सिकंदरा. शराब कांड के अभियुक्त रंजीत कोड़ा, नरेश कोड़ा व गोलक कोड़ा की तलाश में अवर निरीक्षक बिपिन कुमार पाल्टा के नेतृत्व में पुलिस ने शनिवार की आधी रात को नक्सल प्रभावित कोड़ासी गांव में छापेमारी की. इस दौरान पुलिस ने वांछित अभियुक्त नरेश कोड़ा को गिरफ्तार कर लिया. वहीं ग्रामीणों ने पुलिस पर नशे की हालत में उत्पात मचाने, महिलाओं से अभद्रता करने और निर्दोष व्यक्ति की गिरफ्तारी जैसे गंभीर आरोप लगाया है. अचानक की गयी कार्रवाई से ग्रामीण उग्र हो गये और पुलिस वाहनों पर पथराव कर दिया. रोड़े बाजी में पुलिस के दो वाहनों का शीशा टूट गया. जब पुलिस ने एक अन्य अभियुक्त गोलक कोड़ा की जगह उसके भाई देवानंद कोड़ा को हिरासत में ले लिया, जिसकी एक दिन बाद शादी होनी थी, तो इससे नाराज ग्रामीणों ने रविवार की सुबह सैकड़ों की संख्या में लछुआड़ थाना का घेराव कर उग्र प्रदर्शन किया. घंटों चले हंगामे के बाद पुलिस ने युवक को रिहा किया, तब जाकर मामला शांत हुआ. ग्रामीणों का कहना है कि पुलिस ने बिना किसी स्थानीय जनप्रतिनिधि या सम्मानित व्यक्ति को सूचना दिये अंधाधुंध छापेमारी शुरू कर दी. कई घरों के दरवाजे-खिड़कियां में धक्का मार कर जबरन घरों को खुलवा कर तलाशी ली गयी. ग्रामीणों का आरोप है कि जवान शराब के नशे में धुत थे और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया गया. छापेमारी के दौरान पुलिस कई घरों में जबरन घुस गयी.
ग्रामीणों ने कहा- कोड़ासी के इतिहास को दरकिनार कर गयी पुलिस
ग्रामीणों ने कहा कि कोड़ासी गांव कोई सामान्य गांव नहीं है. यह वह धरती है जिसने नक्सलियों के खिलाफ खुलकर प्रतिरोध किया है और उसके बदले 2010 में नरसंहार का दंश झेला है. 11 ग्रामीणों की नृशंस हत्या और दर्जनों घरों को जलाये जाने के बाद भी यहां के लोग डरे नहीं. ग्रामीणों ने नक्सलियों का खुलकर विरोध किया और प्रशासन का साथ दिया. ग्रामीणों का कहना है कि ऐसे संवेदनशील गांव में आधी रात को बिना सूचना के पुलिस कार्रवाई करना केवल नियमों की अवहेलना नहीं, बल्कि ग्रामीणों की सुरक्षा भावना और विश्वास का सीधा अपमान है. डीजीपी विनय कुमार ने भी 20 दिन पूर्व सिकंदरा के सीमावर्ती क्षेत्र हलसी थाना के तरहारी गांव में पुलिस अधिकारियों को हिदायत देते हुए कहा था कि किसी घर के सर्च अभियान के दौरान किसी सम्मानित व्यक्ति को गवाह बनाकर साथ रखा जाये. अवर निरीक्षक बिपिन पाल्टा की इस कार्रवाई ने पुलिस पर ग्रामीणों के विश्वास को डगमगाया है.
