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Women of the Week: 47 वर्षों से संघर्ष और सृजन की मिसाल हैं ललिता देवी, सामाजिक बंदिशों को तोड़कर पेपर मेसी को दे रही पहचान

Women of the Week: पेपर मेसी आर्ट बिहार का एक प्राचीन शिल्प है, जिसका उपयोग विभिन्न रूपों के मुखौटे, खिलौने आदि तैयार करने के लिए किया जाता है. यह अपने आप में बेहद खास कला है, जिसका नाम अक्सर मिथिला पेंटिंग की चमक में दब जाता है. पेपर मेसी एक ऐसी लोककला है, जिसे पहचान दिलाने की लड़ाई कुछ समर्पित कलाकार आज भी लड़ रहे हैं. उन्हीं में से एक कलाकार हैं ‘ललिता देवी’, जो पिछले 47 वर्षों से इस कला को संजो रही हैं.

Women of the Week: मधुबनी की रहने वाली ललिता देवी की कला यात्रा सिर्फ मिट्टी से बने पारंपरिक प्रतीकों से शुरू नहीं हुई, बल्कि सामाजिक बंदिशों को तोड़कर पेपर मेसी तक पहुंची. वे कहती हैं पेपर मेसी एक फ्रांसीसी शब्द है जिसका मतलब होता है ‘गला हुआ कागज’ या ‘मसला हुआ कागज’. ललिता देवी ने अपने संघर्ष और सफलता की कहानी प्रभात खबर के साथ साझा की. पेश है उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश.

Q. इस कला से जुड़ने की पीछे की कहानी बताएं? इसके शुरुआत आपने कैसे की?

Ans- मैं मूल रूप से मधुबनी की रहने वाली हूं. घर में शादी से जुड़ी मिट्टी की चीजें-जैसे हाथी, मछली आदि बनती थी. मात्र 11 साल की उम्र में मेरी शादी हुई, और पांच साल बाद ससुराल आई. वहां पेपर मेसी का काम होता था, लेकिन मुझे इससे दूर रखा गया. पर मेरी बहुत इच्छा थी की मैं भी इस कला का हिस्सा बनूं. एक बार जब पद्मश्री सुभद्रा देवी ने महिलाओं को प्रशिक्षित करने का प्रयास शुरू किया, तो परिवार के लोग इसके बेहद खिलाफ थे. पर मेरी सास ने मेरा सहयोग किया और प्रशिक्षण लेने की इजाजत दी. यहीं से मेरी यात्रा शुरू हुई.

Q. क्या इस कला में आने का रास्ता आसान था?

Ans- बिल्कुल नहीं. शुरुआत में परिवार का विरोध था, लेकिन सास का साथ मिला. सुभद्रा देवी ने न सिर्फ मुझे सिखाया, बल्कि मेरे बनाये उत्पादों को बाजार भी दिलाया. फिर मैंने प्रशिक्षक के रूप में कई जगह-जमशेदपुर, बनारस, पटना में काम किया.

Q. बीच में आपने इस कला से दूरी क्यों बना ली थी?

Ans- 2005 में जब मैं पटना से प्रशिक्षण देकर लौटी, एक महीने बाद मेरे पति का निधन हो गया. बच्चों की पूरी जिम्मेदारी मुझ पर आ गयी. करीब 10 साल तक मैं सिर्फ मां की भूमिका में रही. लेकिन हैंडीक्राफ्ट ऑफिस और उपेंद्र महारथी संस्थान के लोगों ने मुझे दोबारा सक्रिय किया.

Q. आपको स्टेट अवार्ड कैसे और कब मिला?

Ans – 2012 में जब मैंने स्टेट अवार्ड की परीक्षा दी, उसी वक्त मेरे बड़े बेटे का निधन हो गया. एक बहुत मुश्किल समय था. लेकिन अगले साल, 2013 में मुझे स्टेट अवार्ड मिला. बाद में ललित कला अकादमी सहित कई मंचों पर भी सम्मान मिला.

Q. आज की युवा कलाकारों को आप क्या संदेश देना चाहेंगी ?

Ans- आज के युवाओं को हमारी परंपरागत कला से जुड़ना चाहिए. ये सिर्फ शौक नहीं, पहचान और आत्मनिर्भरता का जरिया है. पेपर मेसी जैसी कला को अगर हम नहीं बचायेंगे, तो ये खो जायेंगी. सरकार को भी इस ओर गंभीरता से ध्यान देना चाहिए।

Q. अभी आप क्या कर रही हैं?

Ans- अब स्वास्थ्य थोड़ा साथ नहीं देता, इसलिए घर पर ही महिलाओं को प्रशिक्षित करती हूं. कोशिश है कि ये कला जिंदा रहे और नयी पीढ़ी इसे आगे बढ़ाएं.

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Radheshyam Kushwaha
Radheshyam Kushwaha
पत्रकारिता की क्षेत्र में 12 साल का अनुभव है. इस सफर की शुरुआत राज एक्सप्रेस न्यूज पेपर भोपाल से की. यहां से आगे बढ़ते हुए समय जगत, राजस्थान पत्रिका, हिंदुस्तान न्यूज पेपर के बाद वर्तमान में प्रभात खबर के डिजिटल विभाग में बिहार डेस्क पर कार्यरत है. लगातार कुछ अलग और बेहतर करने के साथ हर दिन कुछ न कुछ सीखने की कोशिश करते है. धर्म, राजनीति, अपराध और पॉजिटिव खबरों को पढ़ते लिखते रहते है.

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