सहरसा. सदर अस्पताल में एक बार फिर से प्रशासनिक हलचल तेज हो गयी है. सोमवार को अचानक आदेश जारी कर डॉ एसके आजाद को प्रभारी अधीक्षक पद से हटा दिया गया व उनकी जगह डॉ शिवशंकर मेहता को नया प्रभारी अधीक्षक नियुक्त कर दिया गया. यह बदलाव ऐसे समय में हुआ है जब अस्पताल में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन मद से 38 लाख रुपये की कथित अवैध निकासी का मामला सामने आया है. डॉ एसके आजाद द्वारा इसकी जांच के लिए वरीय पदाधिकारी सहित राज्य स्वास्थ्य समिति तक को पत्राचार किया गया. कहीं ऐसा तो नहीं कि 38 लाख का अवैध निकासी उजागर करना डॉ एसके आजाद को मंहगा पड़ गया. डॉ एसके आज़ाद को हटाने का कारण डॉक्टर की वरीयता बतायी गयी है, लेकिन हैरानी की बात यह है कि जिन डॉ शिवशंकर मेहता को प्रभारी अधीक्षक बनाया गया है उनकी सदर अस्पताल में पोस्टिंग 30 अप्रैल को हुई है. ऐसे में यह बड़ा सवाल है कि वरिष्ठता ही मानदंड था तो यह बदलाव दो माह बाद क्यों की गयी. इस बदलाव से कई सवाल खड़े हो गये हैं. खासकर इसलिए भी की प्रभारी अधीक्षक जैसा कोई पद ना तो बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग द्वारा स्वीकृत है व ना ही राज्य स्वास्थ्य समिति की किसी अनुमोदित संरचना में यह दर्जा स्वीकार्य है. सामान्यतः किसी सरकारी अस्पताल में अधीक्षक का पद असैनिक शल्य चिकित्सक सह मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी के प्रभार में होता है. ऐसे में इस पद का सृजन किसने किया. ऐसे में इस नियुक्ति की वैधानिकता व पारदर्शिता पर सवाल उठना स्वाभाविक है. इस प्रशासनिक फेरबदल के पीछे जो अहम कारण माना जा रहा है वह 38 लाख रुपये की कथित अवैध निकासी का मामला है. पूर्व प्रभारी अधीक्षक डॉ एसके आज़ाद ने अपने आधिकारिक पत्राचार में गंभीर आरोप लगाया है कि यह निकासी अस्पताल प्रबंधक, प्रभारी लेखापाल व अधीक्षक की मिलीभगत से की गयी है. उन्होंने यह भी कहा कि यह वित्तीय लेन-देन बिना कैश बुक, लेज़र व एसएनऐ रजिस्टर का विधिवत प्रभार लिए बिना ही संपन्न कर लिया गया. जो नियमों के पूरी तरह खिलाफ है. डॉ आज़ाद का यह आरोप केवल प्रशासनिक असंतोष नहीं. बल्कि एक गंभीर वित्तीय अनियमितता की ओर इशारा करता है. जिसमें अस्पताल के महत्वपूर्ण रिकॉर्ड की अनदेखी कर लाखों की सरकारी राशि निकाली गयी है. यह मामला अब केवल अस्पताल प्रशासन तक सीमित नहीं रहा, बल्कि जिला प्रशासन, स्वास्थ्य विभाग और यहां तक कि आम जनमानस की नजर में भी आ चुका है. पूर्व में भी वित्तीय अनियमितता का लगा है आरोप यह पहली बार नहीं है जब सदर अस्पताल में इस तरह के वित्तीय और प्रशासनिक अनियमितताओं की खबरें आयी हैं. लेकिन अफसोस की बात यह है कि ज्यादातर मामलों को समय के साथ ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. इस बार भी ऐसी ही उदासीनता बरती गयी तो यह एक खतरनाक परंपरा को जन्म देगा. अब लोगों की निगाहें जिला प्रशासन पर हैं कि वह इस मामले में कितनी तत्परता व पारदर्शिता से कार्रवाई करती है. समय रहते गंभीरता नहीं दिखाई गयी तो आम जनता का विश्वास सरकारी स्वास्थ्य तंत्र से उठ जाएगा. फोटो – सहरसा 28- मॉडल सदर अस्पताल
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