छपरा. जयप्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा में परमहंस दयाल पीठ की स्थापना को लेकर बुधवार को रौजा स्थित ब्रह्म विद्यालय एवं आश्रम के संन्यासियों का एक प्रतिनिधिमंडल महात्मा व्यासानंद की अगुवाई में पटना स्थित राजभवन पहुंचा. प्रतिनिधिमंडल ने बिहार के राज्यपाल राजेन्द्र अर्लेकर से मुलाकात कर उन्हें एक आवेदन पत्र सौंपा और परमहंस दयाल जी के जीवन, कार्य और सिद्धांतों से अवगत कराया. प्रतिनिधिमंडल ने बताया कि परमहंस दयाल जी महाराज की जन्मस्थली एवं ज्ञानस्थली छपरा को होने का गौरव प्राप्त है. उनका जन्म वर्ष 1846 में हुआ था. उनके गुरु, काशी के केदार घाट स्थित स्वामी जी, छपरा आकर उन्हें प्राचीन योग साधनाओं की शिक्षा देते थे. बाल्यकाल में ही परमहंस दयाल जी ने प्राणायाम, ध्यान और समाधि की प्रक्रियाओं में पारंगत होकर गहन आध्यात्मिक ज्ञान अर्जित किया. सन् 1863 में माता-पिता के शरीरांत के उपरांत मात्र 17 वर्ष की आयु में उन्होंने संन्यास ग्रहण किया और 40 वर्षों तक देशभर में भ्रमण करते रहे. इस दौरान उन्होंने रोहतास, पटना, सोनपुर सहित मथुरा-वृंदावन और जयपुर जैसे स्थानों में समय बिताया. जयपुर में 20 वर्षों के प्रवास के बाद वे सन् 1902 में तत्कालीन ब्रिटिश भारत के सीमावर्ती क्षेत्र टेरी पहुंचे, जहां उन्होंने 17 वर्षों तक निवास किया. वहीं से उन्होंने एक आध्यात्मिक पंथ की स्थापना की, जिसका उद्देश्य जनमानस को ज्ञान और भक्ति से लाभान्वित करना था. आज यह पंथ विश्वभर में फैला हुआ है. प्रतिनिधिमंडल ने राज्यपाल से आग्रह किया कि जयप्रकाश विश्वविद्यालय में परमहंस दयाल पीठ की स्थापना की जाये ताकि छात्र-छात्राएं और जनसामान्य उनके जीवन दर्शन, सिद्धांतों एवं शिक्षाओं से लाभान्वित हो सकें. इससे विश्वविद्यालय को भी शैक्षणिक और सांस्कृतिक दृष्टि से नयी दिशा प्राप्त होगी. प्रतिनिधिमंडल में ब्रह्म विद्यालय एवं आश्रम के महात्मा व्यासानंद, महात्मा शब्दयोगानंद, महात्मा अखिल प्रकाशानंद, महात्मा ओंकारानंद, महात्मा निर्मल प्रकाशानंद तथा जेपी विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो हरिकेश सिंह शामिल थे.
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