Tourist Place In Bihar: रोहतास जिले का चौरासन मंदिर को रोहितेश्वर महादेव के नाम से भी जाना जाता है. इस मंदिर तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को 84 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं, इसी कारण इसका नाम ‘चौरासन’ पड़ा. स्थानीय लोग इसे ‘चौरासना सिद्धि’ भी कहते हैं. माना जाता है कि इन सीढ़ियों को चढ़ते हुए भक्तों को एक खास आध्यात्मिक अनुभव होता है, जो उन्हें भीतर से शांति और ऊर्जा का अहसास कराता है. यह मंदिर न केवल अपने आध्यात्मिक महत्व के लिए जाना जाता है बल्कि यहां का शांत वातावरण भी पर्यटकों को खूब लुभाता है.
अद्भुत है नजारा
जब यह मंदिर बादलों से ढक जाता है, तो नजारा बहुत सुंदर लगता है. ऐसा लगता है जैसे प्रकृति खुद मंदिर को सजा रही हो. श्रद्धालुओं को उस समय यह जगह धरती पर बने स्वर्ग जैसी लगती है. यह नजारा देखने वालों के मन को छू जाता है.
रास्ते में मिलते हैं और भी कई नजारे
चौरासन मंदिर तक पहुंचने का रास्ता भी एक तरह की तीर्थ यात्रा जैसा अनुभव देता है. रास्ते में बहती छोटी नदियां, हरी-भरी पेड़-पौधे और पहाड़ियों के बीच बना रास्ता इस सफर को खास बना देता है. पास में बहते झरने की आवाज माहौल को शांत और पवित्र बना देती है. यह मंदिर ऐसा स्थान है जहां प्रकृति और भक्ति दोनों एक साथ महसूस होते हैं.
ऐसे पहुंचे चौरासन मंदिर
चौरासन मंदिर, रोहतासगढ़ किले के नजदीक स्थित है और रोहतास प्रखंड मुख्यालय से करीब दो घंटे की दूरी पर है. यहां आने के लिए सबसे पास का बस स्टैंड रोहतास है, जबकि नजदीकी रेलवे स्टेशन सासाराम और एयरपोर्ट पटना में है. मंदिर तक पहुंचने के रास्ते में घना जंगल और पहाड़ियां पड़ती हैं, जो यात्रा को रोमांचक और यादगार बना देती हैं.
प्रचार-प्रसार से बन सकती है फेमस
चौरासन मंदिर को संरक्षण और प्रचार से नई पहचान मिल सकती है. इस मंदिर की खूबसूरती, इतिहास और शांति इसे एक शानदार पर्यटन स्थल बना सकती हैं. प्रचार-प्रसार से यह जगह पूरे देश में मशहूर हो सकती है.
नुकसान के बाद भी है मजबूत
समय बीतने के साथ मंदिर की छत और मुख्य भाग अब टूटे-फूटे हालत में हैं. कहा जाता है कि कभी हमलावरों ने इसे नुकसान पहुंचाया था. इसके बावजूद, शिवभक्तों की श्रद्धा आज भी उतनी ही मजबूत है. अब प्रशासन इसकी मरम्मत और पुनर्निर्माण की तैयारी कर रहा है.
84 यज्ञों के राख पर बना है मंदिर
कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 7वीं सदी में राजा हरिश्चंद्र ने करवाया था. मान्यता है कि वे संतान की कामना के लिए यहां 84 बार यज्ञ किए थे. उनकी प्रार्थना सफल हुई और उन्हें पुत्र के रूप में रोहिताश्व की प्राप्ति हुई. उसी यज्ञ की राख पर राजा ने इस मंदिर की स्थापना की. यही कहानी इस जगह को विशेष और आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण बनाती है.
जल्दी स्वीकार होती है प्राथनाएं
स्थानीय लोगों की मान्यता है कि इस मंदिर में की गई प्रार्थना जल्दी स्वीकार होती है. उनका विश्वास है कि जो भी भक्त सच्चे दिल से यहां पूजा करता है, उसकी मनोकामना शीघ्र पूरी होती है. यही कारण है कि दूर-दराज से लोग यहां आकर भगवान शिव से अपनी मुरादें मांगते हैं.
(जयश्री आनंद की रिपोर्ट)
Also Read: Bihar Cabinet: नीतीश कैबिनेट की बैठक आज, डोमिसाइल, रोजगार समेत इन मुद्दों पर हो सकती है चर्चा