लोकसभा में सांसद ने बिहार की आर्थिक स्थिति को लेकर जतायी चिंता पूर्णिया. पूर्णिया के सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने लोकसभा में सप्लीमेंट्री डिबेट के दौरान बिहार के साथ हो रहे आर्थिक भेदभाव की ओर सदन का ध्यान आकर्षित कराया. उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि बिहार के मेहनतकश लोगों को उनके ही राज्य में बैंक ऋण, संसाधनों और रोजगार के अवसरों से वंचित रखा जा रहा है, जो न केवल संवैधानिक समानता के सिद्धांत की अवहेलना है, बल्कि सामाजिक-आर्थिक असमानता को भी दर्शाता है. सांसद पप्पू यादव ने बताया कि वर्ष 2023-24 में बिहार की प्रति व्यक्ति आय मात्र ₹66,828 है, जबकि देश की औसत प्रति व्यक्ति आय 2,28,000 हजार है. यह आंकड़े इस बात का प्रमाण हैं कि बिहार आज भी विकास की दौड़ में पिछड़ा हुआ है. उन्होंने सवाल किया कि क्या यह राष्ट्र निर्माण में बराबर भागीदारी देने वाले बिहारवासियों के साथ अन्याय नहीं है? उन्होंने विशेष रूप से बैंकों की भूमिका पर प्रश्न उठाते हुए कहा कि बिहार में लोग सर्वाधिक डिपॉजिट करते हैं, लेकिन जब ऋण देने की बात आती है, तो वही बैंक मात्र 30% लोन बिहार में देते हैं, शेष राशि अन्य राज्यों में निवेश कर देते हैं. पप्पू यादव ने यह भी कहा कि गरीब किसान और बेरोजगार युवा जब बैंक जाते हैं, तो उन्हें क्रेडिट रेटिंग, गारंटी और दलाली के नाम पर टाल दिया जाता है, जबकि बड़े पूंजीपतियों को बिना पूछताछ करोड़ों के ऋण दे दिए जाते हैं. उन्होंने यह स्पष्ट किया कि बिहार का श्रमिक जब खाड़ी देशों में पसीना बहाता है, तो वहीं से देश को अरबों डॉलर की विदेशी मुद्रा मिलती है, जो देश की अर्थव्यवस्था और विदेशी भुगतान संतुलन को मजबूती देती है. फिर भी उसी श्रमिक का भाई जब अपने गांव में स्वरोजगार शुरू करना चाहता है, तो उसे बैंक से मदद नहीं मिलती. यह नीति न सिर्फ सामाजिक रूप से अन्यायपूर्ण है, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी नुकसानदायक है. पप्पू यादव ने केंद्र सरकार और वित्त मंत्रालय से बिहार में सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को ऋण वितरण में समानता और न्याय सुनिश्चित करने, क्रेडिट-डिपॉजिट रेशियो (सीडीआर) को सभी राज्यों में संतुलित करने के लिए कानूनी प्रावधान, किसानों, महिलाओं, युवाओं और लघु उद्यमियों के लिए विशेष ऋण योजना और जिन बैंकों का सीडीआर बिहार में 40% से कम है, उन्हें जवाबदेह बनाए जाने का आग्रह किया. उन्होंने लोकसभा अध्यक्ष से अनुरोध किया कि बिहार सहित अन्य पिछड़े राज्यों में ऋण वितरण पर एक संसदीय समिति का गठन किया जाये जो बैंकों की भूमिका और नीतियों की गहन समीक्षा करे.
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