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Fathers Day: बेटों के सुखमय भविष्य के लिए, कुर्बान कर दीं अपनी खुशियां 

मुजफ्फरपुर शहर में ऐसे कई पिता है, जिसने अपने बच्चों के सुखद भविष्य के लिये काफी परेशानियां उठायी. वे बच्चे भी अपने पिता की मेहनत का अर्थ जानते हैं और यह स्वीकार करते हैं कि आज वे जो कुछ हैं, वह पिता के कारण ही है. विश्व पिता दिवस पर यहां ऐसे ही कुछ पिता-पुत्र की कहानी रखी जा रही है

Fathers Day: किसी लेखक ने कहा है कि अपने सपनों को छोड़ देता है अपनों के सपनों की खातिर. पिता से बड़ा कोई खुदा नहीं होता. पिता बनना आसान है, लेकिन पिता का फर्ज निभाना बहुत मुश्किल. जिन संतानों के सिर पर पिता का साया होता है, वे जमाने के डर से बेफिक्र अपनी सपनों की उड़ान भरते हैं. वह पिता ही होते हैं जो बच्चों को उनकी राह दिखाते हैं और उनकी जरूरतों के लिये अपने सपनों को कुर्बान करते हैं. बच्चों को पढ़ा-लिखा कर उसे उसकी मंजिल तक पहुंचाने वाले पिता जीवन के तमाम झंझावात झेलते हैं, लेकिन उनके चेहरे पर कभी परेशानी नहीं झलकती.

भारतीय नौसना में ले. कमांडर बन नाम किया रौशन

मैंने पारू से एक अखबार से जुड़कर करियर की शुरुआत की. कुछ दिनों के बाद मैंने देवरिया से मुजफ्फरपुर आकर कपड़े की दुकान खोली. मैं चाहता था कि जिस तरह जीवन से मुझे जूझना पड़ रहा है, वैसे बच्चों के साथ नहीं हो. उसका कॅरियर अच्छा बने. इसके लिये जीवन के तमाम संघर्ष मैंने झेले, लेकिन बच्चों की पढ़ाई में कोई समझौता नहीं किया. एक दौर था, जब लगता था कि बेटे की पढ़ाई-लिखायी ठीक तरह से कैसे होगी, लेकिन मैंने हार नहीं मानी. मेरे तीन बेटे हैं. एक उत्पल कुमार सुमन को बचपन से ही पटना में रख कर पढ़ाया. वहां से उसने सैनिक स्कूल की तैयारी की. राष्ट्रीय मिलिट्री स्कूल बैंगलोर से पास आउट हुआ. फिलहाल गोआ में भारतीय नौसेना में ले.कमांडर है. दूसरा बेटा भी मुंबई में होटल मैनेजमेंट कर नौकरी कर रहा है और तीसरा बेटा बिजनेस संभाल रहा है. मैंने तीनों की पढ़ाई-लिखायी में कोई कमी नहीं की. एक पिता के नाते मैंने अपना फर्ज पूरा किया. आज मुझे इस बात की खुशी है. – नर्मेदश्वर प्रसाद चौधरी, सरैयागंज, कपड़ा विक्रेता व साहित्यकार

पिता का हौसला न मिलता तो मंजिल नहीं मिलती

मैं बचपन से ही दिव्यांग हूं, लेकिन पिता ने कभी मुझे यह महसूस नहीं होने दिया कि मैं सामान्य बच्चों की तरह नहीं हूं. मेरी परवरिश से लेकर पढ़ाई-लिखायी में कभी कोई कमी नहीं की. मेरे पिता शंभु साह डेकोरेशन का काम करते हैं. अपनी सीमित आय में भी उन्होंने मेरा ध्यान रखा और मेरी इच्छा अनुसार पढ़ाई पूरी करायी. मैंने जब उच्च शिक्षा में संगीत को चुना तब भी पिता ने इसके लिये सहमति दी और संगीत शिक्षा के लिये खर्च किया. उनकी प्रेरणा से ही मैँने गायन से अपने कॅरियर की शुरुआत की, लेकिन मैं चाहती थी कि सरकारी सेवा में जाऊं. इसी वर्ष बीपीएससी की परीक्षा में सफल होकर सीतामढ़ी के परिहार में संगीत शिक्षिका बनी हूं. पिता ने मेरी इच्छानुसार पढ़ाई नहीं करायी होती और मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा नहीं देते तो शायद मैं भी डिप्रेशन का शिकार होकर अपना लक्ष्य कभी नहीं चुन पाती. आज जो भी कुछ हूं, पिता की बदौलत हूं. उन्होंने हमेशा मेरा हौसला बढ़ाया और मेरे अंदर सब कुछ करने का आत्मविश्वास जगाया. – दीपमाला, दामोदरपुर, शिक्षिका सह गायिका

