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मोहर्रम का दिखा चांद , इस्लामिक महीना हुआ शुरू

शुक्रवार को मुहर्रम की पहली तारीख और हजरत इमाम हुसैन की शहादत यौम ए आशूरा 6 जुलाई को मनाया जायेगा

– छह जुलाई को हजरत इमाम हुसैन की शहादत मनाया जाएगा यौम ए आशूरा जमुई. इस्लामिक महीने मुहर्रम का चांद गुरुवार को देखा गया. उक्त जानकारी देते हुए शहर के महिसौड़ी में मदरसा अशरफिया मुखतारुल उलूम से संचालक मौलाना फारूक अशरी ने कहा कि शुक्रवार को मुहर्रम की पहली तारीख और हजरत इमाम हुसैन की शहादत यौम ए आशूरा 6 जुलाई को मनाया जायेगा क्यों मनाते हैं मुहर्रम – मुहर्रम का महीना इस्लाम धर्म के लोगों के लिए बहुत खास होता है यह महीना त्याग और बलिदान की याद दिलाता है. मुहर्रम, बकरीद के 20 दिन बाद मनाया जाता है मुहर्रम के दिन खुदा के नेक बंदे हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी, इसलिए मुस्लिम समुदाय के लोग इस महीने हुसैन को याद करते हुए मातम मनाते हैं. हजरत इमाम हुसैन इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब के छोटे नवासे थे. मुहर्रम पर हुसैन की याद में ताजिया उठाया जाता है और मुस्लिम समुदाय के लोग मातम मनाते हुए रोते हैं. कर्बला की जंग में इस दिन क्या हुआ था – इस्लामिक मान्यता के अनुसार कर्बला की जंग 1400 साल पहले हुई थी जिसमें पैगंबर मोहम्मद के नवासे इमाम हुसैन की शहादत हो गयी थी. इस्लाम की शुरुआत मदीना से मानी जाती है मदीना से कुछ दूरी पर मुआविया नाम का एक शासक था, जिसके मरने के बाद उसके बेटे यजीद को शाही गद्दी पर बैठाया गया था. यजीद बहुत ही क्रूर शासक था यजीद अपना खुद का अलग मजहब बनाना चाहता था, जिसकी वजह से उसने लोगों को अपने आदेशों को पालन करने के लिए कहा और खुद को इस्लाम का खलीफा मानने के लिए कहा. यजीद जानता था कि मोहम्मद साहब के नवासे इमाम हुसैन के समर्थक बहुत ज्यादा थे, इसलिए उसने इमाम हुसैन से कहा कि अपने समर्थकों से कहे कि वो यजीद को ही खलीफा मानें. जब इमाम साहब ने यजीद की बात नहीं मानी, तो उसने लोगों पर क्रूरता करनी शुरू कर दी उसने सभी लोगों पर जुल्म ढाए. हुसैन के काफिले पर यजीद ने किए जुल्म – मुहर्रम की 10 तारीख को यजीद की फौज और हुसैन के काफिले के बीच जंग हुई. यजीद की फौज बहुत बड़ी थी और हुसैन के साथ सिर्फ 72 लोग थे. हुसैन ने अपने साथियों से कहा कि वे उन्हें छोड़कर चले जायें, लेकिन कोई भी नहीं गया. हुसैन जानते थे कि यजीद बहुत ताकतवर था और उसके पास बहुत सारे हथियार थे. हुसैन के पास इतनी ताकत नहीं थी फिर भी हुसैन ने यजीद के सामने झुकने से इंकार कर दिया. हुसैन ने अपने साथियों के साथ मिलकर यजीद की फौज का डटकर मुकाबला किया लेकिन कोई भी हुसैन को छोड़कर वहां से नहीं गया यह हुसैन और उनके साथियों की वीरता और साहस का परिचय देता है. इमाम हुसैन के साथ उनके परिवार का बेरहमी के साथ कत्ल किया गया – 10वीं तारीख को हुसैन साहब सहित उनके साथियों पर यजीद ने हमला कर दिया. यजीद ने हुसैन साहब के काफिले को घेर लिया और सरेआम उनके काफिले में मौजूद सभी लोगों का कत्ल कर दिया. बाद में उसने इमाम हुसैन सहित उनके 18 साल के बेटे अली अकबर, 6 महीने के बेटे अली असगर और 7 साल के भतीजे कासिल को भी बेरहमी से मार डाला. इस तरह इस्लामिल कैलेंडर के अनुसार 10वीं तारीख को इमाम हुसैन सहित उनके पूरे काफिले की शहादत हुई थी. इमाम हुसैन की शहादत का शोक मनाते हुए मुहर्रम पर मुस्लिम समुदाय के लोग इमाम हुसैन, उनके परिवार और बाकी साथियों को याद करते हैं.

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