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saran news. मांझी के पशु चिकित्सालयों में कर्मियों की कमी से इलाज हो रहा प्रभावित

प्रखंड मुख्यालय के अलावा ताजपुर व दाउदपुर में भी पशु चिकित्सालय हैं, प्रखंड मुख्यालय व दाउदपुर में डॉक्टर व कर्मियों के रहने के लिए आवास हैं, जबकि ताजपुर में सिर्फ अस्पताल

मांझी. प्रखंड मुख्यालय सहित अन्य तीन जगहों पर कार्यरत पशु चिकित्सालय में कर्मियों की कमी है, जिससे पशुओं का इलाज प्रभावित होता है. प्रखंड मुख्यालय के अलावा ताजपुर व दाउदपुर में भी पशु चिकित्सालय हैं. प्रखंड मुख्यालय व दाउदपुर में डॉक्टर व कर्मियों के रहने के लिए आवास हैं, जबकि ताजपुर में सिर्फ अस्पताल है. वहां डॉक्टर के अलावा कर्मियों के रहने के आवास है. तीनों ही अस्पताल में कर्मियों की कमी होने से कई समस्या होती है.

प्रखंड मुख्यालय स्थित ताजपुर तथा दाउदपुर अस्पताल में चिकित्सक प्रभार में चल रहे हैं. प्रखंड मुख्यालय तथा ताजपुर में डॉ प्रभाकर प्रवीण का प्रभार में है. डॉ प्रभाकर प्रवीण बनियापुर प्रखंड के हंसराजपुर में मूल पदस्थापना है. प्रखंड में चार डॉक्टरों की पद सृजित है. जबकि वर्तमान में एक ही डॉक्टर है. परिचारी का तीन पड़ सृजित है एक खाली है. उसी तरह पशुधन सहायक के दो पद सृजित है एक खाली है. नाइट गार्ड के तीन पद सृजित है. वर्तमान में तीनों पद खाली है. चिकित्सक ने बताया कि कई पद रिक्त होने से कई समस्याएं होती हैं. अस्पताल में कृत्रिम गर्भाधान की भी व्यवस्था है. इससे पशुपालकों को मजबूरन झोलाछाप डॉक्टरों के पास जाना पड़ता है, जहां उनका आर्थिक शोषण होता है.

38 तरह की दवाओं की जगह 18 ही उपलब्ध

प्रखंड मुख्यालय में स्थित पशु चिकित्सालय में 38 तरह की जगह सिर्फ 18 तरह की दवा उपलब्ध है, जिस कारण 20 तरह की दवाइयां पशुपालकों को बाहर से खरीदना पड़ता है. महंगी दवाएं बाजार से मंगवायी जाती हैं, जिससे गरीब पशुपालकों पर भारी बोझ पड़ता है. वर्तमान समय में प्रतिनियुक्ति पर चल रहा है. जबकि यह अस्पताल तीन शिफ्ट में चलता है. सुबह 8:30 से दोपहर 2:30 तक यहां ओपीडी सेवा दी जाती है. जबकि उसके बाद सिर्फ इमरजेंसी सेवा प्रदान किया जाता है.

क्या कहते हैं पशुपालक

डॉक्टर और कर्मियों की कमी के कारण, पशुपालकों को अपने बीमार पशुओं का समय पर और उचित इलाज कराने में कठिनाई होती है.

मनीष कुमार

, पशुपालकपशुओं के स्वास्थ्य और कल्याण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने से पशुपालन व्यवसाय भी प्रभावित होता है.

अख्तर अली

, पशुपालकपशुओं को समय पर टीके और अन्य उपाय नहीं मिल पाते हैं, जिससे बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. चिकित्सक की कमी से समय पर उचित परामर्श व इलाज नहीं हो पाता है.

फिराक अहमद

उचित इलाज और देखभाल के अभाव में, पशुधन की मृत्यु दर में वृद्धि हो सकती है, जिससे पशुपालकों को भारी नुकसान होता है. घरेलू कुत्ता का उपचार के अभाव में उसकी जान चली गयी.

सुमित कुमार गिरीB

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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