मुख्य बातें
फसलें हो रही प्रभावित, उत्पादन पर पड़ रहा असरविभिन्न प्रखंडों से 15000 मिट्टी के नमूनों की जांचकिसानों को जागरूक करेगा कृषि विभागउपमुख्य संवाददाता, मुजफ्फरपुर
जिले की मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी है. इससे फसलें प्रभावित हो रही हैं. विभिन्न प्रखंडों में हुई मिट्टी की जांच में इसका खुलासा हुआ है. पिछले वित्तीय वर्ष में सभी प्रखंडों के 15 हजार किसानों के खेतों की मिट्टी जांची गयी थी. इसमें नाइट्रोजन की कमी की बात सामने आयी थी. पता चला था कि पौधों की पत्तियां पीली पड़ रही हैं और फसल कमजोर हो रही है. मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी का मुख्य कारण कार्बनिक पदार्थ की कमी व यूरिया का अत्यधिक उपयोग है. इससे मिट्टी की संरचना को नुकसान पहुंचता है ओर सूक्ष्मजीवों की कमी हो जाती है.मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाया
अबतक फसलाें के कमजोर होने से किसान अनजान थे.जिन किसानों की मिट्टी की जांच हुई है, उन्हें मृदा स्वास्थ्य कार्ड बनाकर दिया गया है. उसमें मिट्टी के पोषक पदार्थों की कमी का ब्योरा है. हालांकि अधिकतर किसानों को यह नहीं पता है कि उनके खेतों की मिट्टी में किस पोषक तत्त्व की कमी है. इसके लिए कृषि विभाग किसानों को जागरूक करेगा. जिला कृषि पदाधिकारी सुधीर कुमार की अगुवाई में वैज्ञानिक किसानों को मिट्टी के पोषक तत्त्वों की कमी के बारे में जानकारी देंगे.केंचुआ खाद से दूर होती नाइट्रोजन की कमी
मिट्टी में नाइट्रोजन की कमी को दूर करने के लिए जैविक पदार्थ फायदेमंद होता है. केंचुआ खाद भी नाइट्रोजन व अन्य पोषक तत्त्वों का एक उत्कृष्ट स्रोत है. ढैंचा, सनई, मूंग, लोबिया जैसी दलहनी फसलें मिट्टी में नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करती है. इन फसलों को उगाकर मिट्टी में जोतने से नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ती है. इसके अलावा चना, मटर, मूंग, अरहर, मसूर, सोयाबीन जैसी दलहनी फसलें अपनी जड़ों में पाये जाने वाले राइजोबियम बैक्टीरिया की मदद से वातावरण की नाइट्रोजन को मिट्टी में स्थिर करती हैं, जिससे मिट्टी की उर्वरता बढ़ती है. फसल चक्र में दलहनी फसलों को शामिल करना बहुत फायदेमंद होता है. इसके अलावा नाइट्रोजन युक्त रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग जिसमें सीमित मात्रा में यूरिया, अमोनियम नाइट्रेट, डीएपी का उपयोग भी फायदेमंद है.
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