गुरुआ. हर साल की तरह इस वर्ष भी 14 अप्रैल को भुरहा में पारंपरिक बिसुआ मेला का आयोजन किया जा रहा है. यह मेला न सिर्फ धार्मिक महत्त्व रखता है, बल्कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी बेहद खास माना जाता है. लोककथाओं के अनुसार, महान तपस्वी ऋषि दुर्वासा ने यहीं पर यज्ञ और कठोर तप किया था. इसी कारण इस क्षेत्र को ””दुर्वासा नगर”” के नाम से भी जाना जाता है. भुरहा महोत्सव समिति के पूर्व अध्यक्ष राजदेव प्रसाद बताते हैं कि यह स्थान भगवान बुद्ध की यात्रा का भी साक्षी रहा है. ज्ञान प्राप्ति के बाद जब वे बोधगया से सारनाथ जा रहे थे. तब उन्होंने अपनी पहली रात्रि भुरहा-दुब्बा में बितायी थी. आचार्य शंभू शरण पाठक के अनुसार, वनवास काल के दौरान भगवान श्रीराम के भी यहां से गुजरने की मान्यता है. जिससे इस क्षेत्र का धार्मिक गौरव और भी बढ़ जाता है. भुरहा में पिंडदान की परंपरा आज भी निभायी जाती है. साथ ही यहां स्थित प्राचीन कुंड श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. हस्तशिल्प और ग्रामीण बाजार का उत्सव मेले में पत्थर से बनी सिलवट, ओखली, लोहे की कड़ाही और लकड़ी से बने पारंपरिक सामान की बिक्री होती है. यह मेला क्षेत्रीय कारीगरों के लिए आजीविका का बड़ा अवसर होता है. खरीदारी करने के लिए दूर-दूर से लेग आते हैं. पारंपरिक लोकगीत और नृत्य, स्थानीय व्यंजन और मिठाइयों की दुकानें, बच्चों के लिए झूले और खेल, और ग्राम्य संस्कृति की जीवंत झलक इस मेले का मुख्य आकर्षण है.
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