:: जैविक विधि से मीनापुर में हो रही बेबी काॅर्न की खेती :: लजीज रेसिपी व पोषक तत्वों की प्रचुरता है इसमें संतोष कुमार गुप्ता, मीनापुरबिहार सहित भारत के ज्यादातर राज्यों में मक्के की खेती मुख्य फसल के रूप में की जाती है. लेकिन उससे किसानों को उस स्तर का लाभ नहीं हो पाता है. फसल तैयार होने के लिए पांच से छह महीने का इंतज़ार और ऊपर से कीट और रोगों का खतरा भी बना रहता है. बाज़ार में इसकी कीमत कुछ खास नहीं मिल पाती है. किसानों की इसी समस्या के निवारण के लिए वैज्ञानिकों ने मक्के की कुछ ऐसे प्रभेदों को तैयार किया है, जो सिर्फ 60 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है. इन्हें बेबी कॉर्न के नाम से जाना जाता है. मीनापुर प्रखंड व इसके आसपास के क्षेत्रों में परंपरागत खेती की जगह बेबी काॅर्न की खेती को किसान बढ़ावा दे रहे हैं. जैविक खेती से बेबी कॉर्न की खेती की जा रही है. जैविक खेती से उपजाये गये बेबी काॅर्न की मांग ज्यादा है. सबसे ज्यादा बात यह है कि यह लागत के चार गुणा आमदनी देता है. मीनापुर गांव के किसान शत्रुघ्न मिश्रा उर्फ रामबाबू मिश्रा लगातार परंपरागत खेती करते थे. किंतु बहुत लाभ नहीं मिला. इस बार उन्होंने चार कट्ठा जमीन में बेबी काॅर्न की खेती की है. इसके लिए इन्होंने बिहार सरकार के अनुदानित दर पर 950 रुपये में एक किलो बेबी काॅर्न का बीज लिया. बेहतर तरीके से खेती की. जैविक खाद का छिड़काव किया. कुल चार हजार लागत लगने के बाद खेत में फसल लहलहा रही है. उन्होंने बेबी काॅर्न की बिकवाली के लिए शहर के कई व्यवसायियों से संपर्क साधा है. घोसौत गांव के किसान धर्मेन्द्र कुमार बताते हैं कि उनके इलाके के आधा दर्जन किसान बेबी काॅर्न व स्वीट काॅर्न की खेती कर रहे हैं. उन्हे अच्छी कमाई भी मिल रही है. सोढ़ना माधोपुर के किसान विनोद प्रसाद बताते हैं कि बेबी काॅर्न व स्वीट काॅर्न सेहत के लिए भी बेहतर है क्योंकि इसमें प्रोटीन की प्रचुरता है. कम समय में तैयार होने वाली फसल बेबी कॉर्न की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह 40 से 45 दिनों में पूरी तरह से तैयार हो जाती है. इसका मतलब है कि आप इसे साल में 3-4 बार उगा सकते हैं, जिससे आपको निरंतर मुनाफा हो सकता है. मक्का की पारंपरिक खेती के मुकाबले यह ज्यादा लाभकारी है क्योंकि इसमें कम समय में फसल तैयार होती है. बड़े शहरों में लजीज रेसिपी है बेबी काॅर्न बड़े शहरों में बेबी कॉर्न की मांग तेजी से बढ़ रही है, खासकर फाइव स्टार होटलों, पिज्जा चेन, और अन्य रेस्टोरेंट्स में. इसके पोषक तत्वों की वजह से शहरी उपभोक्ता इसे अपनी डाइट में शामिल कर रहे हैं. बाजार में इसकी भारी डिमांड के चलते यह किसानों के लिए एक लाभकारी बिजनेस साबित हो सकता है.
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