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दगा दे रहा मॉनसून, आर्द्रा नक्षत्र में भी सूखे हैं खेत, अधिकांश जिलों में खेती लायक नहीं हुई बारिश

कृषि प्रधान बिहार की अर्थव्यवस्था के लिए धान की खेती काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है. लेकिन मॉनसून की धीमी गति ने धन की खेती करने वाले किसानों के लिए चिंता खड़ी कर दी है.

राजदेव पांडेय,पटना। Monsoon In Bihar: आर्द्रा नक्षत्र से किसान अपनी खेतों में धान की रोपनी शुरू कर देते हैं. लेकिन, इस बार मौसम की मार किसानों की आशंका से किसान सहमे हैं. मानसून का मिजाज बदला-बदला सा है. नेपाल के भूभाग में वर्षा हो रही है, लेकिन उत्तर बिहार में भी बिचड़ा पनपने लायक वर्षा नहीं हुई है. किसान आसमान की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं. सुबह मेघ लग भी रहा है, तो घंटे-दो घंटे में फिर से वही कहर बरपाने वाली तीखी गर्मी और उमस का अहसास होने लगता है.

सरकार के स्तर पर संभावित सूखे की आहट को लेकर तमाम तरह के निर्देश दिये जा चुके हैं. इधर, जिन खेतों में अभी दलदल होनी चाहिए, वहां लंबी और गहरी दरारें दिख रही है. खेतों में दूर दूर तक कहीं भी बिचड़ा डालने के हालात नहीं है. वर्षा में और देरी हुई, तो सबसे अधिक नुकसान धान की फसल को हो सकती है. बिहार कृषि प्रधान राज्य है और धान यहां की मुख्य फसल है.

केवल 20 प्रतिशत जिलों में हुई औसत बारिश

धान की खेती बिहार की अर्थव्यवस्था की रीढ़ मानी जाती है. सबसे अहम ये है की मिथिलांचल के साथ ही बिहार का धान का कटोरा कहा जाने वाला शाहबाद अभी तक पूरी तरह सूखा है. बिहार में मानसून की केवल 20 प्रतिशत जिलों विशेषकर उत्तर पूर्वी जिलों में अभी औसत बारिश हुई है. चिंता की बात है कि अभी भी मानसून की गति धीमी बनी हुई है. जल्द बारिश नहीं हुई तो जिन इलाकों में रोपनी के लिए बिचड़ा तैयार किया गया है, सूख जाएगा. हालांकि जिनके पास सिंचाई के अपने साधन हैं, वे ही आवर्षा की स्थिति को कुछ झेल सकते हैं.

धान के अलावा खरीफ की दूसरी फसलों पर भी पड़ेगा असर

मानसून की देरी से धान के अलावा खरीफ की दूसरी फसलों पार भी असर खास तौर पर दलहन की बुवाई संभव नहीं हो पायेगी. मानसून की देरी का सबसे ज्यादा असर भू जल पर पड़ने वाला है. भू जल और नीचे जाने से सिंचाई और महंगी हो जायेगी. पेयजल संकट भी खतरे में पड़ जायेगा. जून माह के अंतिम हफ्ते से काफी उम्मीदें हैं.

उत्तर बिहार में फल की मुख्य फसल केला पर प्रभाव पड़ना तय है. उसकी जून उत्तरार्ध में पड़ने वाली रोपनी में देरी होगी. इसी तरह मिर्ची, प्याज और दूसरी सब्जी वाली फसलों को तैयारी भी प्रभावित हो सकती है. जानकारों का कहना है कि मानसून में हो रही देरी पशुपालन को भी प्रभावित करेगी. चारे और दूध उत्पादन का नुकसान होगा. बाजार में सब्जी और दूध के दाम बढ़ सकते हैं.