ग्रामीणों के दिलों में आज भी ताजा है नरसंहार का जख्म
कोड़ासी गांव का नाम सुनते ही आज भी आदिवासी समाज के दिल में 17 फरवरी 2010 की वह रात कौंध जाती है, जब नक्सलियों के हथियारबंद दस्ते ने पूरे गांव को आग और गोलियों से दहला दिया था. 11 निर्दोष आदिवासियों की हत्या और 50 से अधिक घरों को डायनामाइट व पेट्रोल बम से उड़ाए जाने का वह मंजर आज भी लोगों की स्मृतियों में जीवित है. नक्सल प्रभावित फुलवड़िया कोड़ासी गांव नक्सलियों के खिलाफ लोहा लेने के लिए चर्चित रहा है. 1990 के दशक में जब जन्मस्थान और पाठकचक के जंगल नक्सलियों के गढ़ बन चुके थे, तब धीरे-धीरे उनका प्रभाव लछुआड़ तक बढ़ता चला गया. मैनेजर राय गिरोह ने काली पूजा के दौरान मेला में तैनात पुलिस जवानों से हथियार लूटकर इस क्षेत्र में अपने वजूद का ऐलान किया था. कुंडघाट जंगल और उसके आस-पास के क्षेत्रों में नक्सली इस कदर हावी हो चुके थे कि आम लोग तो क्या पुलिस-प्रशासन के अधिकारी भी जाने से कतराते थे. लेकिन कोड़ासी ने नक्सलियों के आगे कभी घुटने नहीं टेके. नक्सलियों ने गांव के लोगों पर गिरोह के सदस्यों की हत्या का आरोप लगाकर नरसंहार किया, तब भी ग्रामीणों ने हिम्मत नहीं हारी. बाद में सीआरपीएफ की स्थायी तैनाती से गांव में सुरक्षा का माहौल बना और नक्सल विरोधी मुहिम को बल मिला. इसके बाद पाठकचक, कुंडघाट और कैलाश डैम इलाके में कई मुठभेड़ हुईं, लेकिन कोड़ासी के बहादुर ग्रामीणों ने हर बार नक्सलियों का विरोध किया. नक्सली कोड़ासी गांव के ग्रामीणों पर शरण देने और नक्सल अभियान में शामिल होने का दबाब बनाते थे, जिसका कोड़ासी के बहादुर ग्रामीणों ने कड़ा विरोध किया था. 2010 में नक्सलियों ने कोड़ासी के ग्रामीणों पर नक्सल गिरोह से जुड़े 8 लोगों की हत्या का आरोप लगाते हुए उसके प्रतिशोध में 17 फरवरी 2010 की रात नक्सलियों के हथियारबंद दस्ते ने अत्याधुनिक स्वचालित हथियार, बम एवं पेट्रोल बम से हमला कर दिया था. नक्सलियों के हमले में 11 आदिवासियों की मौत हुई थी वहीं 50 से अधिक घरों को पेट्रोल बम और डायनामाइट से उड़ा दिया गया था. नरसंहार के मुख्य निशाने पर पिंटू राय और अजय कोड़ा थे. जहां पिंटू राय कई बार बाल-बाल बचे, वहीं अजय कोड़ा को 28 मार्च 2014 को धावाटांड़ गांव में घेरकर नक्सलियों ने बेरहमी से गला रेत कर मार डाला. बावजूद इसके, ग्रामीणों का मनोबल नहीं टूटा. जिला प्रशासन द्वारा बरहट प्रखंड से भी कई आदिवासी परिवारों को नक्सलियों से बचाने के लिए कोड़ासी में बसाया गया. यही वजह है कि यह गांव आज भी नक्सलियों की आखों में कांटे की तरह चुभता है. कोड़ासी के लोग आज भी रात के समय बाहर से आने-जाने वालों पर कड़ी नजर रखते हैं, ताकि दोबारा वैसी कोई त्रासदी न दोहराई जा सके.
नरसंहार का घाव गहरा, पर हौसला और भी बुलंद
कोड़ासी सिर्फ एक गांव नहीं, नक्सलवाद के खिलाफ आदिवासी चेतना और प्रतिरोध का प्रतीक बन चुका है. यहां के लोग आज भी उस नरसंहार की याद से कांप उठते हैं, लेकिन साथ ही इस बात पर गर्व भी करते हैं कि उन्होंने नक्सलियों के सामने झुकने के बजाय उन्हें चुनौती दी. आज जब किसी पुलिस कार्रवाई में संवेदनशीलता की कमी देखी जाती है, तो कोड़ासी के ग्रामीणों का वह जख्म फिर से हरा हो उठता है. पुलिस-प्रशासन को यह नहीं भूलना चाहिए कि यह गांव पहले ही बहुत कुछ झेल चुका है.
बिपिन पाल्टा की कार्यशैली पर उठे सवाल
अवर निरीक्षक बिपिन कुमार पाल्टा की कार्यशैली को लेकर न केवल ग्रामीणों बल्कि राजनीतिक और सामाजिक संगठनों में भी नाराजगी है. रविवार को आदिवासियों के प्रदर्शन के बीच क्षेत्र के कई पंचायत प्रतिनिधियों व गणमान्य लोगों ने थाना पहुंच कर थानाध्यक्ष के समक्ष पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाया. विदित हो कि लछुआड़ थाना क्षेत्र में अवैध देसी शराब का कारोबार व्यापक पैमाने पर होता है और इसे पुलिस द्वारा संरक्षण देने का भी मामला समय समय पर उजागर होता रहा है. 10 माह पूर्व भी तत्कालीन थानाध्यक्ष राकेश कुमार व एक पीटीसी जवान को शराब विक्रेता से सांठगांठ के आरोप में निलंबित करते हुए लाइन हाजिर किया गया था. कोड़ासी गांव के ग्रामीण प्रशासन से अवर निरीक्षक बिपिन पाल्टा के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहे हैं. ग्रामीणों का कहना है कि पुलिस की मनमानी और दमनकारी रवैये से कोड़ासी फिर से अस्थिर हो सकता है.
बोले एसडीपीओ
एसडीपीओ सतीश सुमन ने इस संबंध में कहा कि शनिवार की रात अभियुक्त को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस कोड़ासी गांव गयी थी. जहां ग्रामीणों ने पुलिस बलों पर पथराव किया है. पुलिस बल पर पथराव के मामले में प्राथमिकी दर्ज कर कार्रवाई की जायेगी.
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