किशनगंज . तेजी से बढ़ रही जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों में डायबिटीज एक ऐसा रोग बन गया है, जो हर उम्र, वर्ग और लिंग की सीमाएं लांघते हुए अब गर्भवती महिलाओं के लिए भी गंभीर चुनौती बनकर सामने आ रहा है. पहले जहां यह बीमारी अधेड़ उम्र के पुरुषों में अधिक देखी जाती थी, आज वही डायबिटीज किशोरों से लेकर युवाओं तक और अब गर्भवती महिलाओं में भी तेजी से फैल रही है. इस स्थिति ने मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालना शुरू कर दिया है. सबसे अधिक चिंता की बात यह है कि गर्भावस्था के दौरान होने वाली एक विशेष प्रकार की डायबिटीज जिसे जेस्टेशनल डायबिटीज कहा जाता है, वह न सिर्फ मां के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती है, बल्कि गर्भ में पल रहे शिशु के लिए भी यह जानलेवा हो सकती है. इसलिए यह अत्यंत आवश्यक हो जाता है कि सभी गर्भवती महिलाएं प्रारंभिक अवस्था से ही जागरूक रहें और नियमित स्वास्थ्य जांच के माध्यम से इस बीमारी की पहचान करें एवं आवश्यक नियंत्रण रखें.
अनियंत्रित शुगर से गर्भावस्था में बढ़ती हैं कई जटिलताएं
सिविल सर्जन डॉ राज कुमार चौधरी ने बताया कि डायबिटीज का एक खतरनाक रूप गर्भावस्था के दौरान उभरता है, जिसे जेस्टेशनल डायबिटीज के नाम से जाना जाता है. यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब गर्भावस्था के दौरान शरीर में शुगर का स्तर असंतुलित हो जाता है. गर्भवती महिलाओं के शरीर में तेजी से हार्मोनल बदलाव होता है और ऐसे में अगर रक्त में ग्लूकोज का स्तर नियंत्रण से बाहर चला जाए, तो यह स्थिति मां और शिशु दोनों के लिए गंभीर बन सकती है. प्रसव के समय कठिनाइयां, समयपूर्व डिलीवरी, शिशु में जन्मजात विकृति और यहां तक कि नवजात मृत्यु तक का खतरा बना रहता है. ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि गर्भवती महिलाएं समय-समय पर ब्लड शुगर की जांच करवाएं और अपने स्वास्थ्य को लेकर अधिक सतर्क रहे.गर्भावस्था में डायबिटीज के तीन प्रकार: जेस्टेशनल सबसे विशिष्ट
महिला चिकित्सा पदाधिकारी डॉ शबनम यास्मीन ने बताया कि गर्भावस्था में मुख्यतः तीन प्रकार की डायबिटीज सामने आ सकती है जिसमें टाइप-1, टाइप-2 और जेस्टेशनल डायबिटीज. जेस्टेशनल डायबिटीज उन महिलाओं को प्रभावित करती है जो पहले डायबिटिक नहीं होती हैं, लेकिन गर्भावस्था के दौरान उनके शरीर में शुगर का स्तर असामान्य रूप से बढ़ जाता है. इस बीमारी की सबसे जटिल बात यह है कि अधिकतर मामलों में प्रसव के बाद शुगर का स्तर सामान्य हो जाता है, जिससे महिलाएं इसे हल्के में लेती है. लेकिन यह भविष्य में टाइप-2 डायबिटीज के जोखिम को कई गुना बढ़ा देता है. अतः जेस्टेशनल डायबिटीज को नजरअंदाज करना आने वाले वर्षों के लिए गंभीर स्वास्थ्य संकट को आमंत्रित करना है.
जच्चा-बच्चा की सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव
गैर संचारी रोग पदाधिकारी डॉ उर्मिला कुमारी बताती हैं कि गर्भावस्था के समय डायबिटीज का उभरना या इसका पहले से शरीर में मौजूद होना दोनों ही स्थितियां मां और शिशु की सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती हैं.इससे गर्भ में पल रहे शिशु में जन्मजात विकृति, गर्भपात, प्रसव के समय जटिलता, समय से पूर्व प्रसव, और यहां तक कि शिशु की नवजात अवस्था में मृत्यु तक हो सकती है. ऐसे नवजातों में आगे चलकर मोटापा और टाइप-2 डायबिटीज का खतरा भी अधिक होता है.इसलिए सभी गर्भवती महिलाओं को चाहिए कि वे अपने निकटतम हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर में जाकर निशुल्क डायबिटीज जांच कराएं और डॉक्टर की सलाह अनुसार आवश्यक कदम उठाएं.
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