मधुबनी. आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी कहा जाता है. इस बार देव शयनी एकादशी रविवार को मनाया गया. इस दिन से भगवान विष्णु क्षीर सागर में विश्राम करने चले जाते हैं. लगातार चार महीने के विश्राम के बाद कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवोत्थान एकादशी को जागृत होंगे. इस चतुर्मास के दौरान विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य नहीं होंगे. पंडित पंकज झा शास्त्री ने बताया कि देवशयनी एकादशी धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के साथ-साथ वैज्ञानिक रूप से भी महत्वपूर्ण है. यह न केवल शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है. बल्कि पर्यावरण और सामाजिक समरसता को भी बढ़ावा देता है. देवशयनी एकादशी चातुर्मास की शुरुआत का प्रतीक है. जो वर्षा ऋतु का समय होता है. इस समय वातावरण में नमी बढ़ जाती है. इससे कई प्रकार के जीव-जंतु और कीटाणु सक्रिय हो जाते हैं. उपवास और सात्विक भोजन, जो एकादशी व्रत के दौरान किया जाता है. उन्होंने बताया कि ऐसा माना जाता है कि जब भगवान विष्णु योग निद्रा में जाते हैं, तो सृष्टि का संचालन भगवान शिव के हाथों में आ जाता है. चातुर्मास भी कहा जाता है, जो चार महीनों की अवधि की होती है. इस दौरान भगवान शिव सृष्टि के संतुलन और व्यवस्था को बनाए रखने के लिए सक्रिय रूप से कार्य करते हैं. कहा जाता है कि धर्म ही वह श्रेष्ठ आचरण है जो मनुष्य को अनादिकाल से संयमित रूप से संचालित कर रहा है. इसी कड़ी में देवशयनी पुरातन सनातन परंपरा का हिस्सा है.
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