बरौली. चाहे होली हो या दीवाली, ईद हो या मुहर्रम, बरौली की फिजां में एकता और भाईचारा पूरी तरह से घुली है. यहां के लोग इन त्योहारों को एक-दूसरे के साथ इस तरह मनाते हैं, जैसे वह उन्हीं का त्योहार हो. ईद में गले मिलकर सेवइयां खानी हो या होली के पकवान, लगता ही नहीं कि यहां अलग धर्म के अनुयायी हैं. शहर के प्रसिद्ध काली पूजा में मो आरिफ, मो कलाम, फिरोज, हसनैन आदि शिरकत कर उसे सफल बनाते हैं, उसी तरह बरौली के ऐतिहासिक महावीरी अखाड़ा मेले में भी मुसलमान धर्म के लोग इसे अपनी पूजा समझ गदका खेलते हैं तथा महावीर की मूर्ति को कंधा भी देते हैं. अब जबकि मुहर्रम सामने है और ताजिया निर्माण हो रहा है, इसमें दोनों कौम के कारीगरों का कमाल देखते बन रहा है. ताजिया बनाने वाले शहर के ही वरुण कुमार व तरुण कुमार, रूपेश कुमार अपने साथियों मुमताज अली, राजन, आजुल अली, जुबैद अली, फरियाज अली, अरमान अली, आजाद आलम, शहादत अली आदि के साथ जोर-शोर से ताजिया निर्माण में लगे हैं. हिंदू कारीगरों ने बताया कि ताजिया निर्माण के लिए कोई शुल्क नहीं है और यह पूरी तरह भाईचारा और मानवता को समर्पित सेवा है. हां, इस बात की होड़ जरूर रहती है कि ताजिया सबसे खूबसूरत किसने बनाया है. पिछले कई दिनों से भड़कुईयां अखाड़े के लिए रातों में जग कर ताजिया बनाने वाले कारीगरों का कहना है कि यहां हिंदू-मुसलमान चंदन और पानी की तरह हैं, जो कहीं अलग नही हैं. ताजिया ही नहीं, ये शहर भी हमारा है और सारे अपने हैं, यहां हिंदू-मुसलमान कोई नही, केवल इंसान हैं. वस्तुतः इस शहर की फिजां में कहीं भी किसी धर्म के प्रति कड़वाहट नहीं बल्कि भाईचारा, सौहार्द और एकता सदियों से चली आ रही है और चलती रहेगी. यहां सभी एक-दूसरे के दिल में हैं, दिमाग में कोई नहीं और ऐसा विरले ही देखने को मिलता है. मुहर्रम अखाड़ा के नूर आलम, अलाउद्दीन, साबिर हुसैन, रोजाद्दीन, मो सगीर, मो कासिम आदि ने बताया कि ताजिया के गंवारा में रोज हमारे साथ हिंदुओं की संख्या मुस्लिम युवकों से अधिक रहती है, वे झंडे उठाते हैं, गदका खेलते हैं, इस बार मुहर्रम छह जुलाई को है, जिसे हम सभी हिंदू-मुस्लिम एक साथ मनायेंगे.
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