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Success Story: किसान चाची ने संघर्षों से सींची सफलता की कहानी, पढ़ें खास बातचीत के प्रमुख अंश

Success Story: अगर इरादे मजबूत हों, तो हर मुश्किल राह आसान बन जाती है. इस बात को सच कर दिखाया है पद्मश्री से सम्मानित राजकुमारी देवी ने, जिन्हें आज पूरा देश ‘किसान चाची’ के नाम से जानता है. अपने जीवन में उन्होंने संघर्ष, भेदभाव और गरीबी के साए में भी उम्मीद की एक नयी फसल बोई है. वे आज किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं. वीमेंस ऑफ द वीक के कॉलम में आज पढ़िए लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा बन चुकीं राजकुमारी देवी उर्फ ‘किसान चाची’ से हुई बातचीत के प्रमुख अंश.

Success Story: किसान चाची मूल रूप से मुजफ्फरपुर के सरैया गांव की रहने वाली हैं. बचपन से सपना था शिक्षिका बनने का, पर गरीबी ने रास्ता मोड़ दिया. कम उम्र में ही आनंदपुर गांव के अवधेश कुमार चौधरी से विवाह हो गया. पति किसान थे, पर पिता की प्रेरणा से विवाह के बाद भी पढ़ाई जारी रखी और दसवीं तक शिक्षा पूरी की. शादी के बाद कई निजी संघर्षों का सामना करना पड़ा. दस साल तक संतान न होना, फिर बेटियों के जन्म पर ससुराल में भेदभाव और आखिरकार अलग कर दिए जाने का दर्द. उस वक्त आर्थिक हालात इतने खराब थे, कि खुद को संभालने के लिए मैंने खेती का रास्ता चुना. रातों में खेतों में काम करती थी. बाद में डॉ राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय से प्रशिक्षण लिया और कृषि मेलों में अपने उत्पादों की प्रस्तुति से पहचान बनानी शुरू की. धीरे-धीरे लोग मुझे ‘किसान चाची’ कहने लगे. फिर अपना अचार ब्रांड भी शुरू किया, जो आज भी बहुत लोकप्रिय है.

Q. आपने गांव की अन्य महिलाओं को खेती से कैसे जोड़ा, इस दौरान क्या परेशानियां आयी ?

Answer- मैं स्वयं सहायता समूहों से जुड़ी और उनकी ताकत को महसूस किया. अपने गांव में स्वयं सहायता समूह बनाकर महिलाओं को जोड़ा. मैंने देखा कि रोजगार और आय का जरिया बनाना कितना जरूरी है. रोजाना 40-50 किमी साइकिल चलाकर गांव-गांव जाकर महिलाओं को संगठित किया. साइकिल चलाने से लेकर खेती की नयी तकनीकें सीखने तक, मैंने हर चुनौती का डटकर सामना किया. इस दौरान गांव में मुझे कई बार विरोध का भी सामना करना पड़ा, पर हार नहीं मानी. आज हमारे पास 300 से ज्यादा महिला स्वयं सहायता समूह हैं, और दिल्ली-मुंबई जैसे बड़े शहरों में हमारे 23 तरह के जैम और अचार बिकते हैं. इस वजह से लोग मुझे प्यार से ‘साइकिल चाची’ भी कहते हैं.

Q. अब तक की आपकी प्रमुख उपलब्धियां क्या रही हैं? इसके बारे में कुछ शेयर करें.

Answer- सच कहा गया है कि- ‘मेहनत का फल एक न एक दिन जरूर मिलता है’. मुझे 2006-07 में ‘किसान श्री’ सम्मान मिला. 2020 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया. इसके अलावा मैं सरैया कृषि विज्ञान केंद्र में सलाहकार और कृषि वैज्ञानिक भर्ती बोर्ड की सदस्य भी रह चुकी हूं. मेरी यात्रा पर केंद्र सरकार ने एक वृत्तचित्र भी बनाया है, जो कृषि के क्षेत्र में महिलाओं के योगदान की कहानी को उजागर करता है. यह सब मेरे लिए गर्व का विषय है, पर सबसे बड़ी खुशी तब मिलती है जब कोई महिला कहती है- ‘आपसे प्रेरणा मिली, अब मैं भी कुछ कर सकती हूं.’

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Radheshyam Kushwaha
Radheshyam Kushwaha
पत्रकारिता की क्षेत्र में 12 साल का अनुभव है. इस सफर की शुरुआत राज एक्सप्रेस न्यूज पेपर भोपाल से की. यहां से आगे बढ़ते हुए समय जगत, राजस्थान पत्रिका, हिंदुस्तान न्यूज पेपर के बाद वर्तमान में प्रभात खबर के डिजिटल विभाग में बिहार डेस्क पर कार्यरत है. लगातार कुछ अलग और बेहतर करने के साथ हर दिन कुछ न कुछ सीखने की कोशिश करते है. धर्म, राजनीति, अपराध और पॉजिटिव खबरों को पढ़ते लिखते रहते है.

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