गया जी. शहर के ऐतिहासिक गांधी मैदान का अस्तित्व दिनोंदिन सिकुड़ता जा रहा है. एक ओर जहां नगर निगम ने शहर की 18 प्रमुख सड़कों की सफाई का जिम्मा एक निजी एजेंसी को सौंपा है, वहीं दूसरी ओर गांधी मैदान को विभिन्न विभागों द्वारा अपने-अपने उद्देश्यों के लिए निशाना बनाया जा रहा है. इससे गांधी मैदान का मूल स्वरूप खतरे में पड़ता दिख रहा है. एजेंसी द्वारा गांधी मैदान के किनारे एंगल और सीट लगाकर गाड़ियों की पार्किंग शुरू की गयी है. स्थानीय लोगों का कहना है कि नगर निगम की ओर से गांधी मैदान के बाहरी हिस्से में मनमाने ढंग से भूमि आवंटित कर दी गयी है. यहां चापाकल मरम्मती केंद्र जैसे स्थायी निर्माण कराये जा चुके हैं, जबकि पहले इसी क्षेत्र में सब्जी विक्रेताओं के लिए बनायी गयी दुकानों को कोर्ट के आदेश के बाद तोड़ दिया गया था. अब दोबारा यहां गुमटी और दुकानें लगायी जा रही हैं, जिससे प्रतीत होता है कि अतिक्रमण पर रोक लगाने के बजाय उसे मौन स्वीकृति दी जा रही है. स्थानीय लोगों का आरोप है कि गांधी मैदान को धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा है. पहले वन विभाग ने पार्क निर्माण के नाम पर अंदर निर्माण कार्य शुरू कर दिया. अब नगर निगम की अनदेखी के कारण यहां अस्थायी दुकानों को स्थायी रूप देने की कोशिश की जा रही है, जबकि नगर निगम के उपनगर आयुक्त पूर्व में स्पष्ट कर चुके हैं कि गांधी मैदान के किसी भी हिस्से पर कब्जा करने की अनुमति नहीं दी जायेगी.
74 एकड़ रकबे में आधे से अधिक पर हो चुका है निर्माण
गांधी मैदान का कुल क्षेत्रफल लगभग 74 एकड़ बताया जाता है. इसमें से आधे से अधिक हिस्से पर बिजली विभाग, टेलीफोन विभाग, अन्य सरकारी कार्यालयों और दुकानों का निर्माण हो चुका है. अब बाहरी क्षेत्र में भी अस्थायी निर्माण शुरू हो गया है. बस स्टैंड रोड के किनारे गांधी मैदान की सीमा पर कई दुकानें खुल गयी हैं. पिछले दिनों जब नगर निगम के कर्मी इन अतिक्रमणों को हटाने पहुंचे, तो दुकानदारों ने ट्रेड लाइसेंस और निगम की रसीदें दिखाकर अपनी वैधता का दावा किया, जिससे मौके पर हंगामे की स्थिति उत्पन्न हो गयी थी.
कोर्ट के एफिडेविट के बावजूद अतिक्रमण जारी
जानकारी के अनुसार, जब गांधी मैदान पर हो रहे अतिक्रमण को लेकर कोर्ट में मामला दर्ज किया गया था, तब जिला प्रशासन और राज्य सरकार की ओर से उच्च न्यायालय में शपथ-पत्र (एफिडेविट) दायर कर यह आश्वासन दिया गया था कि गांधी मैदान में किसी भी तरह का निर्माण या अतिक्रमण नहीं किया जायेगा. इसके बावजूद वहां अस्थायी कब्जे को स्थायी रूप देने की घटनाएं सामने आ रही हैं. ऐसे में अब एक बार फिर से इस मामले को कोर्ट में ले जाने की स्थिति बनती नजर आ रही है.
समाजसेवी ने जतायी चिंता
समाजसेवी वृजनंदन पाठक ने कहा कि गांधी मैदान शहर की ऐतिहासिक धरोहर है और इसे बचाने के लिए नागरिकों को जागरूक होना पड़ेगा. नगर निगम की लापरवाही और सरकारी विभागों की उदासीनता के चलते इसका अस्तित्व खतरे में है.
क्या कहते हैं स्वच्छता पदाधिकारी
स्वच्छता पदाधिकारी मोनू कुमार ने बताया कि सफाई का कार्य एक एजेंसी को तीन वर्षों के लिए टेंडर के माध्यम से दिया गया है. गांधी मैदान के किनारे एजेंसी द्वारा एंगल और सीट लगाकर गाड़ियों की अस्थायी पार्किंग की गयी है. इसे स्थायी रूप नहीं दिया गया है. रात में सफाई कार्य के बाद दिन में वहां गाड़ियां खड़ी की जाती हैं.
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