गया. ऊपर दिखाई गयी तस्वीर किसी भी अस्पताल में देखने को मिल जाती है. हर कोई इसके लिए सफाईकर्मी को ही दोषी मानता है. लेकिन, बायो वेस्ट से प्लास्टिक, लोहा निकालने के लिए हर दिन जद्दोजहद करते हैं. इसमें हर वक्त उनके ऊपर गंभीर बीमारी के शिकार होने का खतरा बना रहता है. एक सफाईकर्मी ने बताया कि उन्हें 30 दिनों तक काम करने पर महज 6000 रुपये ही मिलता है. अब इस महंगाई के दौर में इतना पैसा से कुछ भी नहीं होता है. अब परिवार चलाने के लिए कुछ जुगाड़ करना ही पड़ता है. इसलिए कचरा से प्लास्टिक आदि को छांट कर कबाड़ दुकानदार के यहां बेच देते हैं. इससेे परिवार चलाने में कुछ सहयोग मिल जाता है. उन्होंने कहा कि श्रम विभाग की ओर से प्रतिदिन 412 रुपये मजदूरी तय कर दी गयी है. इसके बाद भी अस्पतालों में 200 रुपये प्रतिदिन के वेतनमान पर काम करने के लिए एग्रीमेंट कराया जा रहा है. इनको सरकार के नियम का कोई डर नहीं लगता है. कुछ भी कहने पर सीधे हटाने की धमकी देते हैं.
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