गिद्धौर. प्रखंड क्षेत्र की कुंधुर पंचायत स्थित गेनाडीह गांव में स्थापित मां काली मंदिर क्षेत्र के हजारों श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है. लगभग 150 वर्षों से अधिक समय से यह मंदिर धार्मिक और सांस्कृतिक परंपराओं का जीवंत प्रतीक है. यहां हर वर्ष आषाढ़ मास में सलौनी पूजा का भव्य आयोजन किया जाता है, जिसमें आस-पास के गांवों से भारी संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं. सन 1965 में जीरा मडरान ने इस मंदिर की विधिवत स्थापना करायी थी. तब से लेकर आज तक ग्रामीण श्रद्धालुओं द्वारा पारंपरिक रीतियों से पूजा आयोजित की जाती रही है. सलौनी पूजा के दौरान पान, सुपारी, खीर, पूड़ी, पकवान, मिष्ठान आदि से मां काली का भोग लगाया जाता है. मन्नत पूरी होने पर भक्तों द्वारा बकरे की बली देने की परंपरा भी आज तक कायम है. मंदिर के पुजारी लालजी प्रसाद, पंडित रजनीकांत पांडेय द्वारा विधिवत पूजा संपन्न कराई जाती है. इस अवसर पर कुंवारी कन्याओं का जौनार कराना भी इस क्षेत्र की विशेष धार्मिक परंपरा है. मंदिर समिति के शिवेंदु कुमार, विक्की कुमार, सूरज प्रताप, चंदन तांती, गौतम मोदी, धर्मेंद्र कुमार, बिट्टू कुमार, छोटू कुमार सहित अन्य सदस्यों ने बताया कि यह मंदिर गेनाडीह, रामाकुराव, थरघटिया, गुगुलडीह, रतनपुर समेत दर्जनों गांवों के लिए लोक आस्था का प्रमुख केंद्र है. उन्होंने बताया कि मां काली सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद पूरी करती हैं. सलौनी पूजा के दौरान ढोल-नगाड़े और गाजे-बाजे के साथ हजारों श्रद्धालु मंदिर परिसर में एकत्र होते हैं और मां काली की पूजा-अर्चना करते हैं.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है