जमुई . मुहर्रम की 10वीं तारीख रविवार को इमाम हुसैन की शहादत की याद में शहर के विभिन्न मोहल्ले में सिपल व ताजिया के साथ मुस्लिम समुदाय के लोगों ने अखाड़ा जुलूस निकाला गया. इस दौरान शहर के थाना चौक, महिसौड़ी सहित कई स्थानों से अखाड़ा निकाला गया जो शहर के निर्धारित मार्गों होते हुए गंतव्य स्थान पर जाकर समाप्त हो गया. इस दौरान विभिन्न अखाड़ों के खलीफा के नेतृत्व शहर के विभिन्न स्थानों पर मुस्लिमों ने युद्ध के साजो-समान, लाठी, भाला, तलवार, बाणा आदि के साथ महिसौड़ी चौक, खैरा मोड़, थाना चौक आदि स्थानों पर करता दिखाये. उत्साही युवकों द्वार बारी-बारी से सिपल घूमाया गया जबकि इमाम हुसैन के शहादत पर कई गीत भी गाये गये. अधिकांश लोगों ने नवमीं और दसमीं का रोजा रख और देर शाम रोजा खोला. इस दौरान विधि-व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए पुलिस बल हर चौक-चौराहे पर तैनात थे जबकि अखाड़ा के साथ भी कई पुलिस पदाधिकारी साथ चल रहे थे.
मुहर्रम में रोजा रखें व इबादत करें : मौलाना फारूक
जमुई. इस्लाम का नया साल मुहर्रम से ही शुरू होता है दस मुहर्रम को याजिदियों की फौज ने मैदाने करबला में हजरत इमाम हुसैन को शहीद कर दिया था. दुनिया की तारीख में ऐसी क्रूरता शायद ही कहीं दूसरी जगह नजर आती है जैसा कि यजीद की फौज ने मैदान-ए-करवला में मौत का तांडव खेला था. उक्त बातें महिसौड़ी मदरसा के मौलाना फारूक अशरफी ने कहीं. उन्होंने कहा कि मुहर्रम को भी खुशियों का त्योहार समझे पर पटाखे फोड़ते है या फिर जश्न मनाते हैं इस्लाम में इसकी कोई गुंजाइश नहीं है. मुहर्रम इमाम हुसैन की शहादत को याद करने के लिए मनाया जाता है. उन्होंने कहा कि नवमीं व दसवीं मुहर्रम को रोजा रखना चाहिए और ज्यादा से ज्यादा इबादत करना चाहिए. इस्लाम धर्म को लाने वाले हजरत मुहम्मद सल्लाह हो अलैहे वसल्लम की एकलौती पुत्री बीबी फातिमा के दूसरे पुत्र इमाम हुसैन को याजिदयों ने सिर्फ इस लिए कत्ल करवा दिया कि उन्होंने याजीद के हाथों परौत करने से इंकार कर दिया था. इमाम हुसैन ने याजीद की तानाशाही के खिलाफ आवाज बुलंद की थी और उसके कुशासन का विरोध किया था.
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