गया जी. 1974 में छात्रों के आंदोलन की जो चिंगारी पटना से उठी थी, वह गया के गांधी मैदान में ज्वाला बन गयी. जननायक जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने जब कर्फ्यू तोड़कर गया में जनसभा की, तो किसानों, मजदूरों और छात्रों की भारी भीड़ उमड़ पड़ी. प्रशासन बेबस था और जेपी ने यहीं से ‘व्यवस्था परिवर्तन’ का शंखनाद किया. यह आंदोलन धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गया और अंततः तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सरकार सत्ता से बाहर हो गयी व मोरारजी देसाई के नेतृत्व में केंद्र में पहली गैर-कांग्रेसी सरकार बनी. उस ऐतिहासिक जन आंदोलन में सक्रिय रहे गया के नेता मानते हैं कि जेपी का भ्रष्टाचार मुक्त और जनहितकारी शासन का सपना आज भी अधूरा है. आज की सरकारें जनहित की जगह परहित की राजनीति कर रही हैं, तुष्टिकरण और भ्रष्टाचार चरम पर है.
मैं 23 महीने जेल में रहा : अखौरी निरंजन
1974 में गया में मेरे नेतृत्व में संघर्ष चल रहा था. सुशीला सहाय महिलाओं का नेतृत्व कर रही थीं। फल्गु नदी किनारे, रेलवे मैदान, मुरली पहाड़, हर जगह मीटिंग होती थी। बम, गोली, डायनामाइट सब चला. मैं 23 महीने जेल में रहा. ‘मीसा’ लगा. हजारीबाग, गया, बक्सर जैसे जेलों में रखा गया. जेपी जैसा नेता अब नहीं है. आज की राजनीति सिर्फ सत्ता सुख की हो गयी है. उस वक्त जय प्रकाश नारायण के आह्वान पर छात्र एकजुट होने लगे और धीरे-धीरे छात्रों के साथ-साथ किसान और सभी वर्गों के लोग जुड़ने लगे और संघर्ष तेज हो गया.गया गोलीकांड के बाद आये थे जेपी : प्रभात कुमार सिन्हा
गया में छात्र आंदोलन में सक्रिय था. 23 महीने जेल में रहा. आज भी जेपी का सपना अधूरा है. भ्रष्टाचार, लेटलतीफी और प्रशासनिक निष्क्रियता आज भी मौजूद है. युवाओं से अपील करता हूं कि सरकार पर नजर रखें, गलत कार्यों का विरोध करें और लोकतंत्र को जीवंत बनाए रखें. आज आपातकाल के 50 वर्ष हो गये. लेकिन, आपातकाल में घटना आज भी मेरे मनोमस्तिष्क में स्मरण में हैं कि किस तरह से उस समय की कांग्रेस की सरकार ने जनांदोलन को कुचलने के लिए अपना सारा शक्ति लगा दिया और उस समय अनेक छात्र जो इस आंदोलन में भाग लिये, उन्हें पकड़-पकड़ कर जेलों में बंद किया गया, मैं भी उनमें एक था. गया के जनांदोलन में महिलाओं में सुशीला सहाय जो लीड कर रही थीं के अलावा सुनीता देवी, अनिल विभाकर, ज्ञानचंद जैन, अनिल कुमार सिन्हा, डॉ प्रेम कुमार, अखौरी निरंजन, नवलेश बर्थवार, मेडिकल कॉलेज के छात्र, सुरेंद्र कुमार, लल्लू जी. बिहार में गया का आंदोलन अहम था. हालांकि आंदोलन की शुरुआत पटना से हुई पर 12 अप्रैल 1974 को गया गोलीकांड के बाद जयप्रकाश जी आये. यहीं से आग धधकी और जनांदोलन का रूप ले लिया. उस समय कर्फ्यू लगा था. इसी दौरान अखौरी निरंजन जय प्रकाश जी को लेकर गया के गांधी मैदान में आये. जहां कर्फ्यू को तोड़कर विशाल जन सभा हुई. जेपी ने गया गोली कांड की भर्त्सना की. यहीं से उन्होंने जनांदोलन करने का आह्वान किया. व्यवस्था परिवर्तन का आवाज भी जेपी ने गया जी से ही दिया, जो वृहद रूप ले लिया. और अंतत: इंदिरा की सरकार चली गयी.गया में एकाएक कई लोगों की हुई गिरफ्तारी : नवलेश बर्थवार
जब कोई लोकतांत्रिक सरकार आलोचना व असहमति के प्रति असहिष्णु हो जाये, तो लोकतंत्र में संवाद मर जाता है. कुछ ऐसा ही हुआ था. 25 जून 1975 की शाम को लोकनायक जयप्रकाश नारायण सहित तमाम विपक्षियों ने दिल्ली के राम लीला मैदान में सभा की थी. वही जेपी ने आह्वान किया था कि ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है.’ सभा के बाद जेपी दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में ठहरे थे. सुबह तीन बजे पुलिस जब उन्हें गिरफ्तार करने पहुंची, तो उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुऐ कहा कि ‘विनाश काले विपरीत बुद्धि ’ अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, चंद्रशेखर सहित विपक्षी नेता 1974 छात्र जनांदोलन से जुड़े हजारों लोगों की गिरफ्तारी की गयी थी. मेरी भी गिरफ्तारी हुई. मेरे साथ डॉ प्रेम कुमार, प्रशांत जी, शिवमूर्ति, जानकी बहन, त्रिपुरारि शरण सिंह, विशिष्ट नारायण सिंह एएस जगन्नाथन आदि की गया में गिरफ्तारी की गयी.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है