भीषण गर्मी से सूख गयीं नदियां, भूजल स्तर नीचे गिरा

भीषण गर्मी की मार और मॉनसून में देरी ने किसानों के माथे पर चिंता की लकीरें ला दी हैं. जलस्रोत सूख गये हैं, तो भूजल स्तर भी पाताल छूने लगा है. कभी सालों भर पानी से भरी रहनेवाली नदियाें में भी धूल उड़ने लगी है. इससे जलसंकट की स्थिति उत्पन्न हो गयी है, तो जीव-जंतुओं के जीवन पर भी संकट छाने लगा है. बक्सर जिले में कभी काव, कंचन व धर्मावती नदी के पानी से किसान खेतों की सिंचाई करते थे.

धर्मावती नदी के अस्तित्व पर संकट

धर्मावती नदी का पानी तो पीने के लिए भी उपयोग किया जाता था, लेकिन अब इनके सूख जाने से इनके अस्तित्व पर ही संकट मंडराने लगा है. वहीं, देसी-विदेशी पक्षियों से गुलजार रहनेवाला 25 किमी में फैला ब्रह्मपुर का गोकुल जलाशय भी पूरी तरह से सूख गया है. इससे जलाशय में रहने वाले पशु-पक्षी शिकारियों की गिरफ्त में आकर अपनी जान गंवा चुके हैं या फिर यहां से पलायन कर गये हैं. जिले में जल स्तर भी तीन फुट तक गिर चुका है.

बलान नदी भी लगभग सूख चुकी

बेगूसराय जिले की प्रमुख नदियों में से एक बलान है. आज बलान नदी लगभग सूख चुकी है. समसा घाट, दरियापुर घाट, अहियापुर घाट आदि के पास इसे लोग पैदल पार कर रहे हैं. कहीं भी घुटने भर से अधिक पानी नहीं है. दूसरी ओर चंद्रभागा गढ़पुरा, बखरी व छौड़ाही में सूख चुकी है. गढ़पुरा में लोगों ने जहां नदी की जमीन पर घर बना लिये हैं, वहीं, छौड़ाही, बखरी में तो उसी में गेहूं, सरसों की खेती कर रहे हैं. बखरी के शकरपुरा के पास बागमती नदी भी मृतप्राय हो चुकी है.

जहानाबाद से गुजरने वाली सभी नदियां सूखी

जहानाबाद जिले से होकर गुजरने वाली सभी नदियां सूखी पड़ी हैं. जिले के ज्यादातर इलाकों में जल स्तर 10 फुट तक नीचे चला गया है. इससे पेयजल संकट की स्थिति उत्पन्न हो गयी है. काको प्रखंड के नोन्ही सहित आसपास के गांवों में तो भूजल स्तर 45 फुट तक नीचे चला गया है. इसी प्रकार की स्थिति वाणावर पहाड़ के आसपास के गांवों में भी बनी हुई है.

गोपालगंज में 4-5 फिट नीचे गया जलस्तर

गोपालगंज में भूजल स्तर चार से पांच फुट नीचे जा चुका है. नदी, नहर, कुएं और तालाब सूखने लगे है. डेढ़ सौ साल पुराना हथुआ का तालाब पूरी तरह से सूख गया है. जिले में गंडक, धमही, दाहा, खनुआ, घोघारी और छाड़ी नदी इस महीने में उफान पर रहती है, लेकिन भूजल स्तर नीचे जाने से इनमें पशु और पक्षियों के पीने के लिए भी पानी नहीं बचा है.

बिहारशरीफ में पंचाने, सकरी, सोयेबा, लोकाइन, कुम्हरी आदि नदियां सूख गयी हैं. जिले का भूजल जल स्तर भी काफी नीचे चला गया है. इससे जलसंकट की स्थिति बनने लगी है.

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Anand Shekhar
Anand Shekhar
Dedicated digital media journalist with more than 2 years of experience in Bihar. Started journey of journalism from Prabhat Khabar and currently working as Content Writer.

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