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नौ माह में चार बार प्रसवपूर्व जांच जरूरी

नौ माह में चार बार प्रसवपूर्व जांच जरूरी

किशनगंज. मां बनना एक स्त्री के लिए उसके जीवन का सबसे सुखद अहसास है. गर्भधारण के साथ ही गर्भवती का भ्रूण के साथ भावनात्मक संबंध बन जाता है. गर्भावस्था जहां खुशी का पल होता है वहीं इस दौरान जच्चा बच्चा की उचित देखभाल बहुत ही आवश्यक होती है. ऐसे में गर्भवती महिलाओं की समय समय पर प्रसव पूर्व जांच जरूरी है. प्रसवपूर्व जांच जच्चा बच्चा के सही स्वास्थ्य को सुनिश्चित करता है. जिससे गर्भावस्था संबंधी जोखिम और जटिलताओं से बचाव में मदद मिलती है. प्रसवपूर्व जांच से उच्च जोखिम वाली गर्भावस्था की पहचान कर उसका सही इलाज किया जाता है. प्रसव पूर्व जांच को एंटी नेटल केयर या एएनसी भी कहते हैं. गर्भावस्था के दौरान मां को होने वाली गंभीर बीमारी का पता लगा कर समय रहते भ्रूण को उस बीमारी से बचाव किया जा सकता है. प्रसवपूर्व जांच के दौरान गर्भवती में कुपोषण का पता चल पाता है. जिसके बाद उन्हें पोषक आहार संंबंधी परामर्श दिया जाता है.

गर्भवती की नौ माह में चार प्रसवपूर्व जांच जरूरी

सदर अस्पताल की महिला चिकित्सा पदाधिकारी सह गाइनोकोलॉजिस्ट डॉ शबनम यास्मिन ने बताया कि नियमित प्रसव पूर्व जांच कराने वाली महिलाओं के बच्चे स्वस्थ्य होते हैं. यह मातृ शिशु की मृत्यु के जोखिम को भी कम करता है. गर्भवती माता को प्रसव काल के नौ माह में चार बार प्रसवपूर्व जांच की जाती है. इनमें प्रथम जांच 12 सप्ताह के भीतर या गर्भावस्था का पता चलने के साथ होती है. दूसरी जांच 14 से 26 सप्ताह, तीसरी जांच 28 से 34 सप्ताह तथा चौथी जांच 36 सप्ताह से प्रसव के समय तक के बीच होती है. प्रसवपूर्व जांच में बीपी, हीमोग्लोबिन, वजन, लंबाई, पेशाब में शक्कर व प्रोटीन जांच सहित एचआईवी व अन्य प्रकार की आवश्यक जांच शामिल हैं. इन सब जांच के साथ ही गर्भवती महिलाओं को टेटनस का इंजेक्शन, आयरन व फॉलिक एसिड की टैबलेट दिये जाते हैं. यदि महिला में खून की कमी होती है तो पोषण संबंधी सलाह व दवाई आदि दी जाती है. गर्भावस्था का पता चलते ही प्रसवपूर्व सभी आवश्यक जांच के लिए अपने क्षेत्र की आशा से संपर्क करें. नजदीक के स्वास्थ्य केंद्र पर जाकर एएनएम तथा चिकित्सक से परामर्श् प्राप्त करें. साथ ही गर्भावस्था के दौरान पोषण पर विशेष ध्यान देना चाहिए.आयरन और फॉलिक एसिड की गोलियां नियमित रूप से लेनी चाहिए.टेटनस का इंजेक्शन समय पर लगवाना चाहिए.समय-समय पर डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए.

25 फीसदी गर्भवती कराती हैं चार बार एएनसी

हाल में जारी नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे5 की रिपोर्ट के मुताबिक 25 प्रतिशत महिलाओं की उनकी गर्भावस्था के दौरान चार बार पूरी तरह प्रसवपूर्व जांच हुई. वहीं नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे4 की रिपोर्ट के मुताबिक यह 12 फीसदी था. पांच सालों में चार बार होने वाली प्रसवपूर्व जांच में दो गुना इजाफा हुआ है. एनएफएचएस 5 के मुताबिक गर्भधारण की पहली तिमाही में होने वाली प्रसवपूर्व जांच का प्रतिशत 63.2 है. जबकि एनएफएचएस 4 में यह 33 प्रतिशत ही था. जिले में वर्ष 2025 के 01 जनवरी से 30 अप्रैल तक कुल 18492 महिलाओ का कुल चार प्रसवपूर्व जांच हुई है |जिला में स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रसवपूर्व जांच की संख्या को लगातार बढ़ाने की कोशिश जारी है. आशा व आंगनबाड़ी सेविकाओं की मदद से लगातार इसके लिए जागरूकता लायी गयी है. जरूरत इस बात की है कि यह प्रतिशत और अधिक बढ़े ताकि अधिक से अधिक प्रसवपूर्व जांच कर मातृ शिशु मृत्यु की संख्या को कम किया जा सके.

प्रसवपूर्व जांच में आशा कार्यकर्ताओं की है अहम् भूमिका

सिविल सर्जन डॉ राज कुमार चौधरी ने बताया कि हमारी आशा बहने ग्रामीण क्षेत्रो के गर्भवती महिलाओं और उनके परिवारों को प्रसवपूर्व जांच के महत्व के बारे में जानकारी देती हैं.साथ ही महिलाओं को अस्पतालों में जांच कराने के लिए प्रेरित करती हैं. उन्हें उचित आहार, आयरन-फॉलिक एसिड की गोलियां, और जरूरी टीकाकरण के बारे में बताती हैं. वे महिलाओं को एकत्र कर स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर चर्चा करती हैं. आशा कार्यकर्ताओं की मदद से प्रसवपूर्व जांच की संख्या बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के अनुसार, बिहार में केवल 25 प्रतिशत गर्भवती महिलाओं ने चार प्रसवपूर्व जांच कराई हैं. सरकार की प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान और जननी सुरक्षा योजना जैसी पहलें भी इस दिशा में योगदान दे रही हैं. आशा कार्यकर्ताओं की मेहनत और सरकार की योजनाओं के संयुक्त प्रयास से प्रसवपूर्व जांच को बढ़ावा देने में सफलता मिल रही है. यदि समुदाय जागरूक रहे और गर्भवती महिलाएं नियमित जांच कराएं, तो मातृ एवं शिशु मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी लाई जा सकती है.

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