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इन्फेक्शन की समस्या के लिए लोकल एंटीबायोटिक डिलीवरी सिस्टम बड़ी राहत

delivery system is a big relief

प्लेट पर एंटीबायोटिक से बना प्लास्टर सीमेंट की एक लेयर बनाई जाती

वरीय संवाददाता, मुजफ्फरपुर

आधुनिक जीवनशैली, बढ़ता तनाव व सड़कों पर लापरवाही से हो रही दुर्घटनाएं अस्थि रोगों की समस्या को लगातार बढ़ा रही हैं. आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में लोग मानसिक दबाव में रहते हैं. इस तनाव व जल्दबाजी के माहौल में हादसे बढ़ गये हैं. जब किसी व्यक्ति को गंभीर चोट लगती है, विशेषकर अगर फ्रैक्चर होता है, तो उसके जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है. यदि शुरुआत में सही और प्रभावी इलाज न हो, तो मरीज तीन महीने से लेकर एक साल तक बिस्तर पर पड़ सकता है. यह बातें पटना के हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ अमूल्य सिंह ने कहीं

बिहार ऑर्थोपेडिक एसोसिएशन (बीओए) की ओर से रामदयालु स्थित एक होटल में आयोजित सेमिनार में कहीं. उन्होंने कहा कि अगर व्यक्ति सरकारी नौकरी में है, तो उसे लंबी छुट्टी मिल सकती है, लेकिन निजी क्षेत्र में यह संभव नहीं हैं. उन्होंने कहा कि अगर किसी फ्रैक्चर का इलाज तीन से चार सप्ताह तक टाल दिया गया तो वह नेगलेक्टेड फ्रैक्चर की श्रेणी में आ जाता है, जो आगे चलकर गंभीर समस्याएं पैदा कर सकता है. उन्होंने पुराने और नए इलाज पद्धतियों को मिलाकर मरीज को जल्द से जल्द कार्यस्थल पर लौटाने की बात कही. अहमदाबाद के वरिष्ठ हड्डी रोग विशेषज्ञ डॉ. नवीन ठक्कर ने कहा कि हड्डियों में संक्रमण (इन्फेक्शन) की समस्या से जूझ रहे मरीजों के लिए लोकल एंटीबायोटिक डिलीवरी सिस्टम एक बड़ी राहत बनकर सामने आ रही है.

हड्डियों को जोड़ने में सबसे बड़ी बाधा संक्रमण

हड्डियों को जोड़ने में सबसे बड़ी बाधा संक्रमण होता है, जिसे सही तकनीक से रोका जा सकता है डॉ. ठक्कर ने बताया कि जब तक इन्फेक्शन पूरी तरह खत्म नहीं होता, तब तक हड्डी न तो बनती है और न ही जुड़ती है. इस स्थिति में लोकल एंटीबायोटिक डिलीवरी सिस्टम बेहद प्रभावी साबित होता है. यह एक आधुनिक तकनीक है जिसमें प्लेट पर एंटीबायोटिक से बना प्लास्टर सीमेंट की एक लेयर बनाई जाती है और हड्डी के मावे (बोन ग्राफ्ट) में भी एंटीबायोटिक मिलाकर उसे सीधे उस स्थान पर रखा जाता है, जहां संक्रमण होता है. इससे वहां एंटीबायोटिक की सांद्रता (कंसंट्रेशन) बहुत अधिक हो जाती है और बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं. यह गरीब मरीजों के लिए भी उपयुक्त है, क्योंकि उन्हें कम खर्च में बेहतर इलाज मिल सकता है.

हड्डी कई टुकड़ों में हो तो हिप रिप्लेसमेंट करें

डॉ. रमित गुंजन ने कहा कि जब बुजुर्गों में कूल्हे (हिप) की हड्डी टूटती है, तो आमतौर पर हम उसे रिपेयर करने की कोशिश करते हैं. इसके लिए स्टील रॉड और प्लेट का उपयोग किया जाता है, जिसे इंप्लांट फिक्सेशन कहा जाता है, लेकिन यदि मरीज की उम्र 70 से 80 वर्ष के बीच है, और हड्डी बहुत कमजोर हो चुकी है, तो ऐसा फ्रैक्चर अक्सर अनस्टेबल फ्रैक्चर होता है. ऐसे मामलों में ऑपरेशन सफल होने के बाद भी इंप्लांट फेल हो सकता है. डॉ. गुंजन ने बताया कि कमजोर हड्डियों पर शरीर का वजन पड़ते ही रॉड टूटने लगती है या इंप्लांट बाहर निकल आता है, जिससे मरीज को चलने में तकलीफ होती है और वह हमेशा लंगड़ाकर चलता है. ऐसी स्थिति में, जब हड्डी कई टुकड़ों में हो और बहुत कमजोर हो, तो उसे रिपेयर करने की बजाय हिप रिप्लेसमेंट करना ज्यादा बेहतर विकल्प होता है.

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