Bihar News: बिहार के एक गांव की दास्तान, जो कभी चहल-पहल से भरा रहता था, आज वीरान हो चुका है. इमारतें खंडहर में तब्दील हो गई हैं, गलियां सूनी हैं और घरों में अब इंसानों की जगह चील-कौवे का बसेरा हो गया है. यहां की आधी से ज्यादा आबादी पलायन कर चुकी है, कोई शहरों में तो कोई विदेशों में बस चुका है.
गांव जो परदेस बन गया!
गांव के बुजुर्ग लोग बताते हैं कि यहां के लोग समय के साथ पलायन करते चले गए. विदेशों में बसने वाले लोग वर्षों से लौटे ही नहीं. माता-पिता की मृत्यु हो गई, अंतिम संस्कार भी हो गया, लेकिन बेटों ने लौटकर देखना तक जरूरी नहीं समझा. यह गांव बिहार के नालंदा जिले के हरनौत प्रखंड का ‘बेढना’ है. जिसकी आबादी तकरीबन 1500 है. लेकिन गांव में 500 लोग भी नहीं दिखते.
जहां बचपन खेलता था, अब वहां वीरानी है
इस गांव की महिलाएं बात करने से कतराती हैं. स्थानीय लोग बताते हैं कि यहां के कई लोग विदेशों में सेटल हो चुके हैं. जिनके पास पुरखों की संपत्ति भी है, लेकिन वे लौटना नहीं चाहते. वहीं उस गांव में एक गली है. जहां 10 घर हैं लेकिन 30-35 वर्षों से वहां कोई नहीं लौटा.
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क्या पुरखों की विरासत भी छूट जाएगी?
इस गांव में पोस्टमैन से लेकर बुजुर्ग तक एक ही सवाल पूछते हैं- “क्या कोई अपनी पुश्तैनी संपत्ति का रक्षक नहीं बनेगा?” रोजगार और अच्छी जिंदगी की तलाश में गांव छोड़ने वाले अब शहरों को ही अपनी असली दुनिया मान चुके हैं. जो लोग यूएस, कनाडा और यूरोप जैसे संभ्रांत देशों में बस चुके हैं, उनके लिए यह गांव शायद सिर्फ यादों का हिस्सा बनकर रह गया है.