बोधगया. बौद्ध परंपरा के मुताबिक अगले महीने गुरु पूर्णिमा के दिन से बौद्ध भिक्षुओं का वर्षावास शुरू हो जायेगा. इस दौरान बौद्ध भिक्षु संबंधित बौद्ध मठों में प्रवास करेंगे व अगले तीन महीने तक साधना व पूजा-अर्चना करेंगे. वर्षावास के दौरान बौद्ध भिक्षु किसी भी परिस्थिति में छह से ज्यादा दिनों तक अन्यत्र प्रवास नहीं कर सकते हैं. उनकी आवाजाही भी निषेध होती है. इसके बाद कार्तिक पूर्णिमा के दिन से उनका वर्षावास समाप्त हो जायेगा. इस बारे में महाबोधि मंदिर के भिक्षु चालिंदा ने बताया कि तथागत बुद्ध के समय से ही बौद्ध भिक्षुओं को वर्षावास में प्रवास करने की परंपरा कायम है. इसके पीछे का तर्क यह है कि उन दिनों बौद्ध भिक्षुओं की टोली भिक्षाटन के लिए गांव-गांव भ्रमण करते थे. पैदल ही चलते थे व बरसात के दिनों में रास्ते में उगने वाली घास व जन्म लेने वाले कीट-पतंगों का भिक्षुओं के पैदल चलने के कारण जान चली जाती थी. रास्ते में पड़ने वाली नदियां व नालों में भी पानी भरा होता था. इस कारण उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ता था. साथ ही, पैदल चलने के दौरान कीट-पतंगों की जान जाने से अहिंसा धर्म का अनुपालन भी नहीं हो पाता था. तब से तथागत बुद्ध ने बौद्ध भिक्षुओं को बरसात के दिनों में कहीं भी भ्रमण करने पर रोक लगी दी थी व इसे वर्षावास का नाम दिया गया था. इस दौरान बौद्ध भिक्षु साधना के साथ-साथ अध्ययन भी किया करते हैं. वर्षावास के समापन पर बौद्ध श्रद्धालुओं द्वारा भिक्षुओं को उनके धारण करने वाले कपड़े यानी चीवर के साथ ही दैनिक उपयोग की सामग्री भेंट स्वरूप दिया करते हैं. इसे चीवरदान समारोह के रूप में जाना जाता है. उल्लेखनीय है कि बोधगया में फिलहाल विभिन्न देशों के 70 से ज्यादा बौद्ध मठ हैं, जहां वर्षावास के दौरान बौद्ध भिक्षु प्रवास करेंगे.
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