चंद्रमंडीह. चकाई थाना क्षेत्र अंतर्गत बिहार-झारखंड सीमा पर सरौन मोड़ के समीप बीते शुक्रवार की रात्रि करीब साढ़े 8 बजे एक स्कूटी सवार की किसी अज्ञात वाहन की चपेट में आ जाने से उसकी मौत हो गयी. मृतक 32 वर्षीय शंकर विश्वकर्मा, पिता ब्रह्मदेव विश्वकर्मा सरौन गांव का ही निवासी था. मिली जानकारी के अनुसार, शंकर झारखंड के चतरो में गाड़ी के शोरूम में काम करता था. रोज की तरह ड्यूटी खत्म होने के बाद वह चतरो से अपना घर वापस लौट रहा था. इसी दौरान रात्रि करीब साढ़े आठ बजे चकाई-गिरिडीह मुख्य मार्ग पर सरौन मोड़ के समीप किसी अज्ञात वाहन की चपेट में आकर बुरी तरह दुर्घटनाग्रस्त हो गया. टक्कर इतना जोरदार था कि वह सड़क से काफी दूर जाकर गिर गया. इस कारण उसके सिर में गहरी चोट थी. वहीं दुर्घटना के तत्काल बाद गिरिडीह की ओर से चार पहिया वाहन पर सवार होकर गुजर रहे कुछ कांवरियों ने जब उसे घायल अवस्था में सड़क किनारे देखा तो उनलोगों ने तत्काल उसे अपने वाहन से चकाई रेफरल अस्पताल पहुंचाया. जहां प्रारंभिक उपचार के बाद गंभीर स्थिति को देखते हुए चिकित्सक ने बेहतर उपचार के लिए देवघर रेफर कर दिया. इस दौरान कांवरियों ने उसकी सलामती की कामना भी भगवान भोले से की, लेकिन सिर में गहरी चोट आने व बहुत अधिक रक्त स्राव हो जाने के कारण देवघर में इलाज के क्रम में उसकी मौत हो गयी. इधर, घटना की सूचना मिलने के बाद चकाई पुलिस दलबल के साथ मृतक के घर पहुंची तथा शव को अपने कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए जमुई भेज दिया. वहीं घटना के बाद बड़ी संख्या में लोग मृतक के घर पहुंचे तथा शोक संतप्त परिवार को ढाढ़स बंधाया.
शंकर के निधन से परिवार पर टूटा दुखों का पहाड़
सरौन निवासी शंकर विश्वकर्मा की सड़क दुर्घटना में मौत के बाद परिजनों पर दुखों का पहाड़ा टूट पड़ा है. वह अपने पीछे वृद्ध माता-पिता, पत्नी ज्योति विश्वकर्मा सहित 11 वर्षीय पुत्र निखिल विश्वकर्मा व 6 वर्षीय पुत्री नित्या कुमारी को छोड़ गया है. वहीं दुर्घटना के बाद से पत्नी का रो-रोकर बुरा हाल है. वह रोते हुए बेहोश हो जा रही थी. जिसे आसपास की महिलाओं द्वारा ढाढ़स बंधाने का प्रयास किया जा रहा था. वहीं अपने पिता को खोने के बाद दोनों बच्चे भी बिलख-बिलख कर रो रहे थे, जबकि मां सोनी देवी व पिता ब्रह्मदेव विश्वकर्मा बुढ़ापे के सहारे को खोने के बाद काफी विह्वल दिखलाई पड़े. जिसने भी इस दृश्य को देखा वह अपने आंसुओं को नहीं रोक पाया. शंकर तीन भाइयों में सबसे बड़ा था. घर की बड़ी जिम्मेवारी उसके कंधों पर थी. ऐसे में उसके असामयिक मौत से परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा है.
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