पत्नी के निधन के बाद बच्चों को योग्य बनाया

मेरे तीन बेटे हैं. जब तीनों बेटे की उम्र 12 से 16 वर्ष की थी तो पत्नी का निधन हो गया. मेरे सामने बच्चों का सही से लालन-पालन और शिक्षा चुनौती थी, लेकिन मैंने हार नहीं मानी. तीनों बच्चों को उच्च शिक्षा दिलायी. बड़े बेटे आदित्य प्रकाश वकालत करते हैं तो मंझला बेटा गाजियाबाद के एक स्कूल में फाइन आर्ट का शिक्षक है. दुर्भाग्य से तीसरा बेटा रूस्तम पाठक का साथ बहुत दिनों तक नहीं रह सका. वह हैदराबाद के मिसाइल कार्यक्रम में टेक्निकल ऑफिसर था. हैदाबाद में ही वह बीमार पड़ा और उसका निधन हो गया. जीवन के तमाम झंझावत को झेलते मैंने कभी हिम्मत नहीं हारी. पत्नी का निधन 1997 में हआ था. उस वक्त ही मैंने प्रण लिया था कि अब बेटे ही मेरी जिंदगी हैं और उन्हें पढ़ा-लिखा कर उनकी मंजिल तक पहुंचाना ही मेरा लक्ष्य है. मेरे प्रण ने कभी मुझे टूटने और अपने लक्ष्य से डिगने नहीं दिया. आज मुझे इस बात की संतुष्टि है कि बच्चों की मां नहीं थी तो मैंने कभी उसे कोई कमी नहीं होने दी. बच्चों को योग्य बनाने के लिये मैंने एक पिता का फर्ज पूरा किया – अंजनी कुमार पाठक, समाजसेवी और लेखक

आर्थिक अभाव झेल कर पिता ने बनाया सीए

मेरे पिता गोविंद अग्रवाल एक कपड़े की दुकान में नौकरी करते थे. उनकी आय बहुत ही कमी थी, बावजूद वे मुझे और मेरी छोटी बहन की पढ़ाई में कोई कसर नहीं छोड़ते थे. मैंने देखा है कि हमलोगों के लिये वे जीवन में लगातार समझौता करते रहे. तमाम संघर्षों से जूझने के बाद भी हमलोगों की पढ़ाई में कोई कमी नहीं होने दी. वे चाहते थे कि जिस तरह वह नौकरी कर रहे हैं, हमलोगों को वैसा जीवन नहीं देखना पड़े. उन्होंने प्राइवेट नौकरी करते हुये सीए की पढ़ाई के लिये मुझे कोलकाता भेजा. मैंने अपने पिता से संघर्ष को बचपन से देखा था, इसलिये मैंने कठिन मेहनत की और 1999 सीए की परीक्षा में सफलता प्राप्त की. मेरे पास दो विकल्प थे कि मैं महानगर में नौकरी ज्वॉइन करूं या अपने शहर जाऊं. पिता को किसी तरह की परेशानी नहीं हो, इसलिये मैंने मुजफ्फरपुर वापस आना उचित समझा. आज मैं जो भी पिता के संघर्ष की बदौलत हूं. आज मुझे खुशी है कि पिता के साथ मैं रहता हूं और वे अब भी मेरा मार्गदर्शन करते हैं. उन्होंने संघर्ष नहीं किया होता तो आज मैं सफल नहीं होता. – सुनील कंदोई, सीए, अखाड़ाघाट

मरहूम पिता की इच्छा थी, लोगों की भलाई करूं

यूपीएससी की परीक्षा में 157वां रैंक पाने वाले मोहम्मदपुर मुबारक के सैयद आदिल मोहसीन भी अपनी सफलता का श्रेय मरहूम पिता रजा मेहदी को देते हैं. आदिल बताते हैं कि बीटेक करने के बाद मैं नौकरी कर सकता था, जब उनका निधन हुआ था तो मैं इंटर में था. वे हमेशा कहते थे कि बेटा जिंदगी में वैसा कोई काम करना, जिससे दूसरों का भला हो सके. सच्चाई का साथ कभी मत छोड़ना और हमेशा दूसरों की भलाई का रास्ता चुनना. मुझे लगा कि बीटेक करने के बाद मैं नौकरी तो कर लूंगा, लेकिन दूसरों की भलाई कैसे हो पायेगी. मुझे यह लगा कि इसके लिये सबसे अच्छा माध्यम युपीएससी है. यहां से निकलता हूं तो मैं अपने जॉब के तहत दूसरों का भला कर सकता हूं. पिता ने जिस ईमानदारी और सच्चाई की बात मुझे बतायी थी, वह मेरे अंदर हमेशा से रही है. मैंने अपने पिता के सपनों को पूरा करने के लिए यूपीएससी की तैयारी की और सफल हुआ. पिता का दिखाये रास्ते से मुझे मंजिल मिली. – सैयद आदिल मोहसिन, यूपीएससी उत्तीर्ण अभ्यर्थी

Anand Shekhar
Anand Shekhar
Dedicated digital media journalist with more than 2 years of experience in Bihar. Started journey of journalism from Prabhat Khabar and currently working as Content Writer.

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