता को रेखांकित किया.

बौद्धिक संपदा पर साझा किया विचार

डॉ दीपा खरब ने बौद्धिक संपदा और मानवतावादी मूल्यों के बीच अविभाज्य संबंध पर विचार साझा किया. डॉ आलोक शर्मा ने बौद्धिक संपदा की सुरक्षा को सीधे भारतीय संवैधानिक ढांचे से जोड़ा. उन्होंने अनुच्छेद 300 ए की प्रासंगिकता पर विस्तार से बताया, जो संपत्ति के अधिकारों की रक्षा करता है और अनुच्छेद 51ए (एच), जो वैज्ञानिक स्वभाव और मानवतावाद के विकास पर जोर देता है.

शोध पत्रों की प्रस्तुति

डीन प्रो अशोक कुमार ने कहा कि रचनात्मकता, नवाचार और बौद्धिक संपदा प्रशासन के पारिस्थितिकी तंत्र को बढ़ावा देना 2047 तक ज्ञान-संचालित भारत के दृष्टिकोण को प्राप्त करने के लिए मौलिक है. सम्मेलन में सात तकनीकी सत्रों में 98 चुनिंदा शोध पत्रों की प्रस्तुति हुई, जिसमें बौद्धिक संपदा की न्यायशास्त्रीय नींव, पारंपरिक ज्ञान पर औपनिवेशिक प्रभाव, तकनीकी प्रगति, आइपी प्रशासन में नैतिक दुविधाएं और नवाचार और सामाजिक कल्याण पर वैश्विक दृष्टिकोण समेत कई विषयों को शामिल किया गया. कार्यक्रम का समापन करते हुए एसएलजी के सहायक प्रोफेसर डॉ अनुराग अग्रवाल ने औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन दिया.

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