भोरे. नवनिर्मित हनुमान मंदिर परिसर में चल रहे नौ दिवसीय रुद्र महायज्ञ सह श्रीराम कथा के छठे दिन कथावाचक पुंडरीक जी महाराज ने भगवान श्रीराम के जनकपुर आगमन, पुष्पवाटिका मिलन और धनुष भंग प्रसंग का भावपूर्ण वर्णन किया. कथा में कहा गया कि मिथिला के राजा जनक, जिन्हें विदेह कहा जाता है, वे भी सगुण साकार श्रीराम के सौंदर्य को देखकर मोहित हो गये. उन्होंने बताया कि निराकार ब्रह्म के ज्ञान के लिए पहले साकार ब्रह्म को जानना जरूरी है. ज्ञान तभी सार्थक है जब उसमें भक्ति का जल हो. जनक ने जब ईश्वर से संबंध बनाना चाहा, तभी उनका ससुर-दामाद का संबंध भी संभव हुआ. पुंडरीक जी महाराज ने कहा कि श्रीराम ने गुरुदेव विश्वामित्र की आज्ञा से नगर-दर्शन के बहाने नाम और रूप की दीक्षा दी. राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं तो कृष्ण लीला पुरुषोत्तम. राम धर्म युग के प्रतिनिधि हैं, जबकि श्रीकृष्ण काल युग धर्म के. पुष्प वाटिका प्रसंग में गुरु की प्रेरणा से श्रीराम और सीता का मिलन हुआ. कथा में यह भी बताया गया कि अहंकार रूपी धनुष को तोड़कर भगवान ने यह संकेत दिया कि जब तक अहंकार नहीं टूटता, तब तक भक्ति माला नहीं पहनाती. इस दौरान बिहार सरकार के शिक्षा मंत्री सुनील कुमार भी महायज्ञ स्थल पर पहुंचे. उन्होंने कहा कि सनातन ही पुरातन है, इसमें आदर, प्रेम और समत्व है. यह संस्कृति पूरे विश्व को जोड़ने वाली है. यज्ञाचार्य पं. वीरेंद्र शुक्ल, यज्ञाध्यक्ष विद्याभूषण मिश्र, संत विश्वंभर दास जी, महंत वैदेही जी महाराज (अयोध्या), मुख्य यजमान धनंजय मिश्र, पूर्व मुखिया पति बड़े ओझा, कृष्णानंद ओझा, डबलू तिवारी, ध्रुवदेव उपाध्याय, जवाहिर मिश्र, शिवमुरारी ओझा, रमाशंकर प्रसाद, देवकांत मिश्र, शैलेश मिश्र, पं. हृदयानंद मिश्र, सूर्यनाथ ओझा, त्रिभुवन मिश्र, अनूप मिश्र, केशव मिश्र सहित सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित थे.
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