किशनगंज. कोविड-19 के दो नए वैरिएंट एलएफ-7 और एनबी-1.8.1 की दस्तक ने एक बार फिर स्वास्थ्य महकमे को सतर्क कर दिया है. संक्रमण की संभावित लहर से पहले ही राज्य सरकार ने सभी जिलों को आवश्यक तैयारियों की गहन समीक्षा करने और संभावित आपदा से निपटने की रणनीति पर काम करने का निर्देश दिया है. इसी क्रम में बुधवार को किशनगंज में एक ज़िला स्तरीय मॉक ड्रिल का आयोजन किया गया, जिसका उद्देश्य था स्वास्थ्य ढांचे की जमीनी हकीकत को परखना, संसाधनों की उपलब्धता की समीक्षा करना और कर्मचारियों की तत्परता का मूल्यांकन करना. इस अभ्यास का संचालन सिविल सर्जन डॉ राज कुमार चौधरी की अगुवाई में हुआ. मुख्य कार्यक्रम सदर अस्पताल में संपन्न हुआ, जिसमें जिला कार्यक्रम प्रबंधक डॉ मुनाजिम और सदर अस्पताल के उपाधीक्षक डॉ अनवर हुसैन विशेष रूप से मौजूद थे. सभी विभागों के चिकित्सा पदाधिकारियों ने पूरी निष्ठा से भाग लिया.
सतर्कता ही सुरक्षा की पहली सीढ़ी- डब्ल्यूएचओ की निगरानी सूची में एलएफF-7 और एनबीन-1.8.1, सजगता ज़रूरी
सिविल सर्जन डॉ चौधरी ने बताया कि कोविड के नये वैरिएंट एलएफ-7 और एनबीन-1.8.1 को लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इन्हें वैरिएंट अंडर मॉनिटरिंग की श्रेणी में रखा है. इनकी संक्रमण क्षमता और लक्षणों की तीव्रता को लेकर विशेषज्ञ समुदाय चिंतित है. ऐसे में संक्रमण को प्रारंभिक स्तर पर नियंत्रित करने के लिए सजगता, समयबद्ध जांच, उपचार, संसाधनों की उपलब्धता और सही जानकारी का प्रसार अत्यंत आवश्यक है.
सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुरूप हुई मॉक ड्रिल: हर स्तर पर कसौटी पर परखा गया स्वास्थ्य तंत्र
सिविल सर्जन डॉ राज कुमार चौधरी ने बताया कि स्वास्थ्य विभाग, बिहार सरकार द्वारा आयोजित वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में दिए गए निर्देशों के आलोक में यह मॉक ड्रिल संपन्न की गई. जिसमे ऑक्सीजन युक्त आइसोलेशन वार्ड: अस्पतालों में कम से कम 5 बिस्तरों वाले कोविड आइसोलेशन वार्ड की व्यवस्था की जानी थी, जिसमें ऑक्सीजन की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित हो.ऑक्सीजन कंसंट्रेटर व जीवन रक्षक दवाएं
आइसोलेशन यूनिट में गंभीर मरीजों के लिए आवश्यक दवाओं की उपलब्धता पर बल दिया गया. डॉक्टरों व कर्मियों के लिए पीपीई किट, मास्क, दस्ताने और सैनिटाइज़र की समुचित मात्रा सुनिश्चित की गई.आरटी-पीसीआर और वीटीएम किट की उपलब्धता
कोविड जांच के लिए सभी केंद्रों को वाइरल ट्रांसपोर्ट मीडियम व टेस्टिंग किट्स से सुसज्जित किया गया.
कोविड अनुरूप व्यवहार का अनुपालन
अस्पताल स्टाफ को मास्क पहनना, हैंड हाइजीन और सोशल डिस्टेंसिंग जैसे व्यवहारों का कड़ाई से पालन करना अनिवार्य किया गया. सभी गतिविधियों की नियमित मॉनिटरिंग एवं रिपोर्टिंग की व्यवस्था भी सुनिश्चित की गई. सिविल सर्जन डॉ. राज कुमार चौधरी ने बताया कि मॉक ड्रिल के दौरान एक काल्पनिक कोविड संक्रमित मरीज को अस्पताल में भर्ती कराया गया, जिसके तहत मरीज की स्क्रीनिंग, आइसोलेशन, इलाज, रेफरल तथा चिकित्सकों एवं स्टाफ की प्रतिक्रिया का परीक्षण किया गया. इस प्रक्रिया में इमरजेंसी, वार्ड, लैब, फार्मेसी और प्रशासनिक विभागों के बीच तालमेल को परखा गया. उन्होंने स्वयं वार्डों और लैब का निरीक्षण किया तथा संसाधनों की भौतिक स्थिति का मूल्यांकन कर त्वरित सुधार की संभावनाओं पर सुझाव दिए. स्टाफ की तत्परता, आपातकालीन स्थिति में प्रतिक्रिया की गति और दवा भंडारण की स्थिति भी जांची गई.प्रखंड और उपस्वास्थ्य केंद्रों तक फैला मॉक ड्रिल का दायरा
यह मॉक ड्रिल केवल जिला मुख्यालय तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसे एचएससी, पीएचसी और सीएचसी स्तर तक विस्तारित किया गया. सभी केंद्रों को आईएचआईपी पोर्टल के माध्यम से पी-फॉर्म भरकर रिपोर्टिंग सुनिश्चित करने के निर्देश दिए गए. जिला स्तरीय निगरानी दलों ने ग्रामीण क्षेत्रों के स्वास्थ्य केंद्रों का भी निरीक्षण किया और वहां की व्यवस्थाओं को परखा.मॉक ड्रिल अभ्यास नहीं, बचाव की नींव है- तैयार स्वास्थ्य प्रणाली ही बनेगी बचाव की ढाल
कार्यक्रम के समापन पर डॉ. राज कुमार चौधरी ने कहा कि यह मॉक ड्रिल सिर्फ एक अभ्यास नहीं, बल्कि भविष्य की किसी भी संभावित आपदा से निपटने की तैयारी की नींव है. हमें यह याद रखना होगा कि कोविड का खतरा पूरी तरह टला नहीं है. ऐसे में हमें न केवल अस्पतालों को तैयार रखना है, बल्कि आम लोगों को भी सजग और जागरूक बनाए रखना है. उन्होंने सभी चिकित्सा पदाधिकारियों को निर्देशित किया कि किसी भी आपात स्थिति के लिए 24×7 सक्रिय रहें, संसाधनों की निगरानी करते रहें और आवश्यकतानुसार राज्य स्तर पर सूचनाएं प्रेषित करें. किशनगंज में आयोजित यह मॉक ड्रिल न केवल स्वास्थ्य तंत्र की मजबूती को परखने का माध्यम बना, बल्कि इसने यह भी सिद्ध किया कि सजगता, संसाधनों की उपलब्धता और प्रशासनिक तत्परता से किसी भी संकट को मात दी जा सकती है. जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की संयुक्त सक्रियता से यह अभ्यास एक सफल मॉडल के रूप में सामने आया, जिसे अन्य जिलों में भी अपनाया जा सकता है.
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