सदर अस्पताल में चोरी और लापरवाही का सिलसिला जारी, जिला प्रशासन बेखबर सहरसा. सदर अस्पताल जो जिले का सबसे बड़ा सरकारी चिकित्सा संस्थान है, इन दिनों अपनी सुरक्षा व्यवस्था और प्रशासनिक लापरवाही को लेकर सवालों के घेरे में है. बीते तीन वर्षों में अस्पताल परिसर से लगातार कीमती सरकारी उपकरण और संपत्तियों की चोरी की घटनाएं सामने आयी हैं. इन घटनाओं ने न सिर्फ अस्पताल प्रशासन की निष्क्रियता को उजागर किया है, बल्कि सुरक्षा व्यवस्था की पोल भी खोल दी है. ताजा मामला अस्पताल के ऑक्सीजन सप्लाई से जुड़ा है. जिसमें अस्पताल परिसर में ऑक्सीजन प्लांट से नये भवन तक ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए लगाए गये सैकड़ों मीटर लंबे तांबे के पाइप को चोरों ने बड़ी चालाकी से उखाड़ लिया. यह काम धीरे-धीरे कई दिनों में किया गया और हैरानी की बात यह है कि इस दौरान न तो किसी गार्ड को कोई भनक लगी और न ही अस्पताल प्रशासन को इसकी जानकारी हुई. जबकि पूरा परिसर सीसीटीवी कैमरों की निगरानी में है. रात के समय अस्पताल में आने वाले मरीजों और उनके परिजनों ने सुरक्षा में लगे गार्डों से कई बार सुरक्षा को लेकर शिकायतें भी की. लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया. लोगों का कहना है कि रात में अस्पताल में किसी तरह की सुरक्षा व्यवस्था सक्रिय नहीं रहती है. जिससे चोरों को अपना काम करने में कोई परेशानी नहीं होती. जबकि पांच दिन पहले चार चोरों को चोरी करते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया गया था. जिसे पुलिस के हवाले भी किया गया. लेकिन इससे पहले के मामलों में प्रशासन की भूमिका केवल कागजों तक सीमित रह गयी. न तो चोरी की गयी वस्तुएं बरामद की गई और न ही किसी जिम्मेदार पर विभागीय कार्रवाई की गयी. चोरी की घटनाएं केवल तांबे के पाइपों तक सीमित नहीं है. इससे पहले भी केंद्र सरकार से प्राप्त लगभग 50 लाख रुपये की लागत वाली मोबाइल मेडिकल यूनिट वैन गायब हो चुकी है. यह वैन अच्छी स्थिति में थी और लोगों के बीच स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार के उद्देश्य से दी गयी थी. लेकिन आज तक इस वाहन का कोई सुराग नहीं मिल पाया है. कर्मियों की मानें तो अस्पताल परिसर से चोरी गये सामानों की कीमत अब तक लाखों में नहीं बल्कि करोड़ों में पहुंच चुकी है. फिर भी न तो अस्पताल प्रशासन ने इसके खिलाफ कोई ठोस कदम उठाया है और न ही जिला प्रशासन ने इन मामलों पर गंभीरता दिखाई है. लोगों का कहना है कि यदि समय रहते अस्पताल प्रशासन सजग होता और सीसीटीवी फुटेज की नियमित जांच होती तो चोरों को पकड़ना आसान होता और चोरी की घटनाएं रोकी जा सकती थी. लेकिन सवाल अब यह उठता है कि जब पूरा अस्पताल परिसर सीसीटीवी से लैस है तो फिर चोरों का इतनी बड़ी चोरी को अंजाम देना कैसे संभव हुआ. क्या यह बिना किसी अंदरूनी सहयोग के मुमकिन है. यदि नहीं तो क्या इसमें अस्पताल के किसी कर्मी की मिलीभगत है. इन तमाम घटनाओं के बावजूद भी अब तक न तो किसी अधिकारी पर कोई कार्रवाई हुई है और न ही चोरी गए सामान की वसूली के लिए कोई विशेष जांच टीम बनाई गयी है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या सरकारी संपत्ति की रक्षा की जिम्मेदारी सिर्फ कागजी खानापूर्ति तक ही सीमित रह गयी है. अब जरूरत है कि जिला प्रशासन इन घटनाओं को गंभीरता से ले और एक उच्च स्तरीय जांच कमेटी का गठन कर अस्पताल प्रशासन की जिम्मेदारी तय करे. साथ ही सुरक्षा व्यवस्था को भी फिर से व्यवस्थित कर उसकी जवाबदेही तय की जाए. यदि ऐसा नहीं किया गया तो आने वाले समय में सदर अस्पताल की स्थिति और भी बदतर हो सकती है.
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