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आजादी के गुमनाम नायकों की कहानी: 1857 विद्रोह में बिहार के रणबांकुरे, अली करीम और पीर अली

1857 के विद्रोह में बिहार के एक से बढ़कर एक रणबांकुरे शामिल थे. लेकिन इतिहास में इसका जिक्र कम ही मिलता है। उस समय की कई घटनाएं गुमनामी के अंधेरे में खो गई हैं या फिर स्थानीय स्तर पर ही चर्चा में हैं. उस दौर के रणबांकुरों की यादें समय के साथ धुंधली हो गई हैं. ऐसे ही दो रणबांकुरें हैं अली करीम और पीर अली. पढ़िए इन दो वीरों पर सुशील भारती की रिपोर्ट...

Independence day: गया शहर में पुराना करीमगंज नाम का एक मोहल्ला है. डेल्हा पुल के पास बड़ी मस्जिद में मोहम्मद अली करीम की कब्र है. मोहल्ले के लोगों ने प्रभात खबर को बताया कि अली करीम ने 1857 में मेरठ सैनिक विद्रोह से पहले ही गया के लोगों को ब्रिटिश सरकार के खिलाफ संगठित करना शुरू कर दिया था. गया और आसपास के इलाकों में 1857 के विद्रोह में अली करीम ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उनकी गतिविधियों से संबंधित कुछ दस्तावेज बिहार राज्य अभिलेखागार, पटना में उपलब्ध हैं. 1857 पर सावरकर की किताब में भी उनका जिक्र है.

बिहार में क्रांतिकारी समिति के नेता थे अली करीम

1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान बिहार में एक क्रांतिकारी समिति थी, अली करीम इसके नेता थे. वे गया के रहने वाले थे. मेरठ विद्रोह के तुरंत बाद पटना के कलेक्टर टेलर को उनके खिलाफ कुछ सबूत मिले, इसलिए उन्होंने मिस्टर लुइस नामक अधिकारी के नेतृत्व में ब्रिटिश सैनिकों की एक टुकड़ी को उन्हें गिरफ्तार करने के लिए गया भेजा.

वारिस अली को पटना में दी गई थी फांसी

मेरठ विद्रोह से पहले अंग्रेज अधिकारियों को किसी क्रांतिकारी समिति के अस्तित्व के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. लेकिन विद्रोह के बाद अंग्रेज सतर्क हो गए. उन्होंने खुफिया तंत्र को सक्रिय कर दिया. पटना के कलेक्टर मिस्टर टेलर भी चौकस हो गए. उस समय संदेह के आधार पर तिरहुत प्रमंडल के एक पुलिस जमादार वारिस अली को छापेमारी के दौरान गिरफ्तार किया गया. वह क्रांतिकारी समिति का सदस्य था. गिरफ्तारी के समय उनके पास से कुछ संदिग्ध दस्तावेज बरामद हुए. इसमें गया के अली करीम को संबोधित एक पत्र भी शामिल था. वारिस अली को पटना लाकर फांसी दे दी गई.

अली करीम को पकड़ने ने अंग्रेजों ने लुई को भेजा था

लुई को अली करीम को पकड़ने के लिए भी भेजा गया था. लुई अली करीम के ठिकाने पर पहुंच चुका था, लेकिन समिति के खुफिया तंत्र ने अली करीम को पहले ही सतर्क कर दिया था. लुई के कार्रवाई करने से पहले ही अली करीम हाथी पर सवार होकर भाग गया. लुई ने अपनी सैन्य टुकड़ी के साथ टट्टुओं पर उसका पीछा किया.

स्थानीय लोगों ने जब देखा कि अली करीम हाथी पर भाग रहे हैं और कुछ अंग्रेज सैनिक उनका पीछा कर रहे हैं, तो उन्होंने लुइ के समूह पर पत्थरों से हमला कर दिया. इसमें वह उलझ गया. इस बीच अली करीम काफी दूर निकल गए. लुइ किसी तरह वहां से आगे बढ़ा लेकिन अगले गांव के स्थानीय लोगों ने उसे गुमराह करके विपरीत दिशा में भेज दिया. उन्होंने उसका टट्टू छीन लिया. ऐसी दयनीय स्थिति के बाद लुइ किसी तरह वापस लौटने में कामयाब रहा.

जाने से पहले उसने गया के भारतीय सैनिकों को अली करीम को गिरफ्तार करने का काम सौंपा. उसे क्या पता था कि जिन लोगों को वह निर्देश दे रहा है, वे पहले से ही क्रांतिकारी समिति का हिस्सा थे और अली करीम के शुभचिंतक थे.

हाथी पर सवार होकर कहां गए करीम, किसी को पता नहीं

अली करीम हाथी पर सवार होकर कहां गए, इस बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. गया में पुराने करीमगंज, नए करीमगंज या अलीगंज का नामकरण अली करीम से संबंधित हो सकता है, हालांकि यह शोध का विषय है. निश्चित रूप से उस समय हाथी रखने वाला कोई साधारण व्यक्ति नहीं रहा होगा. समाज में उसका बड़ा रुतबा रहा होगा. इसीलिए उन्हें मस्जिद परिसर में दफनाया गया.

पांच-छह साल की तैयारी के बाद हुआ था 1857 का विद्रोह

सावरकर ने अपनी किताब में बताया है कि 1857 का समर अचानक हुए विद्रोह की घटना नहीं थी. इसकी तैयारी पांच-छह साल पहले से ही की जा रही थी. इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक गुप्त क्रांतिकारी समिति बनाई गई थी. इसका काम ब्रिटिश शासन के खिलाफ जनमत तैयार करना, राष्ट्रवादी रियासतों और भारतीय सैनिकों के बीच समन्वय स्थापित करना था. इसकी बिहार इकाई का मुख्यालय पटना में था, जिसका नेतृत्व वहाबी मुसलमानों के मौलवी करते थे.

भोज पर बुलाकर मौलवियों को किया था गिरफ्तार

कंपनी सरकार को इस बात का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं था कि सैन्य छावनियों में भारतीय सैनिकों से संपर्क करके विद्रोह की तैयारी की जा रही है. उस दौरान पटना के कलेक्टर टेलर को तीन मौलवियों के बारे में जानकारी मिली. अगर उन्हें सीधे गिरफ्तार किया जाता तो जनाक्रोश भड़कने का खतरा था. ऐसे में टेलर ने उन्हें पटना के संभ्रांत लोगों के साथ दावत पर बुलाया और इसी बहाने धोखे से गिरफ्तार कर लिया. लेकिन उनके पास कमेटी की विस्तृत रिपोर्ट नहीं थी.

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पटना में किताबें बेचते थे पीर अली

1857 के विद्रोह के नेता पीर अली का पटना में स्मारक है. लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि वे कौन थे और 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में उनका क्या योगदान था. जानकारी के अनुसार पीर अली लखनऊ के रहने वाले थे. पटना में वे जाहिर तौर पर अपनी आजीविका के लिए किताबें बेचते थे. लेकिन क्रांतिकारी समिति में उनका इतना ऊंचा स्थान था कि संगठन की ओर से उनकी सुरक्षा के लिए एक दर्जन हथियारबंद अंगरक्षक नियुक्त किए गए थे. दानापुर कैंट के भारतीय सैनिकों, बाबू कुंवर सिंह समेत देश भर में समिति की इकाइयों और क्रांतिकारी नेताओं से उनका सीधा संपर्क था.

पीर अली ने अंग्रेजी सैन्य अधिकारी को मारी गोली

टेलर ने विद्रोह की आशंका के चलते पटना में रात नौ बजे के बाद घरों से निकलने पर पाबंदी लगा दी थी. ऐसे में क्रांतिकारी समिति की बैठकें मुश्किल हो गईं. फिर भी एक दिन पीर अली ने अपने घर पर 200 हथियारबंद क्रांतिकारियों की बैठक बुलाई. वे एक-दो के समूह में जुटने लगे. अगली सुबह वे सड़कों पर निकल आए और अंग्रेजों के खिलाफ नारे लगाने लगे. उन्हें नियंत्रित करने के लिए टेलर ने लॉयल नामक सैन्य अधिकारी के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना की एक टुकड़ी भेजी. जैसे ही अंग्रेज सैनिक दिखे, पीर अली ने लॉयल को सीधे गोली मार दी.

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हंसते हुए फांसी पर चढ़ गए पीर अली

इससे अंग्रेज सैनिकों में भगदड़ मच गई. इसके बाद एक बड़ी टुकड़ी भेजी गई. उनके साथ भीषण युद्ध हुआ. अंग्रेजों ने उन पर काबू पा लिया. नतीजतन, कई क्रांतिकारी शहीद हो गए. कई गिरफ्तार हुए. घायल अवस्था में गिरफ्तार होने वालों में पीर अली भी थे यहां तक ​​कि जब उनके गले में फांसी का फंदा डाला जा रहा था, तब भी उनसे कहा गया था कि अगर वे अपने साथियों के नाम बता देंगे, तो उनकी जान बख्श दी जाएगी. लेकिन पीर अली ने कहा कि कभी-कभी जान बचाने से बेहतर है कि जान दे दी जाए. उन्होंने हंसते हुए फांसी का फंदा चूम लिया.

आज स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे भूले-बिसरे महानायकों को विस्मृति के अंधेरे से ढूंढ-ढूंढ कर निकालने और उनका योगदान जन-जन तक पहुंचाने की जरूरत है.

Anand Shekhar
Anand Shekhar
Dedicated digital media journalist with more than 2 years of experience in Bihar. Started journey of journalism from Prabhat Khabar and currently working as Content Writer.

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