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स्तनपान से बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता में होता है जबरदस्त इजाफा, माताओं को भी मिलता लाभ
किशनगंजगर्भ में 9 महीने बिताने के बाद जब शिशु जन्म लेता है, तो वह शारीरिक रूप से पूरी तरह तैयार होता है मां से पोषण प्राप्त करने के लिए. जन्म के तुरंत बाद शिशु को मां का पहला दूध क्लोस्ट्रम–पिलाना अत्यंत आवश्यक होता है. यह शिशु के लिए न केवल पोषण का पहला स्रोत है, बल्कि रोगों से सुरक्षा की ढाल भी है. विशेषज्ञों और स्वास्थ्य विभाग की सिफारिश है कि सामान्य हो या सिजेरियन प्रसव, दोनों स्थितियों में शिशु को एक घंटे के भीतर स्तनपान कराना अनिवार्य रूप से सुनिश्चित किया जाए.
पहले घंटे की अहमियत: जीवनभर की सेहत की नींव
शिशु के जन्म के बाद का पहला घंटा उसके संपूर्ण जीवन की सेहत की बुनियाद रखने वाला समय होता है. इस ””गोल्डन ऑवर”” में नवजात सबसे अधिक सचेत और सक्रिय होता है. इस समय यदि स्तनपान शुरू करा दिया जाए, तो शिशु आसानी से दूध ग्रहण करता है. इससे न सिर्फ उसके पाचन और प्रतिरक्षा प्रणाली की सही शुरुआत होती है, बल्कि मां-बच्चे के बीच सशक्त भावनात्मक संबंध भी विकसित होता है.
केवल मां का दूध: 6 माह तक संजीवनी बूटी जैसा असर
जन्म से लेकर छह माह तक केवल मां का दूध ही बच्चों के लिए सर्वोत्तम आहार होता है. इस दौरान शिशु को न पानी, न शहद, न कोई अन्य दूध देना चाहिए. मां का दूध हर वह पोषक तत्व और एंटीबॉडी प्रदान करता है, जो नवजात को संक्रमणों से बचाने में मदद करता है. यह शिशु की मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक वृद्धि के लिए अत्यंत आवश्यक है. डब्ल्यूएचओ और स्वास्थ्य विशेषज्ञ छह माह तक एक्सक्लूसिव ब्रेस्टफीडिंग को जीवनरक्षक मानते हैं, जिससे लाखों बच्चों की जान बचाई जा सकती है.
स्तनपान माताओं के लिए भी अनेक स्वास्थ्य लाभ लेकर आता है. नियमित स्तनपान से महिलाओं में स्तन कैंसर, ओवरी कैंसर, मोटापा और टाइप-2 डायबिटीज से बचाव होता है. यह प्रक्रिया हार्मोनल संतुलन को बनाए रखती है और प्रसव के बाद शरीर को जल्दी सामान्य स्थिति में लौटने में मदद करती है.भ्रांतियों से रहें दूर: गाढ़ा पीला दूध बेकार नहीं, सबसे जरूरी है
सिविल सर्जन डॉ राज कुमार चौधरी ने बताया कि शुरुआत में मां के स्तनों से निकलने वाला गाढ़ा पीला दूध बहुत लाभदायक होता है, लेकिन दुर्भाग्यवश, कई समुदायों में इसे ‘गंदा’ या ‘जमा हुआ’ दूध मानकर बच्चे को नहीं पिलाया जाता. यह भ्रांति बच्चों के स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध हो सकती है. समाज में व्याप्त इस गलतफहमी को दूर करना जरूरी है.महिला चिकित्सा पदाधिकारी डॉ शबनम यास्मीन ने बताया कि सामान्य प्रसव हो या सिजेरियन डिलीवरी, स्तनपान की शुरुआत में देरी नहीं होनी चाहिए. ऑपरेशन थियेटर से बाहर आते ही मां को सहारा देकर शिशु को स्तनपान कराया जा सकता है. इससे मां और शिशु दोनों का स्वास्थ्य बेहतर होता है .
स्तनपान को प्राथमिकता दें, तो हजारों बच्चों की जान बचाई जा सकती है
भारत जैसे देश में जहां शिशु मृत्यु दर अभी भी चुनौती है, वहां स्तनपान को प्राथमिकता देना बेहद जरूरी है. किशनगंज जिले में सिर्फ 47.4% शिशु ही जन्म के पहले घंटे में स्तनपान कर पाते हैं. विभिन्न अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों के अनुसार, स्तनपान से संक्रमण जनित बाल मृत्यु में 88% तक की कमी लाई जा सकती है. साथ ही डायरिया और श्वसन संक्रमण जैसी आम बीमारियों से भी बचाव होता है. समय पर स्तनपान से हजारों बच्चों की जान बचाई जा सकती है. स्तनपान से डायरिया के 54% और श्वसन संक्रमण के 32% मामलों में कमी आती है. अस्पताल में भर्ती होने के 72% डायरिया और 57% श्वसन संक्रमण के मामलों में स्तनपान रक्षा करता है.
सदर अस्पताल उपाधीक्षक डॉ अनवर हुसैन ने बताया कि कार्यकर्ताओं, एएनएम, सीएचओ से लेकर जिला प्रशासन तक की यह सामूहिक जिम्मेदारी है कि हर मां को जागरूक किया जाए और हर नवजात को उसका पहला अधिकार मां का दूध समय पर मिले.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है