प्रतिनिधि, बोचहां अहियापुर में आयोजित आचार्य वेदानंद शास्त्री ने भगवान के अवतारों के प्रयोजन से कथा को आगे बढ़ाते हुए कहा कि सच्चे मन से की गयी सेवा ही फलीभूत होती है. श्रद्धा और विश्वास के लिए किसी को कहने की जरूरत नहीं होती है. यह तो स्वतः अपनी अंतरात्मा में उपजती है़ उन्होंने भगवान के जन्मोत्सव को नंद बाबा के घर आनंद की बात बतायी़ सचमुच जब किसी गृहस्थ के घर पुत्र का जन्म होता है, तो माता-पिता सहित परिजन आनंदित होते हैं. उन्हें लगता है कि मेरे घर पुत्र का आगमन हमारी सभी बाधाओं और दुर्दिन को मिटा देगा. पुत्र से ज्यादा सत्पात्र होने की बात है. ध्रुव एवं प्रह्लाद की कथा बताते हुए कहा कि राजपुत्र होने के बावजूद उनलोगों का मन प्रभु का स्मरण एवं उनके दर्शन में लगा रहा. प्रत्येक मानव को अपने पुत्र को सत्पात्र जैसा संस्कार देना चाहिए़ भगवान श्रीकृष्ण अपनी चार दिन की आयु से ही दुष्टों का संहार करने लगे. जब कंस का अत्याचार बहुत ही बढ़ गया तो भगवान को आना ही पड़ा. भगवान के अवतार से दुष्टों के साथ-साथ भक्तों का भी कल्याण हो जाता है. गोपियों का मन प्रभु श्रीकृष्ण के चरण में समर्पित था, जिनके मन में प्रभु के लिए जैसी भावना थी, उनके लिए भगवान ने वैसा ही किया. जिन गोपियों के मन में उनको अपने पति के रूप में प्राप्त करने की थी. भगवान ने उनका चीरहरण करके उनके अंतर के भेद को मिटाते हुए कहा कि तीन संबंधों के बीच पर्दा नहीं होता है – जैसे भगवान और भक्त, गुरु और शिष्य एवं पति और पत्नी़ उन्होंने इंद्र एवं ब्रह्माजी के अहंकार को मिटाया़ गोवर्धन पर्वत को अपनी बाएं हाथ की कनिष्ठा अंगुली पर लगातार सात दिनों तक उठाये रखकर गोकुल की रक्षा की. जिसने भी प्रभु के भरोसे पर अपना जीवन समर्पित कर दिया, उनका तो कल्याण हो ही गया. महारास मानव के अंदर की तृष्णाओं को मिटाने सर्वश्रेष्ठ साधन है. जीवन की तृष्णाएं ही दुःखों का मूल कारण है़ तृष्णा मिट जाने से वासनाएं मिट जाती हैं. तब तो सब कुछ भगवान की कृपा पर ही निर्भर है. वासनाओं को मिटाने के लिए ही भगवान ने महारास का आयोजन किया था. ध्यान रखने की बात तो यह है कि अगर प्रभु की कृपा और दर्शन प्राप्त हो जाये, तो अभिमान नहीं आनी चाहिए. उन्होंने कहा कि धैर्य, धर्मं, मित्र और नारी की परीक्षा विपत्ति में ही होती है. सच्चा जीवन दर्शन विपत्ति में ही होती है.
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