दरियापुर. मीठे सुरों से लोगों के मन को मोह लेने वाली बांसुरी बनाने वाले कारीगरों की जिंदगी खुद संघर्षों से घिरी हुई है. ये कारीगर कर्ज के बोझ तले दब चुके हैं. सरकारी सहायता के अभाव में अब वे इस पारंपरिक पेशे को छोड़ने लगे हैं और शहरों में मजदूरी करने को मजबूर हो रहे हैं.
गौरतलब है कि प्रखंड के बेला, मठिया, महमदपुर, फुसरतपुर सहित आधे दर्जन से अधिक गांवों में वर्षों से एक विशेष जाति के लोग बांसुरी बनाकर अपनी आजीविका चला रहे हैं. पहले इस पेशे से सैकड़ों परिवार जुड़े थे, लेकिन अब इनकी संख्या लगातार घट रही है. ये कारीगर आज भी गरीबी की जिंदगी जी रहे हैं, बावजूद इसके पूर्वजों की इस परंपरा से अब भी जुड़े हुए हैं.दिल्ली और मुंबई में भी है इन बांसुरियों की धूम
यहां के कारीगर बांसुरी निर्माण में इतने कुशल हैं कि उनकी बनायी हुई बांसुरियों की मांग दिल्ली, मुंबई, पुणे, कटक आदि बड़े शहरों में भी है. कई कारीगर थोक रूप में इन शहरों में बांसुरी की आपूर्ति करते हैं, जबकि अधिकतर कारीगर मेले में जाकर खुद से बांसुरी बेचते हैं. इन मेलों में यहां की बनी बांसुरियों की खूब मांग रहती है. इस काम में महिलाएं भी पुरुषों का सहयोग करती हैं. कुछ परिवार कुशल मजदूरों को रखकर भी बांसुरी निर्माण का कार्य कर रहे हैं.महंगे बांस और नरकट से प्रभावित हो रहा व्यवसाय
बांसुरी का निर्माण बांस और नरकट से होता है. बीते तीन-चार वर्षों में इन दोनों की कीमतों में भारी वृद्धि हुई है, जिससे मुनाफा बहुत कम हो गया है. यही कारण है कि अब कई परिवार इस पेशे को छोड़ने लगे हैं. कारीगर मुनीफ मियां बताते हैं कि बांस और नरकट खरीदने व उन्हें घर तक लाने में काफी खर्च आता है. इनके दाम और ढुलाई पर होने वाला खर्च इतना बढ़ गया है कि अब बचत बहुत कम होती है. यह उनका पारंपरिक पेशा है, इसलिए छोड़ नहीं पा रहे.महाजन के कर्ज के बोझ तले दबे कारीगर
अधिकांश कारीगर बहुत गरीब हैं. उनके पास बांस और नरकट खरीदने तक के पैसे नहीं होते. ऐसे में ये महाजन से ऊंचे ब्याज दर पर कर्ज लेकर काम करते हैं. बांसुरी बेचकर जो थोड़ी बहुत आमदनी होती है, उसका अधिकांश हिस्सा ब्याज चुकाने में ही चला जाता है. कई कारीगर तो कर्ज चुका पाने की स्थिति में भी नहीं हैं और उन्हें महाजन की फटकार झेलनी पड़ती है.सरकारी मदद मिले, तो बदल सकती है तस्वीर
कारीगरों का कहना है कि यदि सरकार कम ब्याज पर लोन उपलब्ध कराए, तो यह पारंपरिक व्यवसाय फिर से फल-फूल सकता है और उनकी जिंदगी संवर सकती है. लेकिन गरीब होने के कारण बैंक भी उन्हें लोन देने से मना कर देता है. कुछ कारीगरों को लोन तो मिला, लेकिन दलालों ने मोटा कमीशन वसूल लिया. कम पढ़े-लिखे होने के कारण उन्हें लोन दिलाने के नाम पर कई बार धोखा भी दिया गया.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है