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पूर्णिया में संक्रमण के खतरे के बीच की जा रही किडनी मरीजों की डायलिसिस, पुरानी बिल्डिंग में एक ही जगह है RTPCR और टीबी कार्यालय

Bihar News: पूर्णिया में राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल परिसर किडनी के मरीजों के लिए उपलब्ध डायलिसिस केंद्र बेहद ही जोखिम वाले स्थान पर संचालित किया जा रहा है. इसकी बिल्डिंग की हालत काफी जर्जर हो चली है.

अरुण कुमार/ Bihar News: पूर्णिया में पुरानी दो मंजिली इमारत में किडनी के मरीजों के लिए डायलिसिस की व्यवस्था के साथ-साथ कई कार्यालय भी चल रहे हैं. उक्त केंद्र की बिल्डिंग में चल रहा (RTPCR) आरटीपीसीआर जांच केंद्र एवं संक्रामक टीबी रोग का कार्यालय सबसे ज्यादा खतरनाक है. इसी बिल्डिंग में जिले का दवा भंडार, राष्ट्रीय बाल विकास योजना एवं बीएमएसआइसीएल का कार्यालय भी कार्यरत है. आरटीपीसीआर जांच केंद्र एवं संक्रामक टीबी रोग के कार्यालय को लेकर यहां आने वाले किडनी के मरीजों के लिए सबसे ज्यादा खतरा है, जहां बैक्टीरिया एवं वायरस संबंधित जांच के लिए मरीजों का आना लगातार जारी रहता है. इस भवन में प्रतिदिन विभिन्न प्रकार के संक्रमण से ग्रसित मरीजों के अलावा हवा में फैलने वाले रोग के मरीज जांच से लेकर दवा और इलाज के लिए बड़ी संख्या में पहुंचते हैं. साथ ही समय-समय पर टीबी मरीजों को मिलने वाली सहायता से संबंधित कार्य भी इसी स्थान पर किये जाते हैं.

केंद्र के बगल में चलता है शौचालय

हालांकि ये दोनों विभाग उपरी मंजिल पर हैं, जबकि डायलिसिस केंद्र ग्राउंड फ्लोर पर है. बावजूद इसके इसी डायलिसिस केंद्र वाले क्षेत्र में शौचालय और बाथरूम होने की वजह से उक्त बिल्डिंग में आने वाले सभी लोग चाहे कर्मी हों अथवा मरीज सभी उसका सार्वजनिक तौर पर इस्तेमाल करते हैं. इस वजह से यहां संचालित डायलिसिस केंद्र को संक्रमण मुक्त रखने का दावा बिलकुल फेल है और इसका खामियाजा किडनी पेशेंट को कभी भी भुगतना पड़ सकता है.

पीपीपी मोड पर चल रहा है डायलिसिस केंद्र

जीएमसीएच स्थित डायलिसिस केंद्र का संचालन पीपीपी (पब्लिक, प्राइवेट पार्टनरशिप) मोड पर चल रहा है. इसमें एक साथ पांच लोगों के लिए डायलिसिस की सुविधा उपलब्ध है. हर दिन करीब 10 से 15 लोग यहां डायलिसिस कराने आते हैं. अबतक इस केंद्र में लगभग 10 हजार डायलिसिस संपन्न कराये जा चुके हैं. इस केंद्र पर राशन कार्डधारी परिवार के लिए निशुल्क सेवा है, जबकि सामान्य लोगों के लिए सरकारी दर 1797 रुपये शुल्क लिया जाता है. यह सेंटर लगभग पिछले तीन वर्षों से इसी स्थान पर चल रहा है. वर्ष 2022 में ही इस भवन में अपोलो डायलिसिस की सुविधा पीपीपी मोड पर शुरू की गयी थी. इसके बाद के दिनों में इस भवन की स्थिति बदलती गयी और अब बिल्कुल दयनीय हो गयी है. एक ओर संक्रमण का खतरा, तो दूसरी ओर अंदर की दीवारों पर लगे डैंप के बीच मरीजों का डायलिसिस कराना कभी भी किसी के लिए भी घातक और जानलेवा हो सकता है.

बना है जोखिम वाला क्षेत्र

केंद्र की सीनियर इंचार्ज डायलिसिस नाजिश अख्तर ने बताया कि यह भवन बहुत पुराना हो गया है. जगह-जगह डैंप लग गये हैं. अपने स्तर से बेहतर साफ-सफाई की व्यवस्था होते हुए भी इस बिल्डिंग में संक्रामक रोग से पीड़ित लोगों का आना-जाना हर दिन लगा रहता है, जिससे किडनी के मरीजों में संक्रमण फैलने का बेहद खतरा है. खास कर टॉयलेट के बिलकुल करीब होने और उसका सार्वजनिक इस्तेमाल होने से बेहद जोखिम वाला क्षेत्र बना हुआ है.

बोले अधीक्षक

जीएमसीएच अधीक्षक डॉ संजय कुमार ने कहा कि यह सदर अस्पताल के समय से ही उसी बिल्डिंग में चली आ रही व्यवस्था के तहत डायलिसिस की सुविधा अब भी बहाल है. हाल ही में उक्त स्थल का निरीक्षण किया गया था. प्रभारी को वहां की व्यवस्था दुरुस्त रखने और स्वच्छता प्रबंधन पर विशेष ध्यान देने का निर्देश दिया गया है. यह मेडिकल कॉलेज फिलहाल यूजी क्रेटेरिया के अनुसार चल रहा है. नेफ्रो डिपार्टमेंट के आने के बाद जीएमसीएच का अपना सारा सेटअप होगा. कॉलेज की अपनी डायलिसिस की व्यवस्था रहेगी.

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Radheshyam Kushwaha
Radheshyam Kushwaha
पत्रकारिता की क्षेत्र में 12 साल का अनुभव है. इस सफर की शुरुआत राज एक्सप्रेस न्यूज पेपर भोपाल से की. यहां से आगे बढ़ते हुए समय जगत, राजस्थान पत्रिका, हिंदुस्तान न्यूज पेपर के बाद वर्तमान में प्रभात खबर के डिजिटल विभाग में बिहार डेस्क पर कार्यरत है. लगातार कुछ अलग और बेहतर करने के साथ हर दिन कुछ न कुछ सीखने की कोशिश करते है. धर्म, राजनीति, अपराध और पॉजिटिव खबरों को पढ़ते लिखते रहते है.

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