गोपालगंज. एनएच-27 के इस्ट-वेस्ट कॉरिडोर पर गंडक नदी पर बना गोपालगंज का डुमरिया सेतु अब पूरी तरह जर्जर हो चुका है. 1974 में बना यह दो लेन का पुल बीते दो दशकों से खस्ताहाल है. भारी वाहनों के गुजरते ही पुल कांपने लगता है और हर साल कई हादसे हो रहे हैं.
निर्माण में सबसे बड़ी बाधा गंडक नदी की तेज धार
यही कारण है कि इस पुल के समानांतर नये सेतु के निर्माण की मांग लंबे समय से हो रही है. नये सेतु का निर्माण कार्य वर्ष 2007 में शुरू हुआ था, लेकिन अब तक अधर में है. पांच बार टेंडर निकाले जाने के बावजूद 17 वर्षों में कोई कंपनी निर्माण कार्य को पूरा नहीं कर सकी. निर्माण में सबसे बड़ी बाधा गंडक नदी की तेज धार बनी हुई है, जिसकी वजह से कंक्रीट से बने स्पैन बार-बार क्षतिग्रस्त हो जा रहे हैं.
सांसद ने जेपी सेतु मॉडल को अपनाने का दिया था निर्देश
एनएचएआइ के विशेषज्ञों की रिपोर्ट के आधार पर सांसद डॉ आलोक कुमार सुमन ने दिशा समिति की बैठक में इस मुद्दे को उठाया और स्थायी समाधान के लिए जेपी सेतु मॉडल को अपनाने का निर्देश दिया. इसके बाद विशेषज्ञों ने गंडक नदी पर स्टील स्पैन से नया पुल बनाने का सुझाव दिया है. जेपी सेतु के तर्ज पर स्टील स्ट्रक्चर से सेतु निर्माण का प्रस्ताव अब केंद्र सरकार को भेजा गया है.केंद्र स्तर से सकारात्मक संकेत : सांसद
सांसद डॉ सुमन ने बताया कि प्रस्ताव पर केंद्र स्तर से सकारात्मक संकेत मिले हैं और प्रक्रिया अंतिम चरण में है. मंजूरी मिलते ही डुमरिया घाट पर स्टील स्पैन से बना नया पुल तैयार किया जायेगा, जिससे हादसों और जाम की समस्या का समाधान संभव हो सकेगा. यह पुल अंतरराष्ट्रीय सीमा की दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है और इसके निर्माण से उत्तर बिहार को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद जगी है. हर साल 10 से 12 बड़े हादसे हो रहे : स्थानीय लोगों के अनुसार हर साल 10 से 12 बड़े हादसे हो रहे हैं, जिससे कभी भी बड़ी त्रासदी की आशंका बनी हुई है. हर दिन करीब 12 से 16 हजार वाहन इस पुल से गुजरते हैं. ट्रैफिक लोड और जर्जर स्थिति के कारण अक्सर पुल पर जाम लगता है. सीओ की रिपोर्ट में पुल के ‘स्विंग’ करने की पुष्टि हो चुकी है. बावजूद इसके अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया.2007 से ही बन रहा समानांतर सेतु
डुमरिया सेतु के समानांतर नया पुल बनाने की योजना वर्ष 2007 में शुरू हुई थी. 88 करोड़ रुपये की लागत से इसकी नींव रखी गयी थी, लेकिन 2011 में निर्माण के दौरान एक पाया धंसने से काम बंद हो गया. निर्माण कंपनी पीसीएल ने काम अधूरा छोड़ दिया और फरार हो गयी. इसके बाद एनएचएआइ ने चार बार टेंडर निकाला, लेकिन कोई कंपनी तैयार नहीं हुई. वर्ष 2022 में पांचवीं बार 167 करोड़ की लागत से टेंडर जारी किया गया, लेकिन काम अब तक अधूरा है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है