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Saran News : विज्ञान केंद्र मांझी में किसानों को दी गयी प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी

कृषि विज्ञान केंद्र मांझी के द्वारा सारण जिले के जलालपुर प्रखंड के कुमना, भटकेशरी एवं देवरिया कुल तीन पंचायतों में कार्यक्रम किया गया.

मांझी.

कृषि विज्ञान केंद्र मांझी के द्वारा सारण जिले के जलालपुर प्रखंड के कुमना, भटकेशरी एवं देवरिया कुल तीन पंचायतों में कार्यक्रम किया गया. कृषि विज्ञान केंद्र मांझी के विषय वस्तु विशेषज्ञ (उद्यान विज्ञान) सह नोडल ऑफिसर, विकसित कृषि संकल्प अभियान डॉ जितेन्द्र चन्द्र चंदोला ने बताया कि कृषि विज्ञान केन्द्र, मांझी के वैज्ञानिकों के दो टीमों द्वारा विकसित कृषि संकल्प अभियान के अंतर्गत 29 मई से 12 जून, 2025 को सारण जिले के कुल तेरह प्रखंडों के नब्बे पंचायतों में किसानों के लिए जागरूकता सह प्रशिक्षण का आयोजन किया गया. वैज्ञानिकों ने कृषि विज्ञान केन्द्र मांझी के द्वारा आयोजित किए जाने वाले विभिन्न विषयों के प्रशिक्षण, भारत सरकार एवं बिहार सरकार द्वारा चलाए जा रहे योजनाओं, पॉलीहाउस में सब्जियों का उत्पादन, शून्य जुताई विधि से धान की सीधी बुवाई, अरहर की खेती, वैज्ञानिक विधि से फलों के नए बाग लगाना, उत्तम किस्म के पौधों की उपलब्धता, गड्डे खोदने का उत्तम समय एवं विधि, पोषण वाटिका, ड्रोन का खेती में महत्व, फलों एवं सब्जियों की नर्सरी, प्राकृतिक खेती, मिट्टी का जाँच, खरीफ के फसलों में लगने वाले कीट एवं रोग के प्रबंधन, मशरूम उत्पादन, मधुमक्खी पालन विषय पर किसानों को विस्तृत में बताया गया. साथ ही डॉ जितेन्द्र चन्द्र चंदोला ने किसानों से कहा कि इस समय प्राकृतिक एवं खेती की बहुत आवश्यकता है. वर्तमान समय में उर्वरकों व एग्रो- केमिक्ल्स के दामों (मूल्यों) में काफी बढ़ोतरी के साथ-साथ समय पर आपूर्ति की भी समस्या, ऐसे में हमें इनका विकल्प की ओर देखना अति आवश्यक है जो हमारे प्रकृति में मौजूद है. जिसे हम अपने खेतों में सूक्ष्मजीवों एवं केंचुआ इत्यादि को सक्रिय कर कृषि लागत को कम किया जा सकता है ये पोषक तत्त्वों को उपलब्ध कराने में बहुत ही मददगार होते हैं साथ ही मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी बढाया जा सकता है. लगातार भूमि पर रासायनिक कीटनाशकों, खादों का प्रयोग तथा भूमि को प्रतिवर्ष पलटने से भूमि की उर्वरा शक्ति पूरी तरह समाप्त हो चली है. हानिकारक कीटनाशकों के उपयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति कम होने के साथ-साथ कृषि की लागत भी बढ़ रही है. रासायनिक खेती से मिट्टी की गुणवत्ता में और मनुष्यों के स्वास्थ्य में भी गिरावट आई है.किसानों की पैदावार का आधा हिस्सा उनके उर्वरक और कीटनाशक में ही चला जाता है. यदि किसान खेती में अधिक मुनाफा कमाना चाहते हैं तो उन्हें प्राकृतिक एवं जैविक खेती की तरफ अग्रसर होना चाहिए. रासायनिक खाद और कीटनाशक के उपयोग से मिट्टी की उर्वरा क्षमता काफी कम हो गई है जिससे मिट्टी के पोषक तत्वों का संतुलन बिगड़ गया है. मिट्टी की उर्वरक क्षमता को देखते हुए प्राकृतिक एवं जैविक खेती जरूरी हो गया है. साथ ही किसानों को प्राकृतिक खेती के चार स्तंभ एवं सिद्वांत, जीवामृत, घनजीवामृत, बीजामृत, नीमास्त्र, वर्मीकम्पोस्ट इत्यादि बनाने की विधि एवं विभिन्न फसलों में उपयोग की विस्तृत में जानकारी भी दी गई. मृदा विशेषज्ञ डॉ. विजय कुमार ने मृदा स्वास्थ्य कार्ड, मृदा के जांच, हरीखाद, बी. टी. एम. श्री हरेंद्र मिश्रा ने बिहार सरकार द्वारा किसानों के लिए चलाई जा रही योजनाओं, ए.टी.एम. सुश्री दीपा कुमारी एवं श्री अजीत कुमार ने आत्मा के क्रियाकलापों जैसे कृषक भ्रमण सह प्रशिक्षण एवं इफको से संदीप कुमार ने नैनो यूरिया एवं डी.ए.पी. के बारे में किसानों को विस्तृत में बताया.

कार्यक्रम में सैकड़ों की संख्या में किसान भाई एवं बहनों ने प्रतिभाग किया. कृषि विभाग से किसान सलाहकार धीरेन्द्र कुमार साह, नागेन्द्र कुमार, विकाश कुमार सिंह एवं कृषि विज्ञान केन्द्र, मांझी से श्री राकेश कुमार सहित कई लोग मौजूद थे.